भारत के गौरवशाली स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में
30 दिसंबर 1943 का दिन स्वर्ण अक्षरों में चमकता है। आज से 82 साल पहले इसी ऐतिहासिक दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पोर्ट ब्लेयर में पहली बार भारतीय तिरंगा फहराया था। यह घटना केवल एक प्रतीक नहीं थी, बल्कि इसने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी। नेताजी ने अपनी उस महान प्रतिज्ञा को पूरा किया, जिसमें उन्होंने साल के अंत तक भारतीय भूमि पर कदम रखने का वादा किया था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वैश्विक परिस्थितियां तेजी से बदल रही थीं। जापान ने 1942 में ब्रिटिश सेना को हराकर इन द्वीपों पर अपना कब्जा जमा लिया था। इसके बाद जापान ने 29 दिसंबर 1943 को यह पूरा क्षेत्र नेताजी सुभाष चंद्र बोस की
आजाद हिंद सरकार को सौंप दिया। नेताजी 29 दिसंबर को पोर्ट ब्लेयर पहुंचे और वहां के लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। अगले दिन सुबह जिमखाना ग्राउंड पर एक विशाल जनसमूह उमड़ा। यहाँ नेताजी ने वह ऐतिहासिक तिरंगा फहराया, जिसके बीच की सफेद पट्टी पर चरखा बना हुआ था। यह पल हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण था क्योंकि अंडमान भारत का वह पहला भू-भाग बना जिसे गुलामी से मुक्ति मिली थी।
नेताजी ने अपनी इस यात्रा के दौरान अंडमान का नाम 'शहीद द्वीप' और निकोबार का नाम 'स्वराज द्वीप' रखा। उन्होंने पोर्ट ब्लेयर की उस कुख्यात सेल्यूलर जेल का भी दौरा किया जिसे अंग्रेज 'काला पानी' कहते थे। ब्रिटिश शासन इस जेल का उपयोग भारतीय क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए करता था। नेताजी ने वहां जाकर
वीर सावरकर जैसे महान सपूतों और बलिदानियों के प्रति अपनी गहरी श्रृद्धांजलि व्यक्त की। इस विशाल जेल की 694 कोठरियां आज भी उन अत्याचारों की गवाह हैं जो हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने सहे थे।
पोर्ट ब्लेयर में अपनी ऐतिहासिक गतिविधियों के बाद नेताजी 1 जनवरी को सिंगापुर पहुंचे। वहां उन्होंने अपने ओजस्वी भाषण से दुनिया को चौंका दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि आजाद हिंद फौज भारत में क्रांति की ऐसी ज्वाला जलाएगी जिसमें ब्रिटिश साम्राज्य जलकर राख हो जाएगा। उस समय जर्मनी और जापान सहित विश्व के नौ महान देशों ने आजाद हिंद सरकार को मान्यता प्रदान की थी। नेताजी ने जनरल लोकनाथन को इन द्वीपों का पहला गवर्नर नियुक्त किया और वहां नागरिक शासन की शुरुआत की।
अंडमान शब्द की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह मलय भाषा के 'हांदुमन' शब्द से आया है, जिसे हिंदू देवता हनुमान का रूप मानते हैं। यहाँ के 572 द्वीपों की श्रृंखला प्राकृतिक सुंदरता और वीरता की कहानियों से भरी है। आज यहाँ बना 'संकल्प स्मारक' हमें नेताजी के अदम्य साहस और आजाद हिंद फौज के बलिदान की याद दिलाता है। यह स्मारक उस अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है जिसने भारत की आजादी के मार्ग को प्रशस्त किया।
नेताजी का यह साहसिक कदम करोड़ों भारतीयों के दिलों में आजादी की नई उम्मीद बनकर उभरा। उन्होंने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय अपनी नियति खुद लिखने और अपनी मातृभूमि की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम हैं। आज भी जब हम पोर्ट ब्लेयर के आकाश में तिरंगे को लहराते हुए देखते हैं, तो हमें उन गुमनाम बलिदानियों और नेताजी के विराट व्यक्तित्व का स्मरण होता है जिन्होंने भारत माता के पैरों से गुलामी की बेड़ियाँ काट दी थीं।
लेख
शोमेन चंद्र