पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के खिलाफ केंद्र सरकार की बहु-एजेंसी कार्रवाई, जिसे आंतरिक रूप से ‘ऑपरेशन ऑक्टोपस’ कहा गया, भारत की आंतरिक सुरक्षा रणनीति में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखी जा रही है। यह अभियान केवल एक संगठन के खिलाफ कार्रवाई नहीं था, बल्कि एक जटिल वैचारिक, वित्तीय और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को एक साथ उजागर करने और ध्वस्त करने का प्रयास था।
सुरक्षा और खुफिया हलकों में इसे आने वाले वर्षों के लिए एक अहम केस स्टडी माना जा रहा है, जिसका अध्ययन न केवल भारत बल्कि अन्य देशों की एजेंसियां भी करेंगी।
इस ऑपरेशन का नेतृत्व गृह मंत्रालय के समन्वय में हुआ, जहां केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की स्पष्ट रणनीतिक दिशा और राजनीतिक इच्छाशक्ति निर्णायक साबित हुई। अभियान का उद्देश्य PFI के उस बहुस्तरीय ढांचे को तोड़ना था, जो सामाजिक संगठन की आड़ में वैचारिक कट्टरता, जमीनी नेटवर्क और अंतरराष्ट्रीय फंडिंग के सहारे काम कर रहा था।
जांच एजेंसियों के अनुसार, यह नेटवर्क केवल स्थानीय स्तर तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके तार देश और विदेश दोनों में फैले हुए थे।
‘ऑपरेशन ऑक्टोपस’ की सबसे उल्लेखनीय विशेषता रही विभिन्न जांच और खुफिया एजेंसियों के बीच अभूतपूर्व समन्वय। इंटेलिजेंस ब्यूरो, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग, राष्ट्रीय जांच एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने साझा सूचनाओं और संयुक्त विश्लेषण के आधार पर काम किया।
कमजोर स्थानीय संपर्कों से लेकर मजबूत अंतरराष्ट्रीय कड़ियों तक, हर स्तर पर नेटवर्क की पहचान की गई और चरणबद्ध तरीके से कार्रवाई की गई।
जांच के दौरान सामने आया कि PFI का नेटवर्क केवल भारत तक सीमित नहीं था। एजेंसियों ने आतंकी फंडिंग के उन रास्तों को चिन्हित किया, जो पश्चिम एशिया, खाड़ी देशों और तुर्की तक फैले हुए थे। जांच एजेंसियों के अनुसार, तुर्की से जुड़े कुछ वैचारिक और संगठनात्मक ढांचे तथा मुस्लिम ब्रदरहुड से संबद्ध नेटवर्कों के माध्यम से धन और वैचारिक समर्थन जुटाने की कोशिशें की जा रही थीं। इस धन का उपयोग संगठन विस्तार, प्रशिक्षण और प्रचार गतिविधियों के लिए किया जा रहा था। इन कड़ियों को चिन्हित कर कानूनी रूप से काटना इस अभियान की बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।
प्रवर्तन निदेशालय और एनआईए की जांच में यह भी सामने आया कि फंडिंग को छोटे-छोटे लेन-देन, नकद संग्रह और कथित चैरिटी गतिविधियों के माध्यम से छिपाया जा रहा था। वित्तीय लेन-देन, हवाला नेटवर्क और डिजिटल ट्रेल्स की बारीकी से जांच की गई। एजेंसियों ने न केवल धन के स्रोतों की पहचान की, बल्कि उसके अंतिम उपयोग तक की पूरी श्रृंखला को जोड़ा। इसका प्रत्यक्ष परिणाम यह हुआ कि PFI का वित्तीय ढांचा लगभग पूरी तरह निष्क्रिय हो गया।
इस अभियान का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू वैचारिक चुनौती से निपटना था। जांच एजेंसियों का आकलन है कि कट्टरपंथ केवल हथियारों से नहीं, बल्कि संगठित विचारधारा से पनपता है। PFI पर आरोप रहा है कि वह युवाओं को एक विशेष वैचारिक ढांचे में ढालने, सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देने और लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास फैलाने की कोशिश कर रहा था। इसी संदर्भ में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसे कानूनों का उपयोग किया गया, ताकि जांच और अभियोजन को कानूनी मजबूती मिल सके।
