आजादी के 77 वर्षों के बाद छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी जिले के 17 दूरदराज गांवों में पहली बार बिजली पहुंची है। घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसे इन गांवों में बिजली की यह रोशनी न केवल एक तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि यह उन 540 परिवारों के लिए एक नई उम्मीद की किरण भी है, जो अब तक अंधेरे में जीवन गुजारने को मजबूर थे। मुख्यमंत्री मजराटोला विद्युतीकरण योजना के तहत 3 करोड़ रुपये की लागत से यह सपना साकार हुआ है।
इन 17 गांवों में कातुलझोरा, कट्टापार, बोदरा, बुकमरका, संबलपुर, गट्टेगहन, पुगदा, आमाकोड़ो, पीटेमेटा, टाटेकसा, कुंदलकाल, रायमनहोरा, नैनगुड़ा, मेटातोडके, कोहकाटोला, एडसमेटा और कुंजकन्हार शामिल हैं। ये गांव नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बसे हैं, जहां पहुंचना और वहां कोई भी काम करना किसी बड़े मिशन से कम नहीं था।
बिजली विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इन गांवों तक 11 केवी लाइन बिछाने के लिए वन विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेने से लेकर उपकरणों की ढुलाई तक की प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण थी। घने जंगल, पहाड़ियां और नक्सल खतरे के बीच समर्पित तकनीकी टीम ने 45 किमी लंबी 11 केवी लाइन, 87 निम्नदाब पोल और 17 ट्रांसफार्मर लगाकर इस कार्य को पूरा किया। टाटेकसा गांव में 25 केवीए ट्रांसफार्मर को चार्ज कर चालू कर दिया गया, जिसके बाद पहली बार गांव में बिजली के खंभों पर बल्ब जलते दिखे।
इन गांवों में बिजली पहुंचने की खुशी का आलम यह था कि ग्रामीणों ने इसे उत्सव की तरह मनाया। बच्चों ने नाच-गाकर अपनी खुशी जाहिर की। कई बुजुर्गों की आंखें नम थीं, क्योंकि उन्होंने पहली बार अपने गांव को रोशनी से जगमगाते देखा।
अभी तक ये 540 परिवार रातें लालटेन की मद्धम रोशनी में गुजारने को मजबूर थे। कुछ परिवार सौर ऊर्जा पर निर्भर थे, लेकिन सोलर प्लेट्स की चोरी और खराब होने के बाद उनकी मरम्मत न होने से यह विकल्प भी कारगर नहीं रहा। अब तक 275 परिवारों को बिजली कनेक्शन मिल चुका है, और बाकी घरों में भी जल्द कनेक्शन देने का काम चल रहा है।
यह उपलब्धि मुख्यमंत्री मजराटोला विद्युतीकरण योजना का हिस्सा है, जिसके तहत राज्य सरकार ने नक्सल प्रभावित और दुर्गम क्षेत्रों में बिजली पहुंचाने का संकल्प लिया है। इस योजना को लागू करना आसान नहीं था। कार्यपालक निदेशक ने बताया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा जोखिमों के बावजूद तकनीकी टीम ने दिन-रात मेहनत की। वन विभाग से अनुमति लेने में महीनों लग गए, और उपकरणों को इन दुर्गम गांवों तक पहुंचाने के लिए कई बार पैदल और नावों का सहारा लेना पड़ा। फिर भी, सरकार और स्थानीय प्रशासन की प्रतिबद्धता ने इस सपने को हकीकत में बदल दिया।
लेकिन इस चमकती तस्वीर के पीछे कुछ सवाल भी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। छत्तीसगढ़ में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की राह कभी आसान नहीं रही। बिजली पहुंचाना एक बड़ा कदम है, क्योंकि नक्सलवाद की जड़ें अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर कर्रेगुट्टा पहाड़ियों पर सुरक्षा बलों ने 31 नक्सलियों को मार गिराया और 450 से अधिक आईईडी बरामद किए। इससे साफ है कि क्षेत्र में सुरक्षा अब भी एक बड़ा मुद्दा है।
दूसरी ओर, इस योजना की सफलता को पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता। बिजली पहुंचने से इन गांवों के बच्चों की पढ़ाई में सुधार होगा, और रात के समय उनकी सुरक्षा बढ़ेगी। ग्रामीण अब मोबाइल चार्ज कर सकेंगे, जिससे वे बाहरी दुनिया से जुड़ पाएंगे। छोटे-मोटे व्यवसाय शुरू करने की संभावनाएं भी बढ़ेंगी, जो उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर कर सकता है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास को प्राथमिकता दी है, जैसा कि हाल के #BadaltaBastar ट्रेंड में भी देखा गया, जहां बस्तर में हो रहे बदलावों की चर्चा हुई। लेकिन हवेचूर गांव में हाल ही में धर्मांतरण से जुड़े विवाद ने यह भी दिखाया कि सामाजिक तनाव और सांस्कृतिक मुद्दे अभी भी क्षेत्र की प्रगति में बाधा बन रहे हैं। ऐसे में, सरकार को न केवल बिजली और बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने पर ध्यान देना होगा, बल्कि सामुदायिक सद्भाव और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी ठोस कदम उठाने होंगे।
मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी के इन 17 गांवों में बिजली की पहली किरण ने निश्चित रूप से एक नई उम्मीद जगाई है। लेकिन यह उम्मीद तभी साकार होगी, जब यह रोशनी स्थायी हो, और इन गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जाए।