पाकिस्तान: इंसानियत विरोधी मानसिकता

23 May 2025 16:13:45
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पाकिस्तान को सारा विश्व आज एक देश के रूप में देखता है, वास्तव में वह विषैली विचारधारा की उपज है, काफिर कुफ्र और आतंकवादी सोच पर आधारित है। किसी विचारधारा या सोच को भौगोलिक सीमा में बाधा नहीं डाली जा सकती, ठीक वैसे ही पाकिस्तान की जिहादी मानसिकता पाकिस्तान की सीमा में होने के साथ-साथ सारे विश्व में फैली है और विश्व के देशों की मूल संस्कृति को दीमक की भांति खोखला कर रही है।
 
भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन से पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे जिहादी देश भारत की भूमि पर अपने रक्तरंजित इतिहास के कारण पैदा हुए। वामपंथी बुद्धिजीवियों तथा तत्कालीन शासित पार्टी द्वारा एक झूठ का प्रचार किया गया कि भारतीय मुसलमानों ने 'दो राष्ट्र सिद्धांत' और पाकिस्तान को नकार दिया, फिर प्रश्न यह आता है कि यदि उन्होंने नकार दिया तो पाकिस्तान को बनाया किसने? ब्रिटिश सरकार की सहायता से भारतीय मूल के ही जिहादी मानसिकता से प्रभावित लोगों ने भारत भूमि को विभाजित कर पाकिस्तान बनाया, जो वर्तमान समय में आतंकवाद की जड़ और जिहादी तत्वों का केंद्र है।
 
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विभाजन से पहले 1946 में मुस्लिम लीग ने जिन 492 आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ा था, लगभग 87% वोटों के साथ 429 सीटों पर जीत हासिल की। इस जनमत संग्रह में ही भारतीय उपमहाद्वीप के खंडन के लिए लगभग 87% से अधिक मुसलमानों ने मुस्लिम लीग को वोट दिया, जो पाकिस्तान का आधार बना। पाकिस्तान के राष्ट्रपिता मोहम्मद अली जिन्ना ने खुद किसी पाकिस्तान क्षेत्र से नहीं, बल्कि मुंबई के बायकुला सीट से चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीत हासिल की।
 
विडंबना है कि 14 अगस्त 1947 में जब इस्लामी देश पाकिस्तान अस्तित्व में आया, तब मुस्लिम लीग के कई नेता और समर्थक भारत में ही रुक गए। कालांतर में मुस्लिम लीग के नेता कांग्रेस का हिस्सा बन गए, जिन्हें बाद में भारतीय संविधान सभा का सदस्य बनाकर मंत्री पद भी दिया गया। सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी, जो रजाकारों की भांति स्वतंत्रता के समय हैदराबाद का भारत में विलय का विरोध कर रहे थे, भारत में रुके सांसद भी बने और आजकल उन्हीं के वंशज असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम समाज का नेतृत्व कर रहे हैं।
 
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भारत के विभाजन और तत्कालीन सामाजिक स्थिति को देखकर गृह मंत्री सरदार पटेल ने 3 जनवरी 1948 में कलकत्ता के भाषण में कहा, "हिंदुस्तान में आज तीन-चार करोड़ मुसलमान पड़े हैं जिन्होंने विभाजन और पाकिस्तान बनाने में काम किया। अब एक रोज़ में, एक रात में, उनका दिल कैसे बदल गया, यह मेरी समझ में नहीं आ रहा। अब वे सब कहते हैं कि हम वफादार हैं, हमारी वफादारी पर शक क्यों करते हो? अब ये बात आप हमसे नहीं, अपने दिल से पूछो कि शक करना चाहिए या नहीं?" (पुस्तक: नैरेटिव का मायाजाल, लेखक: बलबीर पुंज, पृष्ठ 120) सरदार पटेल ने अपने भाषण में खंडित स्वतंत्र भारत की उस जन भावना को आवाज दी, जो आज भी मुखर है और वामपंथियों तथा जिहादियों को मानसिक तौर पर आघात कर रही है।
 
