भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया चार दिवसीय सैन्य संघर्ष और ऑपरेशन सिन्दूर की सफलता के बाद देश में तुर्की के खिलाफ बहिष्कार की मांग तेज हो गई है। इस बीच, कांग्रेस पार्टी की ओर से इस मुद्दे पर अस्पष्ट रुख और चुप्पी ने राजनीतिक हलकों में एक नई बहस छेड़ दी है।
तुर्की द्वारा पाकिस्तान को ड्रोन आपूर्ति और भारत विरोधी रुख अपनाने की खबरों के बाद आम जनता और विपक्षी दलों ने तुर्की के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। लेकिन कांग्रेस की उहापोह की स्थिति ने न केवल पार्टी की राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रतिबद्धता को सवालों के घेरे में ला दिया है, बल्कि उसके भीतर नेतृत्व और नीति को लेकर मतभेदों की ओर भी इशारा किया है।
इस ऑपरेशन ने न केवल आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीरो टॉलरेंस नीति को दुनिया के सामने रखा, बल्कि पाकिस्तान को सैन्य और मनोवैज्ञानिक रूप से भी झकझोर दिया। भारतीय वायुसेना ने इस दौरान तुर्की निर्मित असिसगार्ड सोंगार ड्रोनों का इस्तेमाल पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ किए जाने की पुष्टि की, जिसके बाद देश में #BoycottTurkey अभियान ने जोर पकड़ा।
इस अभियान ने तुर्की के पर्यटन उद्योग को बड़ा झटका दिया है। भारत से तुर्की जाने वाले पर्यटकों की संख्या में 80% की गिरावट दर्ज की गई है। 2024 में तुर्की में 3.25 लाख भारतीय पर्यटक पहुँचे थे, लेकिन इस साल यह आंकड़ा कम हो गया है।
ट्रैवल कंपनियों जैसे IXIGO और ईजमायट्रिप ने तुर्की के लिए बुकिंग्स बंद कर दी हैं, जिसके चलते तुर्की के पर्यटन क्षेत्र को करोड़ों रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। इस बीच, कांग्रेस पार्टी से इस बहिष्कार को समर्थन देने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन पार्टी की ओर से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया।
कांग्रेस के कुछ नेताओं ने व्यक्तिगत स्तर पर इस बहिष्कार का समर्थन जरूर किया है। हिमाचल प्रदेश के कांग्रेस नेता कुलदीप सिंह राठौर ने 11 मई को तुर्की के सेब आयात पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
उन्होंने कहा, "तुर्की ने भारत के साथ विश्वासघात किया है। 2023 में भूकंप के दौरान भारत ने ऑपरेशन दोस्त के तहत तुर्की को मदद दी थी, लेकिन आज वही तुर्की पाकिस्तान को हथियार दे रहा है। हमें तुर्की के उत्पादों और पर्यटन का बहिष्कार करना चाहिए।" राठौर की यह टिप्पणी देशभर में तुर्की के खिलाफ बढ़ते गुस्से को दर्शाती है, लेकिन पार्टी नेतृत्व की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया।
14 मई को कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड, दिल्ली में एक बैठक के बाद जब पत्रकारों ने पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश और पवन खेड़ा से तुर्की बहिष्कार पर सवाल पूछा, तो दोनों नेताओं ने जवाब देने से इनकार कर दिया। एक पत्रकार ने पूछा, "क्या कांग्रेस तुर्की बहिष्कार का समर्थन करती है?" इस पर जयराम रमेश ने कहा, "आप बताइए," और पवन खेड़ा ने जवाब दिया, "हम बाद में बात करेंगे।"
कांग्रेस की इस चुप्पी ने पार्टी के भीतर भी असंतोष को जन्म दिया है। कुछ नेताओं का मानना है कि तुर्की के खिलाफ सख्त रुख अपनाकर पार्टी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रतिबद्धता को मजबूत कर सकती थी। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि, "कांग्रेस की चुप्पी हाई कांग्रेस को कमजोर दिखा रही है। जब पूरा देश तुर्की के खिलाफ एकजुट है, तो कांग्रेस की अनिर्णय की स्थिति जनता को गलत संदेश दे रही है। इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए था।"
ऑपरेशन सिन्दूर के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई को संघर्षविराम लागू हुआ था। लेकिन इस दौरान तुर्की और चीन जैसे देशों ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया। तुर्की के विदेश मंत्री हकन फिदान ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष इशाक डार से बात की और हालिया तनाव पर चर्चा की, जिसे भारत ने अपने खिलाफ एक कदम के रूप में देखा। तुर्की के सरकारी ब्रॉडकास्टर टीआरटी वर्ल्ड ने भी भारत-पाक तनाव को कवर करते हुए इसे "खतरनाक रूप से बढ़ने वाला" बताया। इस तरह की कवरेज ने भारत में तुर्की के खिलाफ भावनाओं को और भड़का दिया।
विदेश नीति विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर अपनी राय देते हुए कहा कि "कांग्रेस की चुप्पी एक रणनीतिक भूल है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर जनता एक स्पष्ट और सख्त रुख की उम्मीद करती है। तुर्की का बहिष्कार एक प्रतीकात्मक कदम हो सकता था, जो कांग्रेस को जनता के करीब लाता। लेकिन पार्टी की अनिर्णय की स्थिति ने उसे रक्षात्मक स्थिति में ला दिया है।"
ऑपरेशन सिन्दूर ने भारत की सैन्य ताकत और आतंकवाद के खिलाफ उसकी प्रतिबद्धता को तो साबित कर दिया, लेकिन इसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई चुनौतियां भी खड़ी की हैं। तुर्की और चीन जैसे देशों का पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होना भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती है। इस बीच, कांग्रेस की ओर से तुर्की बहिष्कार पर कोई ठोस रुख न अपनाना पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहा है।
जैसा कि भारत-पाक सीमा पर तनाव अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है, और तुर्की के खिलाफ बहिष्कार की मांग जोर पकड़ रही है, कांग्रेस को जल्द ही इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। अन्यथा, पार्टी न केवल जनता का भरोसा खो सकती है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी प्रासंगिकता को भी कमजोर कर सकती है। यह समय भारत के लिए एकजुटता और निर्णायक नेतृत्व का है, और किसी भी राजनीतिक दल की अनिर्णय की स्थिति इस एकजुटता को कमजोर कर सकती है।