केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन फिर एक बार चर्चा में हैं, इस बार वजह है कोच्चि रेलवे स्टेशन पर छात्रों द्वारा गाया गया एक गीत। एर्नाकुलम-बेंगलुरु वंदे भारत ट्रेन के उद्घाटन के दौरान कुछ छात्रों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का गण गीत गाया, जिसके बाद विजयन ने इसे ‘सांप्रदायिक एजेंडा’ बता दिया।
अब सवाल यह है कि अगर कुछ छात्र किसी गीत को गा रहे हैं, तो उसमें क्या बुराई है? भारत में हर नागरिक को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। अगर कोई विद्यार्थी किसी संगठन का गीत गा रहा है, तो क्या इसका मतलब यह है कि वह सांप्रदायिक हो गया? संविधान हर नागरिक को समान अधिकार देता है, चाहे वह किसी भी विचारधारा या विश्वास से जुड़ा क्यों न हो।
विजयन खुद घोषित नास्तिक हैं। उनका और उनकी पार्टी CPI(M) का इतिहास धर्म और परंपराओं के विरोध से जुड़ा रहा है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि उन्हें किसी भी धार्मिक या राष्ट्रवादी भावना से एलर्जी हो। लेकिन क्या एक नास्तिक मुख्यमंत्री को यह अधिकार है कि वह यह तय करे कि कौन सा गीत देशभक्तिपूर्ण है और कौन नहीं?
RSS का गण गीत भारत की संस्कृति और राष्ट्रभक्ति की भावना को दर्शाता है। इसमें किसी धर्म के खिलाफ कुछ नहीं कहा गया। फिर इसे सांप्रदायिक बताने का आधार क्या है? अगर छात्रों ने इसे उत्साह से गाया, तो उसमें राजनीति क्यों खोजी जा रही है?
यह भी ध्यान देने योग्य है कि उद्घाटन समारोह में कोई जबरदस्ती नहीं थी। किसी छात्र को मजबूर नहीं किया गया। ऐसे में इसे सरकारी मंच पर “संघ का प्रचार” बताना न केवल अतिशयोक्ति है बल्कि एक विकृत मानसिकता का संकेत भी है।
विजयन ने अपने बयान में कहा कि रेलवे अब “RSS के एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।” यह वही विजयन हैं जिन्होंने कुछ दिन पहले RSS की तुलना इजराइल के जायोनीवादियों से की थी। यह तुलना ही बताती है कि उनका विरोध वैचारिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत है। जब भी कोई राष्ट्रभक्ति की बात करता है, वामपंथी राजनीति तुरंत उसे “सांप्रदायिकता” का नाम दे देती है।
कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने भी इस पर रेल मंत्री से स्पष्टीकरण मांगा। कांग्रेस की यह प्रतिक्रिया भी किसी विचारधारा से नहीं, बल्कि वामपंथ के साथ की जा रही राजनीतिक दोस्ती से प्रेरित लगती है। यही कांग्रेस जब धार्मिक आयोजनों में तुष्टिकरण करती है, तब उसे धर्मनिरपेक्षता याद नहीं आती।
अगर छात्रों ने एक देशभक्ति गीत गा लिया तो उसमें सांप्रदायिकता कहां से आ गई? क्या अब भारत में गीत भी राजनीतिक नज़रिए से तौले जाएंगे? सच्चाई यह है कि वामपंथी और कांग्रेस, दोनों ही विचारधाराएं हर उस चीज़ से असहज हैं जो भारत की परंपरा, संस्कृति और राष्ट्रीयता की भावना को दर्शाती है।
विजयन और उनके साथियों को शायद यह समझना होगा कि भारत किसी विचारधारा की जागीर नहीं है। यहां हर किसी को बोलने, गाने और सोचने का अधिकार है। किसी के गीत से डरना इस बात का सबूत है कि असल में असहिष्णु कौन है।
लेख
शोमेन चंद्र