केरल में छत्तीसगढ़ के मजदूर राम नारायण बघेल की नृशंस हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। भीड़ ने बांग्लादेशी समझकर जिस तरह एक निर्दोष भारतीय नागरिक को पीट-पीटकर मार डाला, उसने वामपंथी शासन की कथनी और करनी के बीच की खाई उजागर कर दी। लेकिन इस घटना के बाद जो राजनीति शुरू हुई, वह उससे भी अधिक शर्मनाक रही। CPI-M शासित केरल और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस दोनों ने सच से भागकर एक सुविधाजनक दुश्मन गढ़ने की कोशिश की।
केरल के मंत्री एमबी राजेश ने बिना किसी ठोस जांच और न्यायिक निष्कर्ष के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर “नफरत फैलाने” का आरोप मढ़ दिया। उन्होंने गिरफ्तार आरोपियों में कुछ लोगों को संघ से जोड़कर पूरे संगठन को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की। यह वही पुराना वामपंथी हथकंडा है, जिसमें अपराध की जिम्मेदारी अपराधियों की बजाय एक वैचारिक संगठन पर डाल दी जाती है। सवाल यह है कि अगर केरल में कानून व्यवस्था मजबूत थी, तो एक प्रवासी मजदूर को सरेआम 80 से ज्यादा चोटें कैसे लगीं। इस सवाल से CPI-M भागती दिखी।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने भी इस मौके को राजनीति का मंच बना लिया। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि “देश में नफरत का माहौल” ऐसी घटनाओं का कारण है। लेकिन कांग्रेस यह बताने से बचती रही कि केरल में उनकी वैचारिक सहयोगी CPI-M की सरकार है। कांग्रेस ने दोष सीधे RSS पर डाल दिए, जबकि पीड़ित परिवार आज भी मुआवजे और न्याय के लिए भटक रहा है। यह रवैया बताता है कि कांग्रेस को पीड़ित से ज्यादा अपने राजनीतिक नैरेटिव की चिंता है।
इस पूरे घटनाक्रम में RSS पर आरोप लगाना आसान था, लेकिन सच यह है कि संघ न तो किसी मॉब लिंचिंग का समर्थन करता है और न ही निर्दोष की हत्या को सही ठहराता है। संघ ने हमेशा कानून के दायरे में रहकर समाज सेवा और राष्ट्रीय एकता की बात की है। लेकिन वामपंथ और कांग्रेस के लिए RSS एक स्थायी खलनायक है, क्योंकि इससे उन्हें अपने प्रशासनिक फेलियर छिपाने में मदद मिलती है।
इसी मानसिकता का दूसरा चेहरा दुर्ग में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बयान में दिखा। बघेल ने कहा कि मुगलों और सुल्तानों के शासन में भी हिंदू खतरे में नहीं था और आज BJP-RSS डर दिखाकर राजनीति कर रहे हैं। यह बयान न केवल ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी करता है, बल्कि लाखों हिंदुओं के ऐतिहासिक अनुभव का अपमान भी करता है। आक्रमणों, मंदिर विध्वंस और जबरन कन्वर्जन को नकारकर बघेल एक बार फिर तुष्टिकरण की राजनीति करते नजर आए।
भूपेश बघेल ने कथावाचकों और धार्मिक आस्थाओं पर हमला करके खुद को प्रगतिशील दिखाने की कोशिश की, लेकिन वे यह भूल गए कि उनकी सरकार के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में जनजाति क्षेत्रों में अवैध कन्वर्जन और सामाजिक तनाव के कई मामले सामने आए। तब न तो उनकी सरकार ने सख्ती दिखाई और न ही कांग्रेस ने आत्ममंथन किया।
CPI-M और कांग्रेस दोनों का साझा एजेंडा साफ दिखता है। एक ओर केरल में वामपंथी शासन कानून व्यवस्था संभालने में विफल रहता है, दूसरी ओर छत्तीसगढ़ कांग्रेस अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए इतिहास और आस्था पर प्रहार करती है। दोनों ही दल RSS को निशाना बनाकर अपनी विफलताओं से ध्यान हटाना चाहते हैं।
राम नारायण बघेल की हत्या कोई वैचारिक बहस का विषय नहीं, बल्कि शासन की जवाबदेही का सवाल है। लेकिन CPI-M और कांग्रेस ने इस सवाल को दबाकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चुनी। यही कारण है कि जनता अब इन दलों की बातों पर भरोसा नहीं करती। तुष्टिकरण और भ्रम फैलाने की राजनीति ने इन पार्टियों को सच्चाई से दूर कर दिया है, और यही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक हार है।
लेख
शोमेन चंद्र