15 अगस्त, भारत की स्वाधीनता का उत्सव दिवस है, इसी दिन हमने सैकड़ों वर्षों की पराधीनता के बाद आजादी हासिल की थी, यह दिन भारत के जीवंत लोकतंत्र का प्रतीक दिवस है। लेकिन देश के भीतर एक समूह ऐसा भी है जो इस लोकतंत्र को स्वीकार नहीं करता है, वह समूह अपने आतंक के माध्यम से देश के भीतर माओतंत्र का कम्युनिस्ट तानाशाही स्वरूप स्थापित करना चाहता है, और उस समूह के आतंक का सबसे बड़ा शिकार बन रहा है बस्तर का जनजातीय समाज।
बस्तर के जनजातीय ग्रामीणों का इन देश विरोधी कम्युनिस्ट आतंकियों द्वारा ना सिर्फ शोषण किया जा रहा है बल्कि उनकी हत्याएं भी की जा रही हैं। कम्युनिस्ट आतंकियों (माओवादियों) के इन नरभक्षी आतंक का शिकार छोटे-छोटे मासूम बच्चे भी हो रहे हैं, जिन्हें ना ही माओवाद की जानकारी है और ना ही मार्क्सवाद की जानकारी है।
15 अगस्त, अर्थात स्वाधीनता दिवस के 2 दिन पहले 13 अगस्त, 2024 की शाम ऐसे ही एक और जनजाति बच्चे की हत्या माओवादियों ने की है। माओवादियों ने इस घटना को बस्तर के सुकमा जिले में अंजाम दिया है।
16 वर्षीय स्कूली बच्चे की पहचान सोयम शंकर के रूप में हुई है, जो पूवर्ती गांव का निवासी था। मृतक जनजाति नाबालिग दंतेवाड़ा जिले के पालनार क्षेत्र में स्थित एक शासकीय विद्यालय में पढ़ाई करता था।
गौरतलब है कि इसी जनजातीय बच्चे के बड़े भाई सोयम सीताराम को 5-6 दिनों पहले ही माओवादियों ने मौत के घाट उतार दिया। सोयम सीताराम की आयु भी केवल 19 वर्ष थी। परिवार ने उसका अंतिम संस्कार कर दिया था।
माओवादियों ने स्वाधीनता दिवस से पूर्व जिस जनजातीय बच्चे की हत्या की है, उसे पहले से ही माओवादियों के आतंक के चलते सुकमा से निकालकर दंतेवाड़ा के पालनार के स्कूल में दाखिल कराया गया था।
बीते सप्ताह मृतक बालक की भाभी की मृत्यु होने के कारण वह पूवर्ती गांव में आया था, जहां पहले तो कम्युनिस्ट आतंकियों (नक्सलियों-माओवादियों) ने उसके बड़े भाई की हत्या की और फिर स्कूल के यूनिफॉर्म पहने सोयम शंकर की भी बेरहमी से हत्या कर दी।
एक ही घर के दो बेटों की हत्या से क्षुब्ध होकर अंततः इनके पिता और स्थानीय जनजातीय ग्रामीण सोयम धुरवा (मृतक के पिता) ने अब गांव छोड़ दिया है, और माओवादियों के भय से अब शहर का रास्ता अपनाया लिया है।
गौरतलब है कि माओवादी हमेशा बस्तर के स्थानीय जनजाति ग्रामीणों की हत्या के बाद यह आरोप लगाते हैं कि मृतक 'पुलिस मुखबिर' था। हालांकि इस मामले में माओवादियों का कोई पर्चा या कोई पत्र बरामद नहीं हुआ है, लेकिन यही अनुमान लगाया जा रहा है कि माओवादी फिर उसी लाइन को दोहरा सकते हैं कि सोयम सीताराम और सोयम शंकर पुलिस मुखबिर थे।
लेकिन यह एक सोचने वाली बात है कि आखिर एक 16 वर्षीय स्कूली छात्र से माओवादियों को कैसा खतरा ? क्या पूरा माओवादी संगठन एक छोटे जनजाति बच्चे से डर गया, जिसके गांव में आते ही उसे पीट-पीट कर मार डाला गया ? या माओवादी स्कूल जाते जनजाति बच्चों से डरने लगे हैं ?
प्रश्न यह भी सामने आते हैं कि आखिर कम्युनिस्टों की यह कैसी क्रांति है जो जनजाति बच्चों को मारने से आएगी ? यह कम्युनिज़्म के विचार का कैसा पौधा है, जिसे जनजाति किशोरों के रक्त से सींचा जा रहा है ? यह प्रश्न आज सभी भारतीयों को पूछना चाहिए कि इन कम्युनिस्टों के आतंक पर देश के सभी लेफ्ट-लिबरल्स कब अपनी आवाज़ उठाएंगे ?
माओवादियों की क्रूरता की कई घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं, लेकिन यह घटना कम्युनिज़्म के उस आतंकी विचार की सच्चाई सामने लाती है, जो माओवादी-नक्सली अपनाते हैं।
विद्यालय के गणवेश (स्कूल यूनिफॉर्म) में किसी बालक की हत्या करना यह भी संदेश देता है कि कैसे माओवादी स्कूल जा रहे जनजातीय बच्चों को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते हैं, उन्हें डर है कि यदि ये बच्चें पढ़-लिखकर आगे बढ़ गए तो उनके माओवाद-कम्युनिज़्म की खोखली विचारधारा की पोल खुल जाएगी।
यह घटना माओवादियों के आतंकी नेता हिड़मा को लेकर भी एक संकेत देती है, क्योंकि जिस पूवर्ती गांव में माओवादियों ने इस घटना को अंजाम दिया है, वह हिड़मा का ही गांव है।
हिड़मा माओवादियों की आतंकी सैन्य इकाई पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के बटालियन नम्बर 1 का पूर्व कमांडर है। वहीं इस बटालियन का वर्तमान कमाण्डर बरसे देवा भी इसी गांव का है। ऐसे में माओवादियों के किए पूवर्ती गांव सबसे सुरक्षित स्थानों में से एक था, जहां वो किसी भी बड़ी वारदात को अंजाम देने के बाद छिप जाते थे।
लेकिन बीते कुछ महीनों में सुरक्षाबल के जवानों ने ना सिर्फ यहां सुरक्षा कैंप स्थापित किया बल्कि इस पूरे क्षेत्र में कड़ी निगरानी की व्यवस्था बनाई, जिसके चलते यह क्षेत्र में माओवादियों के गढ़ से लगभग निकल चुका है। इसके अलावा अब पूरे बस्तर क्षेत्र में माओवादियों का लगातार एनकाउंटर भी हो रहा है, बीते 6 माह में 115 से अधिक माओवादी ढेर हो चुके हैं।
माओवादी आतंकी अब निर्दोष जनजातीय ग्रामीणों को निशाना बना रहे हैं, वहीं हिड़मा और बरसे देवा के क्षेत्र में तो छोटे-छोटे किशोरों की हत्याएं की जा रही हैं, जो यह संकेत करता है कि हिड़मा और दक्षिण बस्तर के नक्सलियों समेत पूरे दंडकारण्य क्षेत्र के माओवादी अब अपना अंतिम समय निकट देखकर बौखलाहट में हत्या की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।
कुल मिलाकर वर्तमान घटना की सच्चाई यही है कि माओवादी जनजाति बच्चे की हत्या कर स्थानीय ग्रामीणों के साथ-साथ जनजाति समाज में भी भय पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उनके आतंक का व्यापार चलता रहे, वहीं साथ ही साथ भारत की स्वाधीनता का भी विरोध कर रहे हैं, क्योंकि कम्युनिस्टों ने तो कहा ही था कि 'यह आज़ादी झूठी है।'