महाराष्ट्र के गढ़चिरौली और छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों को करारा झटका लगा है। कुल 88 नक्सलियों ने हथियार डाल दिए, जिनमें 6 करोड़ का इनामी भूपति भी शामिल है।
देश में नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे सख्त अभियान का असर अब साफ दिखने लगा है। माओवाद की जड़ें हिल चुकी हैं और लाल आतंक के गढ़ एक-एक कर ढह रहे हैं। 15 अक्टूबर को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में माओवादी संगठन के शीर्ष नेता मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति उर्फ सोनू दादा ने अपने 61 साथियों के साथ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के सामने आत्मसमर्पण किया। वहीं, दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ के सुकमा में 27 माओवादियों ने भी आत्मसमर्पण किया। इन दो घटनाओं ने माओवादी संगठन को बड़ा झटका दिया है।
गढ़चिरौली में भूपति का समर्पण
गढ़चिरौली पुलिस मुख्यालय में मंगलवार सुबह 10 बजे यह ऐतिहासिक पल दर्ज हुआ जब पोलित ब्यूरो सदस्य भूपति ने हथियार डाल दिए। तेलंगाना निवासी भूपति 1980 के दशक से माओवादी संगठन से जुड़ा हुआ था और छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में मोस्ट वांटेड था। केवल छत्तीसगढ़ सरकार ने उस पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया था, जबकि अन्य राज्यों को मिलाकर कुल इनाम 6 करोड़ रुपये से अधिक था।
भूपति ने अपने साथियों के साथ कुल 54 हथियार पुलिस को सौंपे, जिनमें 7 AK-47 राइफलें और 9 INSAS राइफलें शामिल थीं। उसके साथ तीन दंडकारण्य क्षेत्रीय समिति और 10 संभागीय समिति के सदस्य भी सरेंडर करने पहुंचे।
बढ़ते सुरक्षा दबाव और आंतरिक मतभेद से टूटी नक्सली एकता
पुलिस सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई और सरकारी योजनाओं ने नक्सलियों पर भारी दबाव बनाया। भूपति ने भी स्वीकार किया कि माओवादी अब जनता का समर्थन खो चुके हैं और हथियारों के दम पर विचारधारा को जिंदा रखना अब संभव नहीं। इससे पहले उन्होंने अपने कैडरों को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा था कि “अब यह संघर्ष निरर्थक हो चुका है, खुद को बचाओ और बेमानी बलिदान मत दो।”
सुकमा में 27 नक्सलियों ने डाले हथियार, 50 लाख का था इनाम
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में भी सुरक्षाबलों ने बड़ी कामयाबी हासिल की। कुल 27 सक्रिय माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें 10 महिलाएं और 17 पुरुष शामिल थे। ये सभी माओवादी संगठन के अलग-अलग हिस्सों में सक्रिय थे और कई हिंसक घटनाओं में शामिल रहे।
इन आत्मसमर्पण करने वालों में से दो PLGA बटालियन-01 के सदस्य थे, जिन्हें माओवादियों की सबसे खतरनाक टुकड़ी माना जाता है। पुलिस के मुताबिक, इन पर कुल 50 लाख रुपये का इनाम घोषित था।
सरकार की योजनाओं से बदली तस्वीर
छत्तीसगढ़ सरकार की “आत्मसमर्पण पुनर्वास नीति” और “नियद नेल्ला नार योजना” ने नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया है। साथ ही, नक्सल प्रभावित इलाकों में नए सुरक्षा कैंपों की स्थापना से माओवादी अब सिमटने लगे हैं।
इन अभियानों से माओवादी कैडर का मनोबल टूट गया है। हाल के महीनों में ही दंतेवाड़ा और नारायणपुर में कई इनामी नक्सली मारे जा चुके हैं। 22 सितंबर को नारायणपुर जिले में सुरक्षाबलों ने सेंट्रल कमेटी के दो बड़े नक्सली नेताओं राजू दादा और कोसा दादा को मार गिराया था। दोनों पर 1.8-1.8 करोड़ रुपये का इनाम था।
माओवाद के पतन की शुरुआत, अब अंत निकट
पिछले दो दशकों में जिन जंगलों में नक्सलियों ने खून बहाया, वहीं अब वे हथियार डालने को मजबूर हैं। “लोन वर्राटू” जैसे अभियानों ने सैकड़ों माओवादियों को आत्मसमर्पण के रास्ते पर ला खड़ा किया है।
भूपति जैसे बड़े नेता का आत्मसमर्पण न केवल संगठन की रीढ़ तोड़ता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि लाल आतंक का युग खत्म होने वाला है। सुरक्षा बलों की सख्त कार्रवाई और सरकार की दृढ़ नीति से अब यह साफ हो गया है कि नक्सलवाद का अंत बस कुछ कदम दूर है।
देश के अंदरूनी सुरक्षा के इस सबसे बड़े खतरे की जड़ें अब कमजोर पड़ चुकी हैं, और माओवादी विचारधारा की आखिरी सांसें गढ़चिरौली और सुकमा की धरती पर गिनी जा रही हैं।
लेख
शोमेन चंद्र