फर्जी मुठभेड़ का षड्यंत्र : कांग्रेस और माओवादियों की जुगलबंदी

2018 से 2023 के बीच छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन इस बीच कांग्रेस सरकार ने कम्युनिस्ट आतंकियों अर्थात माओवादियों-नक्सलियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की, और ना ही माओवादियों के खात्मे के लिए कोई आक्रामक अभियान चलाया।

The Narrative World    15-May-2024   
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देश में जब भी एक मजबूत राष्ट्रवादी सरकार आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई करती है, तो सबसे पहले कांग्रेस पार्टी इस पर प्रश्न चिन्ह उठाते हुए दिखाई देती है।


2018 से 2023 के बीच छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन इस बीच कांग्रेस सरकार ने कम्युनिस्ट आतंकियों अर्थात माओवादियों-नक्सलियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की, और ना ही माओवादियों के खात्मे के लिए कोई आक्रामक अभियान चलाया।


इसके उलट कांग्रेस की सरकार ने अर्बन नक्सलियों के ऊपर दर्ज केस वापस लिए और तो और केंद्रीय सुरक्षाबलों की कार्रवाई में भी बाधा डाली।


लेकिन बीते वर्ष प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद बनी भाजपा की सरकार ने माओवादियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हुए सुरक्षा बल के जवानों को खुली छूट दे दी है, जिसके बाद से बस्तर के अलग-अलग क्षेत्रों में माओवादी ढेर हो रहे हैं।


स्थिति ऐसी है कि जिन स्थानों को माओवादियों का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता था, वैसे स्थानों में भी फोर्स ने घुसकर ऑपरेशन चलाया और माओवादियों को ना सिर्फ ढेर किया, बल्कि ऐसे स्थानों से उन्हें खदेड़ भी दिया।


लेकिन इन सब के बीच कांग्रेस पार्टी खुलकर माओवादियों का पक्ष लेती हुई दिखाई दे रही है, चाहे वो कोयलीबेड़ा का मुठभेड़ हो, या छोटेबेठिया का मुठभेड़, सिर्फ इतना ही नहीं कांग्रेस ने हाल ही में बीजापुर में हुए मुठभेड़ में भी माओवादी आतंकियों की लाइन को ही पकड़ा है, जिसमें वो इस मुठभेड़ पर सवाल उठा रहे हैं।


दरअसल हाल ही का मामला कुछ ऐसा है कि बीते 10 मई, 2024 को सुरक्षाबल के जवानों ने बीजापुर जिले के भीतर पीडिया जंगल में एक ऑपरेशन चलाया था, जिसमें 12 माओवादी ढेर हुए थे। अब कांग्रेस ने इस मुठभेड़ पर संदेह जताते हुए इसे फर्जी मुठभेड़ बताया है।


कांग्रेस विधायक तो इसे सीधा जनजातियों के खात्मे की रणनीति बता रहे हैं। वहीं कांग्रेस की ही लाइन पर चलते हुए माओवादियों ने भी अपनी रणनीति बदली है, तथा इस मुठभेड़ को फर्जी बताया है।


कांग्रेस और माओवादियों के इस नैरेटिव इकोसिस्टम को समझने से पहले बीजापुर मुठभेड़ को जानना भी जरूरी है। बीजापुर में हुए इस ऑपरेशन के लिए सुरक्षाबलों की 6 टीमें लगी हुई थी, जिसमें डीआरजी, सीआरपीएफ, कोबरा, एसटीएफ, बस्तर फाइटर्स और बस्तरिया बटालियन के जवान शामिल थे।


यह पहला मौका था जब 6 टीमों के 1200 जवान किसी एक ऑपरेशन के लिए बस्तर के जंगल में निकले थे। इस अभियान में फोर्स को सफलता भी मिली और मुठभेड़ में 12 माओवादी ढेर भी हुए।


पीडिया के जिस स्थान में मुठभेड़ हुई, वह माओवादियों का सबसे बड़ा ठिकाना था, जहां माओवादियों की हथियार बनाने की फैक्ट्री थी और यहीं माओवादी अपने नये लड़ाकों को ट्रेनिंग भी देते थे।


यही कारण है कि फोर्स को मुठभेड़ के बाद घटनास्थल से बड़ी संख्या में एसएलआर, बीएलजी लॉन्चर, बंदूकें, भरमार एवं अन्य हथियार एवं विस्फोटक प्राप्त हुए थे।


मुठभेड़ के बाद माओवादियों ने एक पर्चा जारी कर इस मुठभेड़ को फर्जी बताने का प्रयास किया है। माओवादियों का कहना है कि इस मुठभेड़ में मारे गए 12 लोगों में 10 ग्रामीण थे, वहीं दो लोग माओवादी संगठन के सदस्य थे।


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गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी के तरफ से भी जो बयान आ रहे हैं, वो भी माओवादियों के बयान से बिल्कुल मिलते जुलते हैं। झीरम घाटी कांड में रहस्यमयी तरीके से बच जाने वाले भूपेश बघेल के करीबी विधायक कवासी लखमा का कहना है कि पीडिया में हुई मुठभेड़ फर्जी है।


लखमा कह रहे हैं कि तेंदूपत्ता तोड़ने गए ग्रामीणों को पुलिस ने मार दिया है। लखमा ने आगे कहा कि 'फर्जी एनकाउंटर में जनजाति मारे जा रहे हैं, ऐसा ही चलता रहा तो जनजाति लुप्त हो जाएंगे।'


कांग्रेस पार्टी केवल एक नेता के बयान तक ही सीमित नहीं रही है, इसने एक जांच दल का भी गठन किया है, जो इस मुठभेड़ पर संदेह जताते हुए इसकी जांच करेगी। गौरतलब है कि इस मुठभेड़ के लिए एक अन्य संगठन ने भी जांच दल का गठन किया है, जिसका नेतृत्व कम्युनिस्ट पार्टी के नेता मनीष कुंजाम कर रहे हैं।


इससे पहले भी कांग्रेस ने छोटेबेठिया मुठभेड़ को फर्जी बताने का षड्यंत्र रचा था, जो संभवतः उनके आपसी तालमेल में कमी के चलते विफल हो गया।


छोटेबेठिया के जंगलों में फोर्स ने छत्तीसगढ़ में अब तक की सबसे बड़ी सफलता हासिल करते हुए 29 माओवादियों को मार गिराया था, जिसके बाद एक तरफ जहां फोर्स और आम जनता में उत्साह था, वहीं कांग्रेस पार्टी इसे फर्जी मुठभेड़ बताने में लगी हुई थी।


“पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताने का प्रयास किया था, वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस मुठभेड़ पर सवाल खड़े किए थे। इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने मारे गए माओवादियों को 'शहीद' बताया था, और ठीक अपने नेता की तरह तेलंगाना की सरकार में मंत्री कांग्रेसी नेता ने मारे गए माओवादी कमाण्डर के घर में जाकर उसे श्रद्धांजलि अर्पित की थी।”


लेकिन यह पूरा षड्यंत्र तब फूट गया था जब माओवादियों ने खुद पर्चा जारी कर मारे गए माओवादियों को अपने संगठन का स्वीकार कर लिया था। इसके बाद कांग्रेस पार्टी बैकफुट पर आ गई थी, और भूपेश बघेल को भी अपने बयान पर सफाई देनी पड़ी थी।


लेकिन इस बार स्थितियों को देखकर लगता है कि अर्बन नक्सलियों, कांग्रेस और माओवादियों ने मिलकर पूरी रणनीति बनाई है, जिसके कारण इन सभी के बयान और गतिविधियां एक दूसरे की पूरक दिखाई देती है।


