स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं जिनका ज़िक्र गर्व और सम्मान के साथ किया जाता है।
विनायक दामोदर सावरकर यानी वीर सावरकर का नाम उन चुनिंदा महान सेनानियों में है जिनका जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित रहा।
वह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि एक लेखक, विचारक, कवि और समाज सुधारक भी थे।
उनका पूरा जीवन भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के प्रयासों में ही बीता।
वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के भगूर गांव में हुआ था।
बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। मात्र 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने दोस्तों के साथ “मित्र मेला” नाम से एक संगठन बनाया जो ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ युवाओं में जागरूकता फैलाता था।
बाद में यह संगठन “अभिनव भारत” बना जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध गुप्त क्रांतिकारी गतिविधियां शुरू कीं।
सावरकर ने इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान वहां भी क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाया।
उन्होंने ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ नाम की एक पुस्तक लिखी जिसमें 1857 की क्रांति को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम बताया।
ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तक को बैन कर दिया, लेकिन यह यूरोप से भारत में गुप्त रूप से पहुंचती रही और देश के युवाओं में जोश भरती रही।
सावरकर को 1909 में अंग्रेजों ने गिरफ़्तार कर लिया और उन पर कई गंभीर आरोप लगाए। उन्हें काले पानी की सज़ा दी गई और अंडमान की सेलुलर जेल भेजा गया।
वहां उन्होंने अमानवीय यातनाएं सही, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। जेल में रहते हुए उन्होंने दीवारों पर नाखून और कांटों से कविताएं लिखीं।
उन्होंने अपने साथियों को भी प्रेरित किया कि वे जेल की सज़ा को संघर्ष का एक हिस्सा मानें।
आज़ादी के बाद भी वीर सावरकर देश को मज़बूत बनाने के लिए सामाजिक कार्यों में जुटे रहे।
उन्होंने ‘हिंदुत्व’ की अवधारणा को आगे बढ़ाया, जिसमें भारत को एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में देखा गया।
उन्होंने साफ कहा कि भारत की आत्मा उसकी संस्कृति में है और हमें उसी पर गर्व करना चाहिए।
वीर सावरकर जातिवाद और छुआछूत के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने मंदिरों के दरवाज़े हर वर्ग के लिए खुलवाने की पहल की।
उनके लिए भारत माता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म था। उन्होंने हमेशा यह कहा कि देश पहले है, बाकी सब कुछ बाद में।
आज जब हम देश की आज़ादी और विकास की बात करते हैं, तो वीर सावरकर की सोच और त्याग को याद करना बेहद ज़रूरी है।
उन्होंने जो रास्ता दिखाया, वह आज भी लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है।
वीर सावरकर ने अपने जीवन से यह सिखाया कि राष्ट्रभक्ति केवल भावनाओं से नहीं, बल्कि त्याग और कर्म से साबित होती है।
भारत को स्वतंत्र, समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से जागरूक बनाने के उनके प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा राष्ट्रभक्त वही होता है जो हर परिस्थिति में देश के साथ खड़ा रहे।
वीर सावरकर का संघर्ष और विचार हमें हर दौर में रास्ता दिखाते रहेंगे।
भारत को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा उनके जीवन से ही मिलती है।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़