इस्लामवादी सोच का खौफनाक सच सामने

20 Nov 2025 12:19:12
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दिल्ली के आत्मघाती हमलावर उमर उन नबी का वीडियो बताता है कि कौन, क्या, कब, कहां, क्यों और कैसे आतंक की जड़ें फैलाता है और कैसे इस्लामवादी सोच ऐसे हमले तैयार करती है।
 
दिल्ली में 10 नवंबर को हुए आत्मघाती धमाके ने साफ कर दिया कि हमलावर कोई भटका युवक नहीं था। वह एक तय विचारधारा का अनुयायी था। वह खुद को अपराधी नहीं मानता था। वह अपनी बात बेहद साफ और ठंडे दिमाग से रखता है। वह बताता है कि वह गैर मुसलमानों और कथित धर्मत्यागियों को मारने को धार्मिक कर्तव्य मानता है। वह खुद को संगठन का साधारण मोहरा नहीं समझता। वह खुद को एक धार्मिक आदेश का पालनकर्ता मानता है।
 
जांच एजेंसियां बताती हैं कि इस मॉड्यूल में कश्मीरी मूल के डॉक्टर और तकनीकी रूप से मजबूत लोग शामिल थे। जैश से जुड़े इस नेटवर्क ने 2900 किलो विस्फोटक जुटाया। इस नेटवर्क ने महीनों तक योजना बनाई और कई राज्यों में ठिकाने तैयार किए। कुछ दिन बाद श्रीनगर के एक थाने में जब जब्त विस्फोटक फटा तो नौ पुलिसकर्मी शहीद हुए। यह हादसा भी उसी नेटवर्क की मौजूदगी को उजागर करता है। यह पूरा तंत्र पाकिस्तानी हैंडलरों, भारतीय भर्ती एजेंटों और ऑनलाइन कट्टरता वाले ठिकानों से एक साथ चलता है।
 
 
इसी बीच NIA ने जांच में पाया कि यह गिरोह सिर्फ कार बम नहीं बनाता था। वह हमास की ड्रोन रणनीति की नकल भी करता था। गिरफ्तार जासिर बिलाल वानी ड्रोन में भारी बैटरी और अधिक विस्फोटक फिट करता था। वह लाइव कैमरा भी जोड़ता था। वह कच्चे रॉकेट बनाने की भी कोशिश करता था। वह चाहता था कि दिल्ली के भीड़भाड़ वाले इलाके में विस्फोटक भरा ड्रोन उड़ाकर ऊपर से धमाका करे। यह योजना भारत में पहली बार बड़े पैमाने की हवाई वारदात को जन्म दे सकती थी।
 
आतंकी गिरोह तकनीक के हर नए रूप को अपनाता है। कभी अल-कायदा सैटेलाइट फोन का सहारा लेता था। बाद में ISIS सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता था। हमास ने ड्रोन को हथियार बनाया। अब वही तरीका भारत में भी दिखाई देता है।
 
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लेकिन हर बार एक और चेहरा भी सामने आता है। जब भी इस्लामवादी आतंकी खुद अपने वीडियो में धार्मिक आधार बताते हैं, तब एक खास बुद्धिजीवी वर्ग असली मुद्दे से ध्यान हटाता है। यह वर्ग मीडिया को दोषी बताता है। यह कहता है कि वीडियो दिखाना सनसनी है। यह लोग कभी हमलावर की विचारधारा पर सवाल नहीं उठाते। यह लोग कभी इस्लामवादी कट्टरता की जड़ें उजागर नहीं होने देते। वे बहस को भटकाकर आतंक की वैचारिक नींव को सुरक्षित रखते हैं।
 
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जब अपराधी हिंदू होता है तो यही लोग तुरन्त उसे सामूहिक पहचान से जोड़ते हैं। पर जब हमलावर खुलकर कुरानी आदेश और धार्मिक औचित्य का हवाला देता है, तब यह लोग चुप्पी ओढ़ लेते हैं और चेतावनी देते हैं कि विचारधारा को दोष मत दो।
 
यह दोहरा रवैया समाज को भ्रमित करता है। यह रवैया आतंक की जड़ों को बचाता है। दिल्ली हमले में वीडियो, ड्रोन योजना और उसके बाद की बौद्धिक कसरतें साफ कर देती हैं कि दुनिया एक विचार से लड़ रही है। हथियार बदल रहे हैं, पर ईंधन वही है।
 
लेख
शोमेन चंद्र
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