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भारत में कई भारतीय पासपोर्ट धारक बुद्धिजीवी हैं, जो वामपंथी शिक्षा के चलते पाकिस्तान प्रेम में हैं। भारत में अल्पसंख्यक समाज में प्रचंड बहुमत समाज में फलने-फूलने वाले लोगों को शोषण का शिकार बताते हैं, लेकिन पाकिस्तान में शरीयत के कारण हिंदू नरसंहार पर चुप्पी साध बैठे हैं।
 
पाकिस्तान, विषैली मानसिकता से ऐसा पीड़ित है कि वह गैर-मुस्लिमों में भेदभाव नहीं अपितु मुस्लिम समाज में भी भेदभाव रखता है। बहुसंख्यक पाकिस्तानी सुन्नी, शिया और अहमदिया मुसलमानों का शोषण और उनका नरसंहार करते आए हैं। अक्सर वे लोग इस्लामी कट्टरपंथी, सामाजिक बहिष्कार या जिहाद का शिकार बनते हैं।
 
गैर-मुस्लिम पूजा स्थलों की क्षतिग्रस्त स्थिति
 
जिन भारतीय क्षेत्रों को मिलाकर पाकिस्तान बनाया गया, वहाँ हजारों साल पहले वैदिक संस्कृति का जन्म हुआ था। बहुलतावादी सनातन संस्कृति और वैदिक परंपरा के कारण इस क्षेत्र में हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के धार्मिक स्थान हैं, जो आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र थे। परन्तु विभाजन के बाद मजहबी विचारधारा ने या तो इन मंदिरों को नष्ट कर दिया या खंडहर बना दिया।काफिर कुफ्र के मजहबी दर्शन में गैर इस्लामी धर्मों तथा धार्मिक स्थानों के लिए कोई स्थान नहीं है।
 
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विभाजन के समय पाकिस्तान में हिंदू और सिखों की आबादी लगभग 15% थी, जो 2021 में घटकर 1.5% रह गई। वहीं दूसरी ओर इसी कालखंड में भारत के मुसलमान 10% से 14% हो गए और लगभग 3 लाख नई पुरानी मस्जिदें हैं। पाकिस्तान में गैर इस्लामी प्रतीकों की खराब स्थिति का मुख्य कारण पाकिस्तान का 'इकोसिस्टम' है, जो कट्टरवादी होने के साथ-साथ धर्मनिरपेक्षता तथा बहुलतावादी विचारों को सिरे से नकारता है। अफगानिस्तान के बामियान में प्रसिद्ध बुद्ध प्रतिमाओं (बुत) को तोड़ना तथा गैर इस्लामी आबादी का तेजी से घटना, इसी विषैली मानसिकता की उपज है।
 
सांस्कृतिक पहचान को तरसता पाकिस्तान
 
पाकिस्तान अपने जन्म से ही खुद को भारतीय संस्कृति के विचारों से दूर करता और मध्य-पूर्व देशों के निकट जाता नजर आता है। परन्तु वास्तविकता में अपने मूल को भुला कर पाकिस्तान इस्लामी राष्ट्र होने के बावजूद भी मध्य-पूर्वी देशों की प्रशंसा या सम्मान प्राप्त नहीं कर सका। पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के चक्कर में उर्दू को राष्ट्रभाषा घोषित तो किया, परन्तु केवल 8% आबादी ही उर्दू भाषा का प्रयोग कर पाती है, अधिकांश तो पंजाबी भाषा का ही प्रयोग करते हैं। लेकिन फिर भी खुद को अरब देशों के जैसा दिखाने के चक्कर में पाकिस्तान का कौमी तराना विशुद्ध फारसी में बनाया गया, जिसे पढ़ने-समझने वालों की संख्या ना के बराबर है। जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान न भारत से जुड़ सका, न अरब बन सका तथा बीच में नपुंसक की भांति भटक रहा है, जिसकी तिलमिलाहट आतंकवाद जैसे घिनौने कामों में देखी जा सकती है।
 
आतंकवाद का केंद्र
 
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मोहम्मद बिन कासिम द्वारा लाई गई जिहादी और लुटेरों की मानसिकता का नतीजा पाकिस्तान है, जो अपने मजहबी कट्टरवाद और विषैली मानसिकता के कारण सारे विश्व में निंदनीय है। परंतु अपनी मजहबी मानसिकता के प्रभावस्वरूप इन कुकर्मों को करना अपनी जिम्मेदारी समझता है, ताकि सवाब कमाया जा सके। जिसके कारण दार-उल-हरब को दार-उल-इस्लाम बनाने के लिए मासूमों का कत्ल भी शामिल है। 'एक मासूम को मारना सारी इंसानियत की हत्या है' जैसे खोखले विचारों को प्रकट करने वाला मजहब अपने ही दीन से प्रेरणा लेकर हजारों वर्षों से नरसंहार करता आ रहा है।
 
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फ्रांसीसी क्रांति के दौरान इस प्रकार के कृत्यों को 'आतंकवाद' शब्द से संबोधित किया गया, परंतु मजहबी नफरत के लिए वैश्विक स्तर पर अभी भी कोई सटीक शब्द नहीं है। वहाबिज़्म तथा देवबंदी जैसे मजहबी शैक्षिक संस्थानों की कट्टरवादी और भेदभाव भड़काने वाली शिक्षा के आधार पर ही लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों का निर्माण हुआ, जो सारे विश्व में आतंक पहुंचाने के लिए जिम्मेदार हैं। भारत भूमि पर भी देवबंदी जैसे शैक्षणिक संस्थानों का प्रभाव है, जिसके कारण भारत में एक ऐसा मोर्चा तैयार किया जा रहा है, जो भारतीय लोकतंत्र के विरुद्ध, परंतु राष्ट्रविरोधी तत्वों का वफादार है।
 
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1971 में पाकिस्तान के विभाजन के बाद जनरल ज़िया-उल-हक को यह समझ आ गया कि भारत से सीधे तौर पर युद्ध में जीतना नामुमकिन है। इसीलिए पाकिस्तान ने छद्म युद्ध की शुरुआत की, जिसके आधार पर भारत की आंतरिक दुविधाओं को दीमक की भाँति बढ़ाया जाए ताकि भारत रूपी वृक्ष को खोखला कर खत्म किया जा सके। जिसके लिए अनेकों स्लीपर सेल भारत में बनाए गए, जिनकी सहायता से कई आतंकवादी हमलों तथा अंडरवर्ल्ड को अंजाम दिया गया और इसी योजना पर पाकिस्तान अभी भी काम कर रहा है। इस योजना में आजकल भारतीय मूल के कई बॉलीवुड तथा सोशल मीडिया के प्रबुद्ध लोग शामिल हैं, जो अपनी कला के आधार पर सामाजिक और आंतरिक तौर पर भारत में भेदभाव पैदा कर रहे हैं, जो भारतीय संप्रभुता के लिए चिंतनीय है।
 
पाकिस्तान एक ऐसी मानसिकता है, जो हमेशा भारत तथा विश्व विरोधी काम करती रही है और हमेशा करती रहेगी। भारत सरकार और सैन्य बल तो पाकिस्तान देश से जीत रहे हैं, परंतु भारत सरकार द्वारा कुछ ऐसे नियम बनाए जाएं ताकि भारत में रहने वाले पाकिस्तान समर्थकों को गद्दार कहकर उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाए और एक उदाहरण कायम किया जाए कि भारत से गद्दारी की सजा यह होगी, ताकि देश को एकजुट कर भारतीयता के आधार पर एक माला के रूप में पिरोया जा सके और वह नियम उस धागे का काम करें।
 
लेख
 
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रजत भाटिया
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