भारत में कम्युनिस्टों के कारण देश को अनेकों नुकसान उठाने पड़े हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है इस देश की संस्कृति और आस्था का नुकसान। एक तरफ जहां अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर का निर्माण स्वाधीनता के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों के साथ-साथ कम्युनिस्ट विचारकों और इतिहासकारों के कारण अटका रहा, वहीं दूसरी ओर दंडकारण्य के जंगलों में भी ऐसे कम्युनिस्ट आतंकियों के कारण भगवान राम का मंदिर बंद रहा।
बस्तर के दक्षिणी हिस्से में स्थित सुकमा जिले में एक प्राचीन मंदिर है, जहां भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी, जहां स्थानीय जनजातीय समाज के लोग पूरी आस्था एवं श्रद्धा भाव से भगवान की पूजा करते थे।
लेकिन इस क्षेत्र में माओवादी (कम्युनिस्ट आतंकियों) के बढ़ते आतंक के बाद धीरे-धीरे यह स्थान सूना पड़ने लगा और अंततः 21 वर्ष पूर्व माओवादी फरमान के बाद इसे बंद कर दिया गया। माओवादी आतंकियों ने फरमान जारी कर यहां पूजा पाठ रुकवा दिया था, जिसके बाद वर्ष 2003 से मंदिर बंद था।
हालांकि अब 21 वर्षों के वनवास के बाद पुनः भगवान राम के इस मंदिर को खोल दिया गया। सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन का कैंप लगने के बाद अब यहां पूजा-अर्चना शुरू हो गई है।
दरअसल जिले के लखापाल और केरलापेंदा क्षेत्र में 5 दशक पूर्व स्थानीय ग्रामीणों के पूर्वजों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। पूरा गांव इस मंदिर के निर्माण में सहयोगी था, जो इसकी निर्माण सामग्री को अपने सर पर ढोकर 80 किलोमीटर दूर से यहां लाये थे।
यह उस दौर की बात है, जब यहां ना सड़क थी और ना ही कोई अन्य सुविधा, लेकिन था तो केवल और केवल भगवान श्रीराम के प्रति अनन्य आस्था। भगवान श्रीराम के आशीर्वाद से ग्रामीणों ने इस मंदिर के निर्माण के संकल्प को पूर्ण किया, लेकिन बाद में इस पूरे क्षेत्र को कम्युनिस्ट आतंकियों की नजर लग गई।
जिस गांव ने बीते दो दशकों तक हिंसा और रक्तपात देखा है, वहां प्रभु राम की ऐसी माया थी कि मंदिर स्थापना के बाद पूरे गांव ने कंठी धारण कर ली और मांस-मदिरा का सेवन पूरी तरह से छोड़ दिया।
जिस वन्य क्षेत्र में स्थानीय जनजाति मांस का भक्षण करते थे, उन्होंने सभी व्यसनों को त्याग दिया। इसका प्रभाव कुछ ऐसा है कि इस गांव के 95% लोग आज भी व्यसन से दूर हैं।
ग्रामीणों में बढ़ती सनातनी आस्था एवं व्यसन से होती दूरी से कम्युनिस्ट आतंकी छटपटाने लगे और उन्होंने ग्रामीणों को मंदिर जाने पर ही रोक लगाना शुरू कर दिया। इसके बाद वर्ष 2003 में मंदिर में किसी भी तरह के पूजा पाठ पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा के साथ ही कम्युनिस्ट आतंकियों ने इस गांव के ग्रामीणों की आस्था को कुचलने की कोशिश की।
हालांकि जिस तरह कम्युनिस्टों ने अयोध्या में भी मंदिर निर्माण रोकने का प्रयास किया था, लेकिन वो वहां असफल हुए, ठीक उसी तरह कम्युनिस्ट समूह यहां भी बुरी तरफ विफल हुए।
कम्युनिस्टों ने सोचा था कि वो ग्रामीणों पर मंदिर जाने की पाबंदी लगाकर उनकी आस्था और संस्कृति को खत्म कर देंगे, लेकिन स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों ने भगवान राम को सदैव अपने पास ही रखा।
आज इसी का परिणाम है कि जब मंदिर के कपाट को जवानों ने खोला तो स्थानीय ग्रामीणों में एक नई ऊर्जा का संचार होता हुआ दिखाई दे रहा है। स्थानीय ग्रामीणों ने ही मंदिर की साफ सफाई भी की और पूजा अर्चना भी शुरू की।