केरल मॉडल का पतन: सत्ता बचाने के लिए CPI(M) का खतरनाक तुष्टिकरण खेल

आर्थिक बदहाली और वैचारिक पतन के बीच CPI(M) ने धर्म की राजनीति को बना लिया सत्ता बचाने का आखिरी हथियार।

The Narrative World    17-Oct-2025
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केरल की राजनीति, जो कभी विचारधारा पर टिकी थी, अब सत्ता की राजनीति में पूरी तरह बदल चुकी है। लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बीच की वैचारिक लड़ाई अब खत्म होती दिख रही है। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की CPI(M) सरकार ने अपने प्रशासनिक असफलता और वित्तीय संकट को छिपाने के लिए धार्मिक तुष्टिकरण का रास्ता चुना है। सरकार ने अब न तो मार्क्सवाद बचाया है और न ही सेक्युलरिज्म, बल्कि सत्ता के लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों वोटबैंक को खुश करने का खतरनाक खेल शुरू कर दिया है।
 
राज्य की वित्तीय हालत बेहद खराब है। 2024-25 में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 3.4 प्रतिशत यानी 44,529 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। राजस्व घाटा भी 27,846 करोड़ रुपये है। केंद्र सरकार ने साफ कहा है कि ये संकट केंद्र के प्रतिबंधों से नहीं बल्कि राज्य सरकार की “वित्तीय बदइंतजामी और फिजूलखर्ची” का नतीजा है। आर्थिक नाकामी छिपाने के लिए CPI(M) अब जनता का ध्यान भटकाने के लिए धर्म और पहचान की राजनीति का इस्तेमाल कर रही है।
 
केरा प्रोजेक्ट में 139 करोड़ रुपये की फंड डाइवर्जन का मामला जब सामने आया, तो सरकार ने सुधार की जगह मीडिया पर हमला बोल दिया। पत्रकारों पर जांच बैठाकर सीएम विजयन ने लोकतंत्र पर सीधा हमला किया। सत्ता बचाने के लिए अब सरकार आलोचना को अपराध मान रही है।
 
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सबरिमला मंदिर विवाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पिनराई सरकार ने महिलाओं की एंट्री को लेकर जबरदस्ती की थी। उसने भक्तों की भावनाओं को कुचला और खुद को “प्रगतिशील” बताने की कोशिश की। लेकिन जब जनता का भारी विरोध हुआ और हिंदू वोट बैंक टूट गया, तो सरकार ने पलटी मार ली। अब वही सरकार कह रही है कि सबरीमला मुद्दा “बंद अध्याय” है।
 
CPI(M) नेताओं ने धार्मिक गुरुओं से मिलना शुरू किया, मंदिर आयोजनों में शामिल होकर खुद को “हिंदू परंपरा का रक्षक” दिखाने लगे। ये बदलाव विचारधारा नहीं, चुनावी मजबूरी है। 2026 विधानसभा चुनाव से पहले एलडीएफ हिंदू वोट वापस पाने की कोशिश में हर हद पार कर रहा है।
 
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दूसरी तरफ, एलडीएफ ने मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए खतरनाक रुख अपनाया है। 2023 में कोझिकोड में फिलिस्तीन समर्थन रैली में माओलवी और कट्टर संगठन खुले मंच पर आए। CPI(M) नेताओं ने न केवल इस रैली का समर्थन किया, बल्कि हमास नेता खालिद मशाल का वर्चुअल संबोधन भी करवाया। यह कार्यक्रम किसी भी भारतीय राज्य में पहली बार हुआ।
 
पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने आरोप लगाया कि एलडीएफ सरकार ने पीएफआई जैसे प्रतिबंधित संगठनों के साथ सांठगांठ की है। सरकार के सांसदों ने भी पीएफआई की कार्रवाई का बचाव किया। ऐसे गठजोड़ न केवल राज्य की शांति को खतरे में डालते हैं बल्कि आतंकवाद विरोधी एजेंसियों की कार्रवाई पर सवाल खड़े करते हैं।
 
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CPI(M) ने चर्च को भी साधने की कोशिश की, लेकिन वहां भी विवाद बढ़ा। CPI(M) के राज्य सचिव एम.वी. गोविंदन ने थलसेरी आर्चबिशप जोसेफ पामपलनी पर हमला किया, जिसके बाद चर्च ने पार्टी की तुलना “फासीवादी ताकतों” से कर दी। इससे एलडीएफ की ईसाई आउटरीच रणनीति भी कमजोर पड़ गई।
केरल की जनता अब समझ चुकी है कि एलडीएफ और यूडीएफ में कोई वैचारिक फर्क नहीं बचा। दोनों सत्ता के लिए धर्म की राजनीति खेल रहे हैं। इस खालीपन का फायदा भाजपा उठा रही है, जो स्पष्ट विचारधारा और विकास के एजेंडे के साथ मैदान में उतर रही है।
 
आर्थिक बदहाली, मीडिया पर हमले और धार्मिक तुष्टिकरण ने एलडीएफ सरकार की नींव हिला दी है। सत्ता बचाने की ये नीति अब उलटी पड़ सकती है। हिंदू और ईसाई समुदायों में बढ़ते असंतोष के कारण भाजपा के लिए केरल की राजनीति में नई जमीन तैयार हो रही है।
 
CPI(M) ने सत्ता के लिए अपने सारे सिद्धांत बेच दिए हैं। जनता अब झूठे प्रगतिशील नारे नहीं, ठोस विकास और स्थिर शासन चाहती है। केरल की धरती पर लेफ्ट का पतन अब सिर्फ समय की बात है।
 
लेख
शोमेन चंद्र