माओ त्से तुंग ने चीन में सत्ता हासिल करने के लिए क्रांति का नारा दिया, लेकिन उसने देश को विचारधारात्मक कट्टरता, व्यापक हिंसा और मानव त्रासदी की आग में झोंक दिया। माओ ने जिस
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) को मजबूत किया, उसी पार्टी ने सत्ता को बनाए रखने के लिए भय, दमन और झूठे आदर्शों का सहारा लिया। माओ ने खुद को जननेता के रूप में प्रस्तुत किया, पर उसने चीन की जनता को प्रयोगशाला बना दिया और करोड़ों लोगों की जान जोखिम में डाल दी।
माओ ने 1949 के बाद सत्ता संभालते ही जमीन सुधार के नाम पर हिंसक अभियान चलाया। उसने गांवों में वर्ग संघर्ष को भड़काया और किसानों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा किया। पार्टी कैडरों ने सार्वजनिक अदालतें लगाईं, जमींदारों और कथित विरोधियों को भीड़ के सामने अपमानित किया और हजारों लोगों को मौत के घाट उतारा। माओ ने कानून और नैतिकता को कुचलकर सत्ता का भय स्थापित किया।
इसके बाद माओ ने ग्रेट लीप फॉरवर्ड जैसी विनाशकारी योजना लागू की। उसने उत्पादन बढ़ाने के अव्यावहारिक लक्ष्य तय किए और ग्रामीणों को जबरन सामूहिक फार्मों में झोंक दिया। पार्टी अधिकारियों ने झूठे आंकड़े पेश किए और माओ ने वास्तविकता देखने से इनकार किया। नतीजा भीषण अकाल के रूप में सामने आया। इतिहासकार करोड़ों लोगों की भूख से मौत की बात करते हैं। माओ ने अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय आलोचकों को दुश्मन घोषित किया और दमन तेज किया।
माओ ने सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर चीन को अराजकता में धकेल दिया। उसने युवाओं को रेड गार्ड बनाकर समाज के खिलाफ खड़ा किया। इन समूहों ने शिक्षकों, बुद्धिजीवियों और पारंपरिक संस्थानों पर हमला किया। माओ ने संस्कृति, शिक्षा और परंपरा को शत्रु बताकर पुस्तकालय जलवाए, मंदिर तोड़वाए और असहमति की हर आवाज को दबाया। लाखों लोग जेलों और श्रम शिविरों में सड़ते रहे। माओ ने व्यक्तिपूजा को बढ़ावा दिया और खुद को आलोचना से ऊपर बैठा दिया।
CCP ने माओ के नेतृत्व में एक सर्वसत्तावादी ढांचा खड़ा किया। पार्टी ने मीडिया, न्याय और प्रशासन को अपने नियंत्रण में रखा। असहमति को राष्ट्रद्रोह बताया गया। माओ ने राष्ट्र के हित की आड़ में सत्ता को केंद्रीकृत किया और भय का तंत्र बनाया। इस शासन ने मानवाधिकारों को कुचल दिया और समाज को स्थायी घाव दिए।
माओ की हिंसक विचारधारा चीन तक सीमित नहीं रही। इसी सोच ने भारत में माओवादी आतंकवाद को वैचारिक ईंधन दिया। भारत में सक्रिय माओवादी संगठन माओ की सशस्त्र क्रांति की अवधारणा को अपनाते हैं। ये समूह लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए हिंसा को साधन मानते हैं। माओ ने सत्ता के लिए बंदूक को वैध ठहराया और वही सोच भारत के जनजाति इलाकों में खून बहाती है। माओवादी नेता माओ को आदर्श मानकर सुरक्षा बलों, ग्रामीणों और विकास परियोजनाओं पर हमले करते हैं।
भारत में माओवादी आतंकवाद विकास के रास्ते में बाधा बनता है। ये संगठन स्कूल, सड़क और अस्पताल को निशाना बनाते हैं। वे जनजातियों को भ्रमित करते हैं और हिंसा को न्याय का नाम देते हैं। माओ की विचारधारा ने संघर्ष को स्थायी बनाने का पाठ पढ़ाया और शांति को कमजोरी बताया। यही कारण है कि भारत में माओवादी हिंसा निर्दोष जानें लेती रहती है।
माओ त्से तुंग का मूल्यांकन क्रांति के नारे से नहीं, उसके परिणामों से होना चाहिए। उसने चीन को भय, भूख और हिंसा दी। उसकी पार्टी ने सत्ता के लिए मानवता को कुचला। माओ की विरासत आज भी दुनिया के कई हिस्सों में हिंसक आंदोलनों को प्रेरित करती है। इतिहास स्पष्ट संदेश देता है कि विचारधारा जब इंसान से ऊपर बैठती है, तब विनाश तय हो जाता है।
लेख
शोमेन चंद्र