पहाड़ों की शांति को चीरते हुए, 22 अप्रैल 2025 में कश्मीर के पहलगाम में जो हुआ, उसने एक बार फिर कट्टरपंथी इस्लाम की असली, नंगी हकीकत दुनिया के सामने रख दी।
पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) के दरिंदों ने हिंदू पर्यटकों को नाम पूछकर, धार्मिक परीक्षा लेकर, सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया कि वे मुसलमान नहीं थे। क्या यही है इन कायरों की मर्दानगी?
28 मासूमों की हत्या और दर्जनों घायल... ये हमला कोई आकस्मिक हिंसा नहीं था, बल्कि सोची-समझी, योजनाबद्ध बर्बरता थी।
आतंकी हिंदुओं को चुन-चुनकर मार रहे थे और मुसलमानों को छोड़ते हुए कह रहे थे – "जाकर मोदी को बताओ!" आखिर क्यों?
क्योंकि ये कायर सामने से लड़ने की हिम्मत नहीं रखते; छिपकर, धोखे से मासूमों पर वार करना ही इनकी औकात है।
पहाड़ों से लेकर पेरिस तक, एक ही पैटर्न है — कहीं हिन्दू मारे जाते हैं, कहीं ईसाई, कहीं यहूदी और कहीं बौद्ध।
एक मजहब के कट्टर अनुयायी पूरी दुनिया में आतंक का जहर फैला रहे हैं। फ्रांस से लेकर श्रीलंका तक, कोई नहीं बचा।
आंकड़े बताते हैं कि 1979 से 2025 तक, 66,000 से ज्यादा इस्लामी आतंकी हमलों में करीब ढाई लाख निर्दोषों की जान गई।
और 84% से ज्यादा हमले 2013 के बाद हुए हैं। भारत तो इस आतंक का सबसे बड़ा शिकार है।
इन आतंकी घटनाओं की जड़ें वहीं हैं — जहरीले मदरसे, नफरत फैलाने वाली आयतें और बचपन से भरी गई नफरत।
कुरान की 26 से ज्यादा ऐसी आयतें हैं जो साफतौर पर गैर-मुसलमानों से नफरत और हिंसा की सीख देती हैं।
कोई भी बच्चा जिसे इस जहर के साथ बड़ा किया जाए, आखिर बड़ा होकर क्या करेगा?
लेकिन सबसे शर्मनाक है दुनिया का वामपंथी तबका, जो या तो अज्ञानवश या जानबूझकर इन आतंकियों का बचाव करता है।
कहीं आतंकवादियों के मानवाधिकार की दुहाई दी जाती है, तो कहीं आतंक की बात करने वालों को 'इस्लामोफोबिक' कहकर चुप कराया जाता है।
अमेरिका में जज ट्रम्प के मुस्लिम बैन को रोकते हैं, इंग्लैंड में पाकिस्तानी गैंगरेप विक्टिम्स को चुप रहने को कहा जाता है, भारत में गैर-मुस्लिमों की रक्षा के लिए बने कानून को पलटने की कोशिश होती है। आखिर क्यों? किसके दबाव में?
कट्टर इस्लाम कोई क्षेत्रीय समस्या नहीं है, यह वैश्विक महामारी बन चुका है। जब तक दुनिया एकजुट होकर इन जहरीले मदरसों को बंद नहीं करती, आतंक फंडिंग रोककर, पाकिस्तान जैसे आतंक प्रायोजकों को अलग-थलग नहीं करती — तब तक मासूम मरते रहेंगे, बस्तियां जलती रहेंगी और सभ्यताएं मिटती रहेंगी।
इतिहास हमें बताता है कि जब सभ्यताएं बर्बरता के सामने झुकती नहीं, बल्कि एकजुट होकर मुकाबला करती हैं, तभी विजय मिलती है — जैसा स्पेन में 'रिकॉनक्विस्टा' के दौरान हुआ था।
चीन ने भी अपने तरीके से इस्लामी कट्टरता का दमन कर दिखाया है। भारत समेत पूरी दुनिया को अब देर नहीं करनी चाहिए।अब तो सीधी बात है — या तो आतंकवाद को कुचलो, या खुद कुचले जाओ!