ऑपरेशन सिन्दूर की सफलता और भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच कांग्रेस पार्टी एक बार फिर अपनी राष्ट्रविरोधी सोच को लेकर सवालों के घेरे में है। इस बार पार्टी ने अपने ही वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर को निशाना बनाया है, जिन्होंने ऑपरेशन सिन्दूर का समर्थन कर भारतीय सेना के पराक्रम की तारीफ की थी।
थरूर ने न केवल सेना का समर्थन किया, बल्कि भारत का पक्ष वैश्विक मंच पर रखने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी भी स्वीकारी। लेकिन कांग्रेस ने उनकी राष्ट्रभक्ति को "लक्ष्मण रेखा पार करना" करार दिया और उनके बयानों से दूरी बना ली। यह घटना कांग्रेस की उस मानसिकता को फिर से उजागर करती है, जो बार-बार राष्ट्रीय हितों को सियासत की भेंट चढ़ाती रही है।
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिक मारे गए थे, जिसमें ज्यादातर पर्यटक थे। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से जोड़ी गई, जिन्हें पाकिस्तान का समर्थन माना जाता है।
जवाब में 7 मई को भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिन्दूर शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान और पीओके में नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया और करीब 100 आतंकियों को मारने का दावा किया गया। इस ऑपरेशन की सटीकता और सफलता की हर तरफ तारीफ हुई।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी इस ऑपरेशन की जमकर तारीफ की और 9 मई को अल अरबिया इंग्लिश चैनल को दिए एक साक्षात्कार में कहा, "भारत ने आतंकियों से प्रतिशोध लेने के लिए ऑपरेशन सिन्दूर के तहत पाकिस्तान के नौ आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया। पाकिस्तान इनकार करने में माहिर है, जिसने भारत को घाव देने के लिए 30 वर्षों तक आतंकवादियों को अपने यहां पनाह दी।"
थरूर ने यह भी कहा कि भारत का लक्ष्य आतंकी ठिकाने थे, न कि पाकिस्तानी सेना या नागरिक, और यह कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत संदेश थी।
थरूर की यह बात देश के हर कोने में सराही गई। 17 मई को उन्होंने घोषणा की कि वह भारत सरकार के निमंत्रण पर एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे। यह प्रतिनिधिमंडल पांच प्रमुख वैश्विक राजधानियों में जाकर ऑपरेशन सिन्दूर और भारत के आतंकवाद विरोधी रुख को दुनिया के सामने रखेगा।
थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "हाल की घटनाओं पर हमारे देश का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए पांच प्रमुख राजधानियों में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए भारत सरकार के निमंत्रण से मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं। जब राष्ट्रीय हित की बात हो और मेरी सेवाओं की जरूरत हो, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। जय हिंद!"
इस बयान ने थरूर को राष्ट्रीय हितों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए देशभर में प्रशंसा दिलाई। लेकिन कांग्रेस पार्टी को यह बात रास नहीं आई।
15 मई को कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने थरूर के राष्ट्रवादी बयानों से दूरी बनाते हुए कहा, "यह उनकी निजी राय है, वो जो कहते हैं वो पार्टी की राय नहीं होती है।" पार्टी सूत्रों ने तो यहाँ तक कहा कि थरूर ने भारत-पाकिस्तान तनाव पर अपनी टिप्पणियों से "लक्ष्मण रेखा" पार कर दी है।
कांग्रेस की एक वरिष्ठ नेताओं की बैठक में, जिसमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, और केसी वेणुगोपाल जैसे बड़े नेता शामिल थे, यह तय किया गया कि पार्टी के नेताओं को अपनी व्यक्तिगत राय व्यक्त करने के बजाय पार्टी लाइन का पालन करना चाहिए। इस बैठक में थरूर भी मौजूद थे, और सूत्रों के मुताबिक, पार्टी आलाकमान ने बिना नाम लिए उन्हें चेतावनी दी।
यह वही कांग्रेस है, जो ऑपरेशन सिन्दूर को लेकर पहले ही सरकार पर "राजनीतिकरण" का आरोप लगा चुकी है, और अब अपने ही नेता को राष्ट्रहित की बात करने के लिए निशाना बना रही है।
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने राष्ट्रीय हितों को सियासत की भेंट चढ़ाया हो। 2016 में उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट हवाई हमले के दौरान भी कांग्रेस ने सेना से सबूत मांगे थे। उस समय भी कांग्रेस नेताओं ने सेना के पराक्रम पर सवाल उठाए थे, और अब थरूर के साथ भी वही सलूक किया जा रहा है।
यह उस पार्टी की सोच को दर्शाता है, जो देश की सेना की तारीफ को भी "मोदी की तारीफ" से जोड़कर देखती है। क्या कांग्रेस के लिए राष्ट्रहित से ज्यादा सियासी दुश्मनी मायने रखती है?
सोशल मीडिया पर भी लोगों ने कांग्रेस की इस हरकत को शर्मनाक बताया। एक यूजर ने लिखा, "जब सेना आतंक के खिलाफ लड़ रही होती है, तब कांग्रेस अपने ही नेता को निशाना बनाकर सियासत करती है। यह शर्मनाक है।"
शशि थरूर ने न केवल सेना का समर्थन किया, बल्कि भारत का पक्ष वैश्विक मंच पर रखने की जिम्मेदारी भी ली। यह एक राजनेता की असली जिम्मेदारी है। लेकिन कांग्रेस का यह रवैया सेना के मनोबल को तोड़ने वाला है। राष्ट्रीय सुरक्षा पर सियासत करना देश के साथ गद्दारी है। कांग्रेस को अपनी इस सोच को बदलना होगा, वरना वह देश की जनता की नजरों में और गिरेगी।
कांग्रेस की इस हरकत ने एक बार फिर उसकी प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े किए हैं। जब पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर सेना के साथ खड़ा है, तब कांग्रेस अपने ही नेता को निशाना बनाकर क्या संदेश देना चाहती है? क्या यह वही कांग्रेस नहीं है, जो 26/11 मुंबई हमले के बाद कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई थी? उस समय भी भारतीय वायुसेना हमले के लिए तैयार थी, लेकिन यूपीए सरकार ने अनुमति नहीं दी।
आज जब शशि थरूर जैसे नेता देश के हित में बोल रहे हैं, तो उन्हें पार्टी के भीतर ही अपमानित किया जा रहा है। यह कांग्रेस की उस मानसिकता को दर्शाता है, जो राष्ट्रीय हितों से ज्यादा अपनी सियासी जमीन बचाने में लगी है।
थरूर की कूटनीतिक क्षमता और अनुभव को देखते हुए उनकी भूमिका इस समय बेहद अहम है। वह संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और यूपीए सरकार में विदेश राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। ऐसे में, उनकी सेवाओं का उपयोग कर भारत सरकार ने एक सही कदम उठाया है। लेकिन कांग्रेस की यह हरकत न केवल थरूर का अपमान है, बल्कि उन सभी भारतीयों का अपमान है जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सेना के साथ खड़े हैं।
कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी राष्ट्रविरोधी सोच को उजागर कर दिया है। शशि थरूर जैसे नेता, जो सेना का समर्थन कर रहे हैं और भारत का पक्ष वैश्विक मंच पर रखने को तैयार हैं, उन्हें पार्टी का समर्थन मिलना चाहिए, न कि अपमान।
यह समय सियासत का नहीं, बल्कि एकजुटता का है। कांग्रेस को अपनी इस मानसिकता को बदलना होगा, वरना देश की जनता उसे कभी माफ नहीं करेगी। राष्ट्रीय हितों से ऊपर कुछ भी नहीं होना चाहिए, और जो भी इस सिद्धांत को तोड़ेगा, उसे इतिहास में हमेशा के लिए शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी।