छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ जंगल में 21 मई 2025 को हुई एक भीषण मुठभेड़ ने नक्सलवाद के खिलाफ भारत की जंग में एक नया मोड़ ला दिया है। इस मुठभेड़ में देश के सबसे बड़े नक्सली नेता और नक्सल संगठन के सुप्रीम लीडर नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू को सुरक्षाबलों ने मार गिराया। यह मुठभेड़ अपने आप में ऐतिहासिक थी, लेकिन इसके बाद बरामद सामान ने नक्सलियों के काले साम्राज्य को हिलाकर रख दिया।
डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड) के जवानों ने बसवराजू के पास से एक लैपटॉप, टैबलेट और कुछ डायरियाँ बरामद की हैं, जिनमें नक्सलियों के बस्तर से लेकर देश-दुनिया में छिपे मददगारों के नाम और उनके अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की जानकारी होने की संभावना है। यह खुलासा नक्सलवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक बड़ा हथियार साबित हो सकता है, लेकिन क्या ये गहरे राज नक्सलवाद की जड़ों को उखाड़ फेंकने में मदद करेंगे?
अबूझमाड़ की यह मुठभेड़ नक्सलवाद के इतिहास में सबसे बड़ी सफलताओं में से एक मानी जा रही है। 21 मई को सुबह करीब 5 बजे, डीआरजी और सीआरपीएफ की संयुक्त टीम ने अबूझमाड़ के घने जंगलों में नक्सलियों के एक बड़े ठिकाने पर हमला बोला। कई घंटों तक चली इस मुठभेड़ में बासवराजू सहित 26 नक्सली मारे गए।
बसवराजू, जो नक्सल संगठन सीपीआई (माओवादी) का महासचिव था, 2018 से संगठन की कमान संभाल रहा था। उसकी मौत को नक्सलवाद के खिलाफ एक करारा प्रहार माना जा रहा है। लेकिन असली सनसनी तब मची, जब सुरक्षाबलों ने उसके कब्ज़े से एक लैपटॉप, टैबलेट और कुछ डायरियाँ बरामद कीं। इन गैजेट्स में ऐसी जानकारी होने की संभावना है, जो नक्सलियों के अंतरराष्ट्रीय मददगारों और उनके शहरी नेटवर्क को बेनकाब कर सकती है।
पुलिस और खुफिया एजेंसियाँ इस बरामदगी से बेहद उत्साहित हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो नाम न छापने की शर्त पर बात कर रहे थे, ने बताया, "बसवराजू का लैपटॉप और टैबलेट नक्सलियों के काले साम्राज्य का खज़ाना है। हमें उम्मीद है कि इनसे न केवल बस्तर में नक्सलियों के मददगारों की जानकारी मिलेगी, बल्कि नेपाल, फिलीपींस और अन्य देशों में उनके अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का भी खुलासा होगा।" पुलिस को शक है कि बसवराजू इन डिवाइसेज़ के ज़रिए अपने शहरी नेटवर्क और विदेशी मददगारों से संपर्क में था। प्रारंभिक जाँच में यह भी पता चला है कि बसवराजू इंटरनेट कॉलिंग और व्हाट्सएप कॉलिंग का इस्तेममाल करता था, जिसके कई प्रमाण इन गैजेट्स में मिले हैं।
यह पहली बार नहीं है जब नक्सलियों के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से अहम खुलासे हुए हों। जुलाई 2019 में बस्तर के तिरिया में हुई एक मुठभेड़ में नक्सल नेता आरके मारा गया था। उसके पास से बरामद एक डायरी, जो तेलुगु में लिखी गई थी, को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने डिकोड किया था। उस डायरी से नक्सलियों के आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सक्रिय शहरी नेटवर्क का खुलासा हुआ था, जिसके बाद कई गिरफ्तारियाँ हुई थीं। उनमें से कई लोग नक्सलