आततायी शक्तियों के विनाश के लिए वीर गणपति बने अष्टविनायक

भगवान वीर गणपति के अष्टविनायक स्वरूप अद्वितीय और अद्भुत हैं। इनके माध्यम से हिन्दुओं को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शत्रुओं के शमन के लिए मार्गदर्शन प्राप्त होता है।

The Narrative World    11-Sep-2024
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अनादिकाल से भगवान श्री गणेश की पूजा बुद्धि, ज्ञान और सौभाग्य के देवता के रूप में विभिन्न स्वरूपों में सनातन धर्म में होती आ रही है।
 
परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हिंदुओं को देश, काल और परिस्थितियों को देखते हुए आज की पीढ़ी को मोदक वाले सौम्य गणपति के साथ-साथ रौद्र वीर गणपति से भी परिचित कराना होगा, ताकि वे आने वाले संकटों का सामना कर अपने हिंदुत्व की रक्षा कर सकें।
 
भगवान गणेश एक महान योद्धा हैं और उनके योद्धा स्वरूप को 'वीर गणपति' कहा जाता है। वस्तुतः यह स्वरूप सोलह भुजाओं वाला होता है, जिनमें वे क्रमशः बैताल, भाला, धनुष, चक्रायुध, खड़ग, ढाल, हथौड़ा, गदा, पाश, अंकुश, नाग, शूल, कुंद, कुल्हाड़ी, बाण और ध्वजा धारण करते हैं।
 
इनकी छवि क्रोधमय और भयावह है। शत्रुनाश एवं आत्म-संरक्षण के उद्देश्य से की गई आराधना शीघ्र लाभकारी सिद्ध होती है। वीर गणपति की पूजा से अदम्य साहस और शक्ति का संचार होता है, साथ ही हार न मानने की प्रेरणा भी प्राप्त होती है।
 
भगवान श्री गणेश ने भी समय-समय पर धर्म की रक्षा के लिए आठ अवतार लिए थे, जो अष्टविनायक कहलाते हैं।
 
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महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की थी, जो उनका पुत्र भी कहलाया। मद ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा लेकर देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। तब सभी देवताओं ने भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र का आह्वान किया, और भगवान ने एकदंत के स्वरूप में अवतार लिया। एकदंत ने मदासुर को युद्ध में पराजित कर देवताओं को अभय का वरदान दिया।
 
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भगवान गणेश ने वक्रतुंड अवतार मत्सरासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए लिया था। मत्सरासुर भगवान शिव का भक्त था, जिसने वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह किसी भी योनि के प्राणी से नहीं हारेगा। मत्सरासुर के पुत्र सुन्दरप्रिय और विषयप्रिय भी अत्याचारी थे। वरदान पाकर मत्सरासुर ने देवताओं को प्रताड़ित करना शुरू किया। तब भगवान गणेश ने वक्रतुंड अवतार लेकर मत्सरासुर और उसके पुत्रों का अंत किया।
 
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दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नामक राक्षस को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देकर देवताओं के विरुद्ध खड़ा किया। मोहासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवताओं ने भगवान गणेश का आह्वान किया, तब गणेशजी ने महोदर अवतार लिया। महोदर ने मोहासुर से बिना युद्ध किए ही उसे अपने इष्ट में परिवर्तित कर लिया।
 
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लोभासुर नामक दैत्य का जन्म भगवान कुबेर के लोभ से हुआ था। उसने भगवान शिव से वरदान प्राप्त कर सभी लोकों पर अधिकार कर लिया। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान गणेश ने गजानन अवतार लिया और लोभासुर को पराजित कर दिया।
 
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जलंधर का पुत्र कामासुर, जो महादेव की कठोर तपस्या से त्रिलोक विजय का वरदान पा चुका था, देवताओं पर अत्याचार करने लगा। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान गणेश ने विकट अवतार लिया और मोर पर सवार होकर कामासुर को पराजित किया।
 
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क्रोधासुर नामक राक्षस ने सूर्यदेव की तपस्या कर ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया था। क्रोधासुर के अत्याचारों से त्रस्त होकर देवताओं ने भगवान गणेश का आह्वान किया। भगवान गणेश ने लंबोदर अवतार लिया और क्रोधासुर को समझा-बुझाकर पाताल लोक में भेज दिया।
 
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सूर्य भगवान के अंदर घमंड आने से उनकी छींक से उत्पन्न अहंता नामक दैत्य ने शुक्राचार्य की सहायता से देवताओं पर अत्याचार शुरू कर दिया। भगवान गणेश ने धूम्रवर्ण अवतार लिया और अहंतासुर का अंत कर देवताओं को राहत दी।
 
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माता पार्वती की हंसी से उत्पन्न मम नामक पुरुष ने दैत्यराज का पद प्राप्त कर देवताओं को कारागार में डाल दिया। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान गणेश ने विघ्नराज अवतार लिया और ममासुर का अंत कर दिया।
 
भगवान वीर गणपति के अष्टविनायक स्वरूप अद्वितीय और अद्भुत हैं। इनके माध्यम से हिन्दुओं को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शत्रुओं के शमन के लिए मार्गदर्शन प्राप्त होता है। वीर गणपति के अष्टविनायक स्वरूपों से यह ब्रह्म ज्ञान मिलता है कि आसुरी प्रवृत्तियों के विनाश के लिए उचित युक्तियों का प्रयोग कर विजय प्राप्त की जा सकती है।
 
लेख 
डॉ. आनंद सिंह राणा