दिल्ली की सर्वोच्च अदालत में 71 वर्षीय वकील ने चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकते हुए कहा, “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे।” यह घटना आस्था से उपजा आक्रोश थी, लेकिन लेफ्ट विचारधारा वालों ने इसे जाति का मुद्दा बना दिया। घटना के कुछ ही मिनटों में वामपंथी मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग ने इसे “दलित चीफ जस्टिस पर जातिवादी हमला” बता दिया।
वामपंथी विचारधारा के लोग हर उस विरोध को जाति, धर्म और वर्ग के चश्मे से देखते हैं जो सनातन या हिंदू आस्था से जुड़ा हो। यहां भी यही हुआ। जूता फेंकने वाले वकील ने कहीं जाति का नाम नहीं लिया, किसी को अपमानित नहीं किया, सिर्फ इतना कहा कि “हम सनातन का अपमान नहीं सहेंगे।” यह गुस्सा उस वक्त उभरा जब जस्टिस गवई ने खजुराहो में भगवान विष्णु की टूटी प्रतिमा की बहाली पर चल रही सुनवाई में कहा, “आप खुद जाकर भगवान से कहिए, अगर आप सच्चे भक्त हैं।” यह टिप्पणी कई आस्थावान हिंदुओं को असंवेदनशील लगी।
वकील का कदम गलत था, कानूनन अपराध भी है, लेकिन यह जातिवादी नहीं था। यह धार्मिक आस्था से उपजा भावनात्मक प्रतिवाद था। फिर भी लेफ्ट गैंग ने इसे “दलित पर हमला” कहकर पूरे मामले का फोकस बदल दिया।
2014 के बाद से जब नरेंद्र मोदी ने हिंदू समाज को जाति से ऊपर उठाकर एक पहचान में जोड़ा, तब से वामपंथी और विपक्षी दलों की राजनीति डगमगा गई। ऐसे में उन्हें फिर वही पुराना हथियार मिला - जाति का जहर। हर चुनाव में यही एजेंडा चलता है: “ब्राह्मणवादी हिंदुत्व”, “आरक्षण खत्म करने की साजिश”, और अब “दलित सीजेआई पर हमला।”
यह वही तंत्र है जिसने 2024 के चुनावों से पहले अमित शाह का फर्जी वीडियो फैलाया था कि भाजपा आरक्षण खत्म करेगी। अब वही लोग सनातन धर्म की रक्षा के नारे को भी जातिवाद में बदल रहे हैं, क्योंकि उन्हें हिंदू एकता सबसे ज्यादा डराती है।
जब इस्लामिक कट्टरपंथी “सर तन से जुदा” के नारे लगाते हैं, तब यही लेफ्ट खेमे के लोग चुप रहते हैं। नुपुर शर्मा मामले में जब देशभर में हिंसा फैली, तब सुप्रीम कोर्ट ने यह तक कह दिया कि “नुपुर शर्मा देश में हिंसा की वजह हैं।” उस वक्त किसी सेक्युलर नेता या बुद्धिजीवी ने कट्टरपंथियों की निंदा नहीं की। मगर अब, जब एक वकील ने सनातन के अपमान पर गुस्सा जताया, तो पूरा लेफ्ट गैंग उसे “दलित विरोधी” बताने में जुट गया।
विडंबना यह है कि जब जर्नलिस्ट जरनैल सिंह ने 2009 में गृह मंत्री चिदंबरम पर जूता फेंका था, तब यही लेफ्ट मीडिया उसे “साहसी विरोध” बता रहा था। जब इराकी पत्रकार ने जॉर्ज बुश पर जूता फेंका, तो लेफ्ट ने उसे “विद्रोह का प्रतीक” कहा। लेकिन जैसे ही मामला सनातन धर्म से जुड़ा और आरोपी हिंदू निकला, पूरा तंत्र नैतिकता का भाषण देने लगा।
वामपंथियों को न तो चीफ जस्टिस की गरिमा से मतलब है और न ही न्यायपालिका की प्रतिष्ठा से। उन्हें तो बस हर घटना में “जाति” का तत्व जोड़कर हिंदू समाज को बांटने का मौका चाहिए। यही कारण है कि जब कोई हिंदू अपनी आस्था के लिए आवाज उठाता है, तो उसे कट्टर कहा जाता है, लेकिन जब कोई दूसरे धर्म का व्यक्ति धमकी देता है, तो उसे “भावनात्मक प्रतिक्रिया” बताया जाता है।
वामपंथियों को यह समझना चाहिए कि सनातन धर्म किसी एक जाति का नहीं, बल्कि पूरी भारतीय सभ्यता का प्रतीक है। संत रविदास, कबीर, चोखामेला जैसे अनेक संत दलित समुदाय से आए और उन्होंने सनातन की ही साधना की। इसलिए जब कोई कहता है “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे”, वह पूरे समाज की भावना का प्रतिनिधित्व करता है, न कि किसी जाति का।
71 वर्षीय वकील का कृत्य अनुचित था, लेकिन उससे भी बड़ा अपराध है लेफ्ट की वह मानसिकता, जो हर धार्मिक भावना को तोड़-मरोड़कर जातिवाद में बदल देती है। लेफ्ट को समझना चाहिए कि हिंदू समाज अब जाग चुका है, और वह इस विभाजनकारी राजनीति के जाल में फिर नहीं फंसने वाला। सनातन धर्म किसी एक वर्ग की नहीं, बल्कि पूरी भारत माता की आत्मा है।
लेख
शोमेन चंद्र