सूत्रों के मुताबिक, ‘ऑपरेशन ऑक्टोपस’ के दौरान आधुनिक निगरानी और गिरफ्तारी रणनीतियों का इस्तेमाल किया गया। मैन-टू-मैन मार्किंग और कवर शैडो जैसी तकनीकों के जरिए यह सुनिश्चित किया गया कि कोई भी प्रमुख संदिग्ध गिरफ्तारी से पहले फरार न हो सके। कई राज्यों में एक साथ कार्रवाई कर नेटवर्क को प्रतिक्रिया देने का अवसर नहीं दिया गया। यह रणनीति भारतीय एजेंसियों की पेशेवर क्षमता और परिचालन अनुभव को दर्शाती है।
राजनीतिक स्तर पर इस पूरे अभियान को स्पष्ट समर्थन प्राप्त रहा। गृह मंत्री अमित शाह ने लगातार यह संदेश दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा और कानून के दायरे में रहते हुए हर उस संगठन के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, जो देश की शांति, एकता और संवैधानिक व्यवस्था के लिए खतरा बने। अधिकारियों का कहना है कि इस स्पष्टता ने एजेंसियों के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाया।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस अभियान की सफलता का कारण केवल बल प्रयोग नहीं, बल्कि खुफिया सूचनाओं की सटीकता और कानूनी तैयारी भी रही। अदालतों में पेश किए गए साक्ष्य, दस्तावेज और डिजिटल प्रमाण इस तरह संकलित किए गए कि जांच को कानूनी चुनौतियों का सामना न करना पड़े। इसी वजह से ‘ऑपरेशन ऑक्टोपस’ को एक तात्कालिक कार्रवाई नहीं, बल्कि संस्थागत दक्षता का उदाहरण माना जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषकों का भी मानना है कि भारत का यह मॉडल उन देशों के लिए उपयोगी हो सकता है, जो कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई में कानूनी और संरचनात्मक बाधाओं का सामना करते हैं। भारत ने यह दिखाया कि लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर रहते हुए भी संगठित और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्कों को प्रभावी ढंग से तोड़ा जा सकता है।
हालांकि, इस कार्रवाई को लेकर कुछ आलोचनाएं भी सामने आईं। नागरिक स्वतंत्रताओं पर असर को लेकर सवाल उठाए गए। सरकार और जांच एजेंसियों का रुख इस पर स्पष्ट रहा कि कार्रवाई किसी समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि कानून तोड़ने वाले संगठनों और व्यक्तियों के खिलाफ है। अधिकारियों का कहना है कि हर कदम विधिसम्मत प्रक्रिया के तहत उठाया गया और किसी निर्दोष को निशाना नहीं बनाया गया।
आज, जब PFI का ढांचा लगभग निष्क्रिय हो चुका है और उसका शीर्ष नेतृत्व हिरासत में है, ‘ऑपरेशन ऑक्टोपस’ को भारत की आंतरिक सुरक्षा नीति में एक निर्णायक अध्याय के रूप में देखा जा रहा है। यह अभियान केवल एक संगठन को तोड़ने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने यह संदेश भी दिया कि भारत अपनी आंतरिक सुरक्षा को लेकर सतर्क, संगठित और दृढ़ है।
आने वाले वर्षों में, जब सुरक्षा एजेंसियां इस अभियान का अध्ययन करेंगी, तो यह स्पष्ट होगा कि कैसे खुफिया सूचनाओं, कानूनी ढांचे, राजनीतिक इच्छाशक्ति और जमीनी कार्रवाई के समन्वय से एक जटिल नेटवर्क को ध्वस्त किया गया। ‘ऑपरेशन ऑक्टोपस’ भारत की सुरक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु बन चुका है, एक ऐसा उदाहरण, जो यह दिखाता है कि लोकतांत्रिक मूल्यों के भीतर रहते हुए भी राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा सकती है।