भारत 13 दिसंबर 2025 को संसद पर हुए उस भयानक आतंकी हमले की चौबीसवीं बरसी मना रहा है जिसने पूरे देश को झकझोर दिया था। यह हमला सिर्फ संसद भवन पर हमला नहीं था बल्कि भारतीय लोकतंत्र पर सीधा प्रहार था। इस वारदात को पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के 5 आतंकियों ने अंजाम दिया था। इन दोनों संगठनों ने पहले भी कई बार भारत में हिंसा फैलाई थी और इस हमले ने एक बार फिर दुनिया के सामने उनके क्रूर चरित्र को उजागर किया।
13 दिसंबर 2001 की सुबह संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। इसी दौरान सफेद एंबेसडर कार संसद परिसर की ओर बढ़ी। कार पर गृह मंत्रालय का फर्जी स्टिकर लगा था। आतंकियों ने सुरक्षा घेरे तोड़ते हुए उपराष्ट्रपति के काफिले की एक कार से टक्कर भी मारी। उनसे पहले कि सुरक्षाकर्मी कुछ समझ पाते, आतंकियों ने AK-47, ग्रेनेड, ग्रेनेड लांचर और हैंडगन जैसे हथियारों से अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी। CRPF कांस्टेबल कमलेश कुमारी ने बहादुरी दिखाते हुए आतंकियों को रोकने की कोशिश की पर अंततः वे वीरगति को प्राप्त हो गईं।
हमले के समय संसद भवन के भीतर कई सांसद मौजूद थे, लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने सूझबूझ से उन्हें सुरक्षित बाहर निकाला। आतंकियों का इरादा बड़े नरसंहार का था, पर भारतीय सुरक्षा बलों ने अपनी जान दांव पर लगाकर उन्हें नाकाम किया। गोलीबारी के दौरान एक आतंकी ने आत्मघाती जैकेट विस्फोट से खुद को उड़ा लिया। बाकी 4 आतंकवादी भी मुठभेड़ में मारे गए। उनकी यह हार दुनिया को यह दिखाने के लिए काफी थी कि भारत अपने लोकतंत्र पर हमला करने वालों को कभी बख्शता नहीं।
जांच की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को मिली जिसे 1986 में आतंकवाद से जुड़े मामलों की पड़ताल के लिए बनाया गया था। जांच में अफजल गुरु और उसके चचेरे भाई शौकत हुसैन गुरु की भूमिका सामने आई। अदालत ने सबूतों के आधार पर अफजल गुरु को दोषी ठहराया और 2013 में तिहाड़ जेल में उसे फांसी दी गई। यह सजा उन सभी परिवारों के लिए न्याय का प्रतीक बनी जिन्होंने इस हमले में अपने प्रियजनों को खोया था।
संसद हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया। 2001 और 2002 में नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की सेनाओं ने भारी संख्या में सैनिक तैनात किए। पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को संरक्षण देकर केवल क्षेत्रीय शांति को बाधित किया। भारत ने हमेशा वैश्विक मंचों पर यह बात रखी कि पाकिस्तान आधारित आतंकी नेटवर्क दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।
13 दिसंबर 2001 का हमला भारतीय सुरक्षा तंत्र के लिए एक परीक्षा थी, लेकिन जवानों ने न सिर्फ आतंकियों को खत्म किया बल्कि भारत के लोकतंत्र की रक्षा भी की। आज देश उन 9 वीरों को नमन करता है जिन्होंने हमले को रोकने में अपनी जान दी। यह दिन हमें याद दिलाता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है और लश्कर-ए-तैयबा तथा जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से भारत को अब भी सतर्क रहना होगा।
देश इन वीरों की वीरता को श्रद्धांजलि अर्पित करता है और यह संकल्प दोहराता है कि भारत पर नजर उठाने वाली हर आतंकी साजिश का जवाब पूरी ताकत से मिलेगा।
लेख
शोमेन चंद्र