नक्सलवाद का अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क: एक विस्तृत विश्लेषण

03 Oct 2025 12:59:41
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हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने छत्तीसगढ़ में CPI (माओवादी) आतंकवादी नेटवर्क को फंडिंग करने के आरोप में चार और लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है। इन आरोपियों में तीन प्रतिबंधित मूलवासी बचाओ मंच (MBM) के पदाधिकारी हैं, जबकि चौथा मलेश कुंजाम एक सशस्त्र माओवादी है जो फरार है। NIA की जांच के अनुसार, ये आरोपी CPI (माओवादी) के लिए धन का संग्रह, भंडारण और वितरण करते थे, जिसका उपयोग सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने और विकास गतिविधियों में बाधा डालने के लिए किया जाता था। यह मामला 2023 में शुरू हुआ था जब बीजापुर पुलिस ने दो MBM सदस्यों से 6 लाख रुपये बरामद किए थे, जो माओवादियों के निर्देश पर विभिन्न बैंक खातों में जमा करने जा रहे थे।
 
दूसरी ओर रायपुर में भी एक नक्सली दंपती पकड़ा गया। वे दिहाड़ी मजदूर बनकर शहर में रह रहे थे। इनके पास से नकदी, मोबाइल और सोने का बिस्किट मिला। दंपती को अर्बन नक्सल नेटवर्क से जुड़े होने, फर्जी पहचान का इस्तेमाल करने और बस्तर में नक्सलियों से संपर्क साधने के आरोप में पकड़ा गया।
 
यह कोई नई घटना नहीं है। 2005 में भी मल्लेश नामक एक नक्सली कैडर के ठिकाने से लाखों की नकदी, बैंक एफडी, जेवर, लगभग चौदह लाख का मकान, देसी रिवॉल्वर, गोलियां और पचास जिलेटिन स्टिक बरामद हुई थीं। मकान पत्नी के नाम पर खरीदा गया था ताकि पहचान छिपी रहे। उस पर 16 वर्षों तक माओवादियों के लिए काम करने और एक कांस्टेबल समेत 3 लोगों की हत्या का आरोप था। यह सब “किसान-मजदूर” वाली छवि से मेल नहीं खाता। यह बताता है कि हिंसक राजनीति की यह फैक्ट्री केवल जज़्बाती भाषणों और शोषण के नैतिक विरोध से नहीं, बल्कि ठोस पैसों और संपत्तियों से चलती है।
 
यहीं से सवाल उठता है: जो लोग खुद को जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ने वाला बताते हैं, उनके पास सोना, नकदी और शहरों में सुरक्षित ठिकाने क्यों और कैसे? क्या यह सच में जनजातीय समाज के अधिकारों की लड़ाई है या फिर कुछ और ही खेल?
 
आइए सच समझें
 
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“भारत में नक्सली विद्रोह को केवल स्थानीय या आर्थिक-सामाजिक असंतोष के रूप में देखना एक गंभीर भूल होगी।”
 
यह कोई सहज या स्वाभाविक विरोध नहीं है। यह एक हिंसक, उग्रवादी कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रोजेक्ट है, जिसका घोषित लक्ष्य लोकतांत्रिक व्यवस्था को तोड़कर हथियार के बल पर सत्ता पर कब्जा करना है। जंगलों और पहाड़ी इलाकों को ये रणनीतिक बेस की तरह चुनते हैं, ताकि राज्य की पकड़ कमजोर रहे और उनकी गुरिल्ला टुकड़ियाँ टिक सकें। इस प्रक्रिया में जनजातीय समुदाय को ढाल भी बनाया जाता है और मोहरा भी।
 
शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें और आजीविका जैसी बुनियादी सुविधाएं, जिनसे समुदाय मज़बूत होता है, इन्हें बार-बार निशाना बनाया जाता है। महिलाओं और किशोरियों के शोषण, जबरन भर्ती, स्थानीय परंपराओं पर रोक और डर के माहौल के अनगिनत साक्ष्य मौजूद हैं।
 
गाँवों के भीतर के “संघम” और “जन सरकार” जैसे ढांचों के साथ, शहरों में बने फ्रंट संगठनों की परत भी है। यही शहरी चेहरा पहचान छुपाकर किराए के कमरों में रहता है, फर्जी आईडी बनाता है, लॉजिस्टिक्स संभालता है, और पैसा, दवा, उपकरण, संदेश और अड्डे का इंतजाम करता है। रायपुर का मामला इसी शहरी परत की एक बानगी है।
 
नक्सली नेटवर्क की संरचना
 
1. बेस एरिया और गुरिल्ला ज़ोन
 
पहाड़, घने जंगल, कमजोर प्रशासन और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इलाकों को माओवादी “दीर्घकालीन गुरिल्ला युद्ध” के लिए उपयुक्त मानते हैं। यहीं से उगाही, हथियारबंदी, प्रशिक्षण और समानांतर शासन की शुरुआत होती है। यह कोई तात्कालिक गुस्से का विस्फोट नहीं बल्कि चरणबद्ध कब्जे की रणनीति है।
 
2. तेजी से फैलाव की पद्धति
 
छोटे-छोटे ठिकानों से शुरुआत कर उन्होंने कई राज्यों तक फैला एक बड़ा कॉम्पैक्ट इलाका बना लिया। साल 2001 में दक्षिण एशिया की कई माओवादी पार्टियों ने मिलकर CCOMPOSA (Coordination Committee of Maoist Parties and Organizations of South Asia) बनाया। इसमें भारत, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका की माओवादी पार्टियां शामिल थीं। इसका लक्ष्य था एक “कॉम्पैक्ट रिवोल्यूशनरी जोन” (CRZ) बनाना, जो नेपाल से भारत के आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र और ओडिशा तक फैला था।
 
3. शहरी नक्सल और फ्रंट ऑर्गनाइजेशन
 
गाँवों में हथियारों का इस्तेमाल खुलकर होता है, जबकि शहरों में यही गतिविधियाँ NGO, मंच, यूनियन, सांस्कृतिक समूह, लॉ फर्म और डिजिटल कैंपेन के रूप में सामने आती हैं। इनका उद्देश्य भर्ती, प्रचार, लीगल-कवर और फंडरेजिंग है।
 
भीमा-कोरेगांव मामले की जांच में Popular Front of India (PFI) और CPI (माओवादी) के बीच गठजोड़ के प्रमाण मिले हैं। गृह मंत्रालय ने भी माओवादी सहयोगियों और PFI के बीच तालमेल को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बताया।
 
4. फंडिंग और सप्लाई चेन
 
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फंडिंग के तीन स्रोत हैं:
 
1. स्थानीय उगाही या "रेवोल्यूशनरी टैक्स"
 
2. वैचारिक चैनलों और फ्रंट संगठनों से चंदा
 
3. विदेशी कड़ियाँ
 
Institute of Defence Studies and Analyses की रिपोर्ट में CPI (माओवादी) की वार्षिक कलेक्शन ₹140 करोड़ आंकी गई है। मुठभेड़ों में विदेशी हथियारों की बरामदगी यह दिखाती है कि वे बाहरी स्रोतों से भी सप्लाई पाते हैं।
 
5. अंतरराष्ट्रीय कड़ियाँ
 
नक्सलियों को 1986-87 में LTTE से विस्फोटक तकनीक का प्रशिक्षण मिला था। बाद में 2001 में फिलीपींस के विशेषज्ञों ने बस्तर में माओवादी कैडरों को प्रशिक्षित किया।
 
भारत सरकार ने 2014 में स्वीकार किया कि CPI (माओवादी) का फिलीपींस और तुर्की के संगठनों से गहरा संबंध है। साथ ही मणिपुर के RPF/PLA, नागालैंड के NSCN(IM) और असम के ULFA जैसे समूहों से भी उनके रणनीतिक समझौते रहे हैं।
 
यूरोप के जर्मनी, फ्रांस, हॉलैंड, तुर्की और इटली में उनके लिए वैचारिक प्रचार होता है। CPI(ML)(नक्सलबाड़ी) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर दोनों ही “Revolutionary Internationalist Movement (RIM)” के सदस्य भी रहे हैं।
 
“जनजातीय अधिकार” का छलावा
 
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जनजातीय समाज को जिनकी जरूरत है वह है: स्कूल, अस्पताल, सड़क, वन उत्पाद का बेहतर दाम और ग्रामसभा का सम्मान। मगर नक्सली इन्हीं ढांचों को निशाना बनाते हैं ताकि लोग हमेशा भय और निर्भरता में जकड़े रहें। यह बताता है कि उनकी “जनजातीय अधिकारों की लड़ाई” असल में सिर्फ एक ढाल है।
 
सरकारी प्रतिक्रिया
 
भारत सरकार ने इस जटिल नेटवर्क से निपटने के लिए चार-आयामी रणनीति अपनाई है:
 
1. सुरक्षा उपाय
 
2. विकास कार्य
 
3. स्थानीय समुदायों के अधिकार
 
4. जनमत प्रबंधन
 
सरकार का मानना है कि संयुक्त पुलिस कार्रवाई, केंद्रित विकास प्रयास और गवर्नेंस सुधार से ही स्थायी समाधान संभव है।
 
निष्कर्ष
 
यह स्पष्ट है कि नक्सली विद्रोह केवल स्थानीय असंतोष नहीं बल्कि एक संगठित अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है। CCOMPOSA से लेकर LTTE के प्रशिक्षण, फिलीपींस और यूरोपीय देशों से समर्थन, और उत्तर-पूर्वी विद्रोही समूहों के सहयोग तक - यह सब नक्सलवाद की वैश्विक जड़ों को दर्शाता है।
 
जब तक इस समस्या को केवल स्थानीय नजरिये से देखा जाएगा, तब तक इसका स्थायी समाधान संभव नहीं है। भारत को इस बहुआयामी चुनौती से निपटने के लिए व्यापक, समन्वित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सशक्त रणनीति अपनानी होगी।
 
लेख
 
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आदर्श गुप्ता
युवा शोधार्थी
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