छत्तीसगढ़ का बस्तर, जो कभी नक्सलवाद और हिंसा का पर्याय माना जाता था, आज एक नई पहचान बना रहा है। #BadaltaBastar हैशटैग के साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लोग इस क्षेत्र में हो रहे बदलावों की कहानियां साझा कर रहे हैं। बस्तर के युवा अब बंदूक की जगह किताबें थाम रहे हैं, जनजातीय महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के जरिए आत्मनिर्भर बन रही हैं, और सरकार की नई योजनाओं ने इस क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश शुरू की है।
पिछले कुछ दशकों से बस्तर नक्सलवाद के भय और आतंक में डूबा हुआ था। इस क्षेत्र में हिंसा और अशांति ने न केवल विकास को रोका, बल्कि स्थानीय जनजातीय समुदायों को भी हाशिए पर धकेल दिया। आज 15 मई 2025 को सोशल मीडिया में #BadaltaBastar ट्रेंड ने इस क्षेत्र की एक अलग तस्वीर पेश की।
एक्स पर एक सोशल मीडिया यूज़र ने लिखा, "एक समय हिंसा से दबा हुआ बस्तर अब प्रगति की भाषा बोल रहा है। स्किल डेवलपमेंट सेंटर, इंटरनेट कनेक्टिविटी और आधुनिक पुलिसिंग सपनों को हकीकत में बदल रहे हैं। #BadaltaBastar सिर्फ एक हैशटैग नहीं, बल्कि एक क्रांति है।"
इसी तरह, एक यूज़र ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की अगुवाई में हुए बदलावों का जिक्र करते हुए बताया कि 148 किलोमीटर रेल लाइन को दोगुना किया गया, 50 बंद स्कूलों को फिर से खोला गया, और सड़क, बिजली और शिक्षा अब अबूझमाड़ जैसे दूरदराज के इलाकों तक पहुंच रही है।
बस्तर में बदलाव की यह कहानी सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित नहीं है। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इस क्षेत्र को नक्सल मुक्त करने और विकास की राह पर लाने के लिए कई कदम उठाए हैं। 'द इकोनॉमिक टाइम्स' से बात करते हुए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा था "नक्सल प्रभावित बस्तर अगले 10 सालों में छत्तीसगढ़ का सबसे विकसित क्षेत्र और पर्यटन केंद्र बन जाएगा। हमारा लक्ष्य मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करना है, जैसा कि गृह मंत्री अमित शाह ने समय सीमा तय की है।"
मुख्यमंत्री साय ने यह भी बताया कि सरकार बस्तर में वन उत्पादों से जुड़े उद्योग, पशुपालन और पर्यटन को बढ़ावा देने पर ध्यान दे रही है। इसके अलावा, 'नियद नेल्लानार' योजना के तहत बस्तर के दूरदराज गांवों में 17 विभागों की 52 योजनाओं और 31 सामुदायिक सुविधाओं को पहुंचाया जा रहा है।
बस्तर में हो रहे विकास कार्यों में आधारभूत संरचना को मजबूत करने पर भी जोर दिया जा रहा है। 12 मई 2025 को 'बिजनेस स्टैंडर्ड' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रेल मंत्रालय ने बस्तर जिले में रेल नेटवर्क के विस्तार के लिए 'रावघाट-जगदलपुर न्यू लाइन' (140 किलोमीटर) को मंजूरी दी है, जिसकी लागत 3513.11 करोड़ रुपये है। यह प्रोजेक्ट बस्तर को रायपुर और देश के उत्तरी-पश्चिमी हिस्सों से जोड़ेगा, जो अभी तक रेल कनेक्टिविटी से वंचित है।
इसके अलावा, 3 मार्च 2025 को 'डेक्कन हेराल्ड' ने बताया कि छत्तीसगढ़ के 2025-26 बजट में बस्तर को एक नए विकास मॉडल के रूप में उभारने पर विशेष ध्यान दिया गया है। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने इस बजट में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास को प्राथमिकता दी और इसके लिए 1.65 लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की।
हालांकि, बस्तर की यह चमकती तस्वीर पूरी तरह से सच्चाई को नहीं दर्शाती। कई चुनौतियां अभी भी बाकी हैं। हालाँकि 2000 से 2024 के बीच 16,780 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, जो हिंसा छोड़ने की उनकी इच्छा को दर्शाता है। लेकिन नक्सलवाद का एक हिस्सा अभी भी मौजूद है।
बस्तर में बदलाव की हवा साफ तौर पर महसूस की जा सकती है। 22 अप्रैल 2025 को 'द इकोनॉमिक टाइम्स' से बात करते हुए मुख्यमंत्री साय ने कहा, "नक्सलियों को हटाने के बाद एक खालीपन नहीं छोड़ा जा सकता। अब सबसे जरूरी काम बस्तर के लोगों को उनकी प्राकृतिक जीवनशैली को बिना बिगाड़े रोजगार देना है। सरकार ने इसके लिए कृषि, पर्यटन और स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा देने वाली योजनाएं शुरू की हैं।" साय ने यह भी बताया कि बस्तर के सुदूर इलाकों में मोबाइल टावर, सड़कें और आयुष्मान भारत कार्ड जैसी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।
जनजातीय मामलों के विशेषज्ञ एवं सेंटर फ़ॉर जनजातीय स्टडीज़ एंड रिसर्च के हेड ऑफ़ रिसर्च वेद प्रकाश सिंह का मानना है कि बस्तर में हो रहे बदलाव सकारात्मक हैं, वहीं सरकारी नीतियों की सफलता भी ज़मीनी स्तर पर देखी जा सकती है। उन्होंने आगे कहा कि "बस्तर का विकास तभी सार्थक होगा, जब स्थानीय जनजातीय समाज की परंपरा एवं संस्कृति को आधार बनाकर यहाँ एक सर्वांगीण विकास की नीति अपनाई जाएगी।"
जनजातीय विषयों के जानकार वेद प्रकाश सिंह का मानना है कि "वर्तमान सरकार ने जनजातियों के देवगुड़ी एवं पारंपरिक विषयों को लेकर अभी तक सकारात्मक क़दम उठाए हैं, जिसकी निरंतरता यदि बनी रहे तो बस्तर के विकास में स्थानीय जनजातियों की अग्रणी भूमिका हो सकेगी।"
#BadaltaBastar ट्रेंड ने न केवल बस्तर की बदलती तस्वीर को सामने लाया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि बस्तर अब नक्सलवाद की अशांति से निकलकर अपने पुनर्जागरण के दौर में प्रवेश कर रहा है। बस्तर के इस बदलते चेहरे को देखकर यह तो साफ है कि इस क्षेत्र में उम्मीद की किरण जगी है, लेकिन यह किरण कितनी दूर तक रोशनी फैलाएगी, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।