जाति की राजनीति के लिए सेना को घसीटा, राहुल गांधी ने फिर तोड़ी मर्यादा

06 Nov 2025 12:26:50
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बिहार के कुटुंबा में 4 नवंबर को राहुल गांधी ने एक बार फिर अपने शब्दों से विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि “देश की 10 प्रतिशत आबादी न्यायपालिका, नौकरशाही, व्यापार और यहां तक कि सेना को नियंत्रित करती है।” यह बयान न केवल भ्रामक है, बल्कि देश की संस्थाओं पर सीधा प्रहार है।
 
राहुल गांधी ने मंच से कहा कि “90 प्रतिशत आबादी जो दलित, पिछड़ा, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्ग से है, उन्हें कहीं प्रतिनिधित्व नहीं मिलता।” यह बयान सुनने में भले सामाजिक न्याय की बात लगे, लेकिन असल में यह जातीय विभाजन को हवा देने की चाल है। बिहार जैसे राज्य में, जहां चुनाव जातीय समीकरणों पर टिका रहता है, राहुल गांधी ने अपनी राजनीति का केंद्र “10 बनाम 90” की लड़ाई को बना दिया है।
 
वास्तव में उनके इस दावे का कोई आधिकारिक आधार नहीं है। सेना, न्यायपालिका या उद्योगों में किसी जाति विशेष का वर्चस्व साबित करने वाला कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है। उल्टा, देश के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई स्वयं अनुसूचित जाति से आते हैं। ऐसे में यह कहना कि “दलित या पिछड़े वर्ग का कोई प्रतिनिधित्व नहीं” न केवल गलत है, बल्कि जानबूझकर फैलाया गया भ्रम है।
 
 
राहुल गांधी ने जिस तरह भारतीय सेना को भी अपने बयान में घसीटा, वह बेहद गैरजिम्मेदाराना कदम है। सेना देश की वह संस्था है जो धर्म, जाति और क्षेत्र से ऊपर उठकर “राष्ट्र प्रथम” की भावना के साथ काम करती है। सैनिक एक-दूसरे के लिए अपनी जान तक की बाजी लगाते हैं। ऐसे में यह कहना कि सेना किसी “10 प्रतिशत” के नियंत्रण में है, उन लाखों सैनिकों का अपमान है जो सीमा पर देश की रक्षा कर रहे हैं।
 
यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने सेना पर विवादित टिप्पणी की हो। कुछ महीने पहले उन्होंने कहा था कि “चीन की सेना अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सैनिकों को पीटती है।” तब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाई थी। बावजूद इसके उन्होंने फिर से वही गलती दोहराई। यह स्पष्ट है कि राहुल गांधी अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए अब देश की संस्थाओं की साख को निशाना बना रहे हैं।
 
राहुल गांधी के बयानों में न तो आंकड़े हैं, न जिम्मेदारी। वे हर प्रदेश में नया चेहरा अपनाते हैं। कहीं धर्मनिरपेक्ष नेता बनते हैं, कहीं पिछड़ों के मसीहा, तो कहीं “गरीबों के हमदर्द।” लेकिन हर जगह उनका मकसद एक ही रहता है, समाज को बांटना और राजनीतिक लाभ लेना।
 
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उनका यह कहना कि 90 प्रतिशत जनता “अदृश्य और पीड़ित” है, उन करोड़ों भारतीयों का अपमान है जिन्होंने मेहनत, शिक्षा और लगन से अपना स्थान बनाया है। यह वही देश है जिसने आरक्षण, शिक्षा सुधार और रोजगार योजनाओं के जरिये पिछड़े वर्गों के लिए समान अवसर दिए हैं।
राहुल गांधी का यह बयान न केवल तथ्यों से परे है, बल्कि देश की एकता पर भी आघात करता है। जब कोई नेता जनता को यह कहे कि सेना, न्यायपालिका और उद्योग “कुछ लोगों” के नियंत्रण में हैं, तो वह केवल सरकार की आलोचना नहीं करता, बल्कि पूरे गणराज्य की नींव को कमजोर करता है।
 
राहुल गांधी को समझना चाहिए कि सत्ता का रास्ता नफरत और भ्रम से नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और सच्चाई से गुजरता है। दुर्भाग्य से उनका “10 प्रतिशत बनाम 90 प्रतिशत” भाषण समाज को जोड़ने की नहीं, तोड़ने की कोशिश है, और यही उनके नेतृत्व की सबसे बड़ी विफलता है।
 
लेख
शोमेन चंद्र
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