कम्युनिस्टों की सच्चाई बताने के लिए अमेरिका के फ्लोरिडा में जो किया गया, वो भारत में भी होना चाहिए

अमेरिकी विश्वविद्यालयों में जिस तरह से अब कम्युनिज्म का मकड़जाल बिछाया गया है, उसे देखते हुए अब एक बड़ा वर्ग ना सिर्फ़ जागरूक हो रहा है, बल्कि इसके समाधान पर भी काम कर रहा है। यह समाधान भी ऐसा है, जिस पर भारत में भी विचार किया जाना चाहिए।

The Narrative World    24-Apr-2024   
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भारत के कुछ विश्वविद्यालयों में हम देखते हैं कि वहाँ कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े संगठनों
, छात्रों एवं समूहों का बड़ा प्रभाव है, उदाहरण के तौर पर हम जवाहरलाल नेहरु विवि और जाधवपुर विवि को देख सकते हैं।


इन संस्थानों के अलावा देशभर में कई ऐसे शिक्षण संस्थान हैं जहाँ एक प्रणालीगत तरीक़े से नये विद्यार्थियों को कम्युनिस्ट विचारधारा से ना सिर्फ़ प्रभावित किया जाता है, बल्कि उन्हें इस तरह से ब्रेनवाश किया जाता है कि वो लम्बे समय तक कम्युनिस्ट विचारधारा के लिए समर्पित रहते हैं।


जैसी स्थिति भारत के विश्वविद्यालयों की है, कुछ यही हाल अमेरिका के उच्च शिक्षण संस्थाओं का भी है। अमेरिका में तमाम यूनिवर्सिटी ऐसी हैं, जहाँ व्यापक स्तर पर वामपंथ का प्रचार चल रहा है, जिसका ही परिणाम है कि हमें अब वहाँ 'जेंडर इश्यू' और 'वोकनेस' जैसे मामले देखने को मिल रहे हैं।


बीते कुछ वर्षों में 'कल्चरल मार्क्सिज़्म' के अमेरिकी सिपहसलारों के अलावा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा भी अमेरिकी शिक्षण संस्थाओं में 'वामपंथी' विचार को आगे बढ़ाने के लिए तरह-तरह के प्रपंच रचे गए हैं।


अमेरिकी विश्वविद्यालयों में जिस तरह से अब कम्युनिज्म का मकड़जाल बिछाया गया है, उसे देखते हुए अब एक बड़ा वर्ग ना सिर्फ़ जागरूक हो रहा है, बल्कि इसके समाधान पर भी काम कर रहा है। यह समाधान भी ऐसा है, जिस पर भारत में भी विचार किया जाना चाहिए।


“समाधान के तौर पर अमेरिका के फ़्लोरिडा राज्य में पहल की गई है। फ़्लोरिडा राज्य में अब स्कूली बच्चों को शुरआती कक्षाओं से ही 'कम्युनिज्म के इतिहास' के बारे में बताया जाएगा। यह पढ़ाई किंडरगार्डन के बच्चों से लेकर बारहवीं तक बच्चों को कराई जाएगी। इस मामले की पहल करने वाले फ़्लोरिडा के गवर्नर 'रॉनल्ड डियोन डैसेंटिस' ने इस शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक बिल पर हस्ताक्षर कर इसकी अनुमति दे दी है।”


इस बिल के अनुसार वर्ष 2026-27 के पाठ्यक्रम से अमेरिका सहित वैश्विक स्तर पर कम्युनिज्म के इतिहास और कम्युनिस्ट सत्ता द्वारा किए गए अपराधों को शामिल किया जाएगा। इस नये पाठ्यक्रम से जुड़े बिल की अनुमति देने वाले फ़्लोरिडा के गवर्नर डैसेंटिस का कहना है कि 'विद्यार्थियों को कम्युनिज्म के बारे में सही जानकारी देना आवश्यक है।'


इस बिल के अनुसार स्कूली विद्यार्थियों के लिए ऐसा पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा, जो किंडरगार्डन से लेकर बारहवीं के बच्चों तक के लिए उचित हो। इस पूरे पाठ्यक्रम को फ़्लोरिडा का शिक्षा विभाग तैयार करेगा।


बिल को लाने के पीछे का कारण बताते हुए डैसेंटिस का कहना है कि 'बहुत से ऐसे विश्वविद्यालय हैं जो यह बता रहे हैं कि कम्युनिज्म कितना महान है, लेकिन मेरा यह मानना है कि हम विद्यार्थियों को स्कूल में ही सच्चाई बता दें, जिससे एक अच्छा आधार तैयार हो सके।'


ग़ौरतलब है कि इस बिल को उसी दिन पास किया गया है जिस दिन तक़रीबन 63 वर्ष पहले कम्युनिस्ट तानाशाह फ़िदेल कस्त्रो ने लोकतंत्र की मांग करने पहुँचे क्यूबा के आम नागरिकों का नरसंहार कर दिया था। 17 अप्रैल, 1961 को हुए 'बे ऑफ़ पिग्स इन्वेज़न' के छः दशक बाद फ़्लोरिडा के गवर्नर ने इसी दिनांक पर उस बिल पर हस्ताक्षर किए, जिसके माध्यम से अब स्कूली बच्चों को कम्युनिस्ट तानाशाहों की क्रूरता और उनके द्वारा किए गए नरसंहारों के बारे में जानकारी दी जाएगी।


दरअसल यह एक ऐसा प्रयास है जो ना सिर्फ़ बच्चों को कम्युनिज्म की वास्तविकता बताएगा, बल्कि उन्हें भविष्य में इस विचारधारा के षड्यंत्र से भी बचाने का काम करेगा। इस तरह के प्रयास बच्चों को स्कूली काल में ही कम्युनिज्म के विचार की जानकारी दे देगा, जिसके बाद इन बच्चों को विश्वविद्यालयों में ब्रेनवाश करना वामपंथियों के लिए आसान नहीं होगा।


यदि हम फ़्लोरिडा में पास हुए बिल को देखें तो वह बिल यह भी कहता है कि 'फ़्लोरिडा में कम्युनिज्म का इतिहास बताते हुए एक संग्रहालय बनाने की योजना भी बनाई जाएगी।' इससे पहले कम्युनिस्ट नेताओं, तानाशाहों एवं विचारकों के द्वारा किए गए नरसंहारों की कहानी बताता एक म्यूज़ियम पहले ही वॉशिंगटन में स्थापित किया गया है, जिसका नाम 'विक्टिम्ज़ ऑफ़ कम्युनिज्म म्यूज़ियम' रखा गया है।


फ़्लोरिडा के गवर्नर ने स्कूली विद्यार्थियों को कम्युनिज्म की वास्तविकता बताने की निर्णय लिया है, कुछ ऐसे ही निर्णय की भारत में भी आवश्यकता है। भारत का एक किशोर जब स्कूल से निकलकर विश्वविद्यालय जाता है, तब वहाँ पहले से ही 'घात' लगाए बैठे वामपंथी उसका ब्रेनवाश करना शुरू कर देते हैं। इस तरह से उनकी ब्रेनवाशिंग की जाती है कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि वो कब लेफ़्ट एजेंडा कि शिकार हो गए हैं।


इसीलिए भारत में स्कूली विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में वामपंथी विचार के खोखलेपन, उसकी हिंसा, नरसंहार और अव्यवहारिक गतिविधियों को शामिल करना चाहिए, ताकि वह विद्यार्थी जब एक शिक्षित युवा बन कर निकले, तब उसे इस क्रूर विचारधारा की वास्तविक जानकारी हो।