यदि हम इस कड़ी को देखें तो समझ आता है कि कैसे यह पूरा नेक्सस काम कर रहा है। जैसे ही मुठभेड़ की घटना हुई उसके बाद सबसे पहले माओवादियों की रणनीति के अनुसार कुछ ग्रामीणों को आगे कर मारे गए माओवादियों को ग्रामीण बताया जाने लगा।


इसके बाद माओवादी एक पर्चा जारी करते हैं जिसमें मारे गए 12 माओवादियों में से 10 को ग्रामीण बताया जाता है। चूंकि फोर्स को मुठभेड़ स्थल से हथियार एवं विस्फोटक भी बरामद हुए थे, इसीलिए माओवादियों के पर्चे में सोची-समझी रणनीति के तहत 12 में से 2 लोगों को उनका सदस्य बताया जाता है, ताकि यह कहानी झूठी ना लगे।


इसके ठीक बाद कांग्रेस की ओर से एक जांच कमेटी बनाई जाती है। वहीं दूसरी ओर कम्युनिस्ट नेता मनीष कुंजाम के नेतृत्व में भी एक कमेटी बनाई जाती है, जिसे समाज की जांच कमेटी कहा जा रहा है, लेकिन वास्तव में वो कम्युनिस्ट लॉबी की कमेटी है।


इस बीच बेला भाटिया जैसे लोग भी खुलकर इस मुठभेड़ को फर्जी ठहराने का प्रयास करते हैं, और फिर अंततः कवासी लखमा से बस्तर कांग्रेस के बड़े नेता के द्वारा 'फर्जी मुठभेड़' और 'जनजातियों की विलुप्ति' जैसे बयान सामने आते हैं।


“अब आप इन सभी कड़ियों को जोड़ते जाइए, आपको इसमें एक पैटर्न दिखाई देगा। छोटेबेठिया में कांग्रेस ने कोशिश की थी कि इस मुठभेड़ को फर्जी बताया जा सके, लेकिन वो हो नहीं सका। लेकिन उसके एक महीने के भीतर ही तालमेल कुछ ऐसा है कि माओवादियों के मुठभेड़ को अब फर्जी बताने के लिए पूरा तंत्र लग चुका है।”


यह एक सच्चाई है कि कांग्रेस सरकार के समय छत्तीसगढ़ में नक्सल ऑपरेशन के नाम पर कोई कार्य नहीं किया गया, सुरक्षा कैंपों की गोपनीय जानकारियों को खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सार्वजनिक कर रहे थे, वहीं अर्बन नक्सलियों को खुली छूट मिली हुई थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है।


अब माओवादियों के विरुद्ध निर्णायक अभियान आरंभ हो चुका है, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने खुद 3 वर्ष के भीतर माओवादियों के खात्मे की बात कही है, वहीं राज्य में नई सरकार आने के बाद से अभी तक 100 अधिक माओवादी ढेर हो चुके हैं।


ऐसे में यह तय है कि कम्युनिस्ट आतंकवाद का यह पूरा तंत्र जल्द ही बिखरने वाला है, यही कारण है कि अर्बन नक्सलियों का समूह ना सिर्फ बौखलाया हुआ है, बल्कि वह अब नई-नई रणनीतियों के सहारे इन मुठभेड़ों को रोकने का प्रयास कर रहा है।


वर्तमान में कांग्रेस के बयान और माओवादियों के पर्चे में इतनी समानता है कि इसे देखकर यह कहा जा सकता है कि दोनों की योजना अर्बन नक्सलियों या कम्युनिस्ट समूहों ने ही की है।


हालांकि कांग्रेस के द्वारा किए जा रहे इस तरह के कृत्यों को आम जनता देख रही है, यही कारण है कि जनता को भड़काने की तमाम गतिविधियों के बाद भी उनका भरोसा अपने सुरक्षा बल के जवानों और सरकार पर है, जो माओवादियों के खात्मे के लिए अपने जान की बाजी लगाकर आगे बढ़ रहे हैं।