पाकिस्तान फिर वही कर रहा है जो वो हर युद्ध हारने के बाद करता आया है। झूठ का सहारा लेकर अपनी जनता को बहकाना और आतंकवाद की हकीकत को छिपाना!
भारत की वायुसेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान के अंदर 100 किलोमीटर भीतर घुसकर आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया, 11 एयरबेस तबाह किए, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर जैसे संगठनों के दर्जनों आतंकियों को ढेर कर दिया।
इसके बाद भी पाकिस्तान की सड़कों पर जश्न मनाया जा रहा है। सवाल उठता है, ये जश्न क्या है? भारत से मिली करारी शिकस्त का, या फिर आतंकवाद को ज़िंदा रखने की कोशिश का?
इस्लामाबाद, कराची, हैदराबाद और मुल्तान की सड़कों पर 'विक्ट्री रैली' के नाम पर निकाली जा रही भीड़ असल में आतंक के एजेंडे को समर्थन दे रही है।
शाहिद अफरीदी जैसे पूर्व क्रिकेटर जिहादी नारों के साथ सड़कों पर उतरकर पाकिस्तान की मानसिकता को फिर उजागर कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो साफ दिखा रहे हैं कि ये कोई जीत का उत्सव नहीं, बल्कि भारत की निर्णायक कार्रवाई से डरे हुए मुल्क की घबराहट है।
जब भारत ने पहलगाम में भारतीय नागरिकों पर हुए आतंकवादी हमले के बाद जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तानी जमीन पर आतंकी ठिकानों को तबाह किया, तो पाकिस्तान को मजबूरी में अमेरिका के आगे गिड़गिड़ाना पड़ा।
अमेरिका की मध्यस्थता से सीज़फायर की घोषणा हुई। लेकिन जैसे ही सीज़फायर हुआ, पाकिस्तान की सरकार और सेना ने इसे ‘ऐतिहासिक जीत’ बताकर देश में ‘ओपरेशन बुनियान अल-मरूस’ का झूठा महिमामंडन शुरू कर दिया।
हकीकत ये है कि पाकिस्तान के पास न तो भारत की कार्रवाई को रोकने की ताकत थी और न ही जवाब देने की क्षमता।
उसके पास सिर्फ एक हथियार बचा, "प्रोपेगेंडा!" पाकिस्तानी आर्मी और ISPR ने एडिटेड तस्वीरें, फर्जी वीडियो और मजहबी नारों के सहारे अपनी हार को जीत में बदलने का झूठ गढ़ा।
और इसी झूठ को सच मानकर वहां की आवाम मिठाइयां बांट रही है। क्या ये एक नकलची राष्ट्र की मानसिक हार नहीं है?
भारत ने हर मोर्चे पर पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया। आतंकवाद के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर एयर स्ट्राइक तक, भारत ने दिखा दिया कि अब वह सिर्फ जवाब नहीं देगा, बल्कि दुश्मन को उसकी ही जमीन पर खत्म करेगा।
ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब की बार सीमा पार आतंकी ठिकानों को बख्शा नहीं जाएगा।
लेकिन पाकिस्तान की सोच अभी भी 1971 और 1965 की तरह ही है, "झूठ बोलो, जनता को बहकाओ, और हार को छिपाकर जीत का ढिंढोरा पीटो।"
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने कभी युद्ध नहीं जीता, लेकिन हर हार को जीत बताकर पीढ़ियों को गुमराह करता रहा है।
1971 में 93,000 सैनिकों के आत्मसमर्पण को भी वो ‘रणनीतिक वापसी’ कहते हैं।
आज जब पाकिस्तान जश्न मना रहा है, असल में वह भारत से मिली मात से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है।
लेकिन दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है। लश्कर, जैश, हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठन वहां पनाह पाते हैं, और जब भारत उन्हें खत्म करता है, तो पाकिस्तान उल्टे विक्ट्री रैली निकालता है।
ये रैली नहीं है, बल्कि पाकिस्तान की आतंकवाद को जिंदा रखने की कुंठा है।
ये जश्न नहीं है, बल्कि इस बात का भय है कि कहीं अगली बार भारत रावलपिंडी तक न पहुंच जाए।
पाकिस्तान को अब ये समझ लेना चाहिए कि भारत सिर्फ लड़ाई नहीं लड़ रहा, वह आतंक के खिलाफ निर्णायक युद्ध में है।
अगर पाकिस्तान ने अपनी झूठी कहानियों, नकली जश्न और जिहादी प्रोपेगेंडा से बाहर निकलकर हकीकत नहीं देखी, तो अगली बार उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
ये भारत है!!! जिसने सहनशक्ति भी दिखाई है और अब निर्णायक कार्रवाई की ताकत भी।
पाकिस्तान को अगर अपनी अगली पीढ़ियों को बचाना है, तो उसे आतंकी सोच से बाहर निकलना ही होगा।
वरना ये झूठे जश्न एक दिन उसके लिए मातम में बदल जाएंगे।
क्योंकि अब की बार भारत सिर्फ जवाब नहीं दे रहा, इतिहास लिख रहा है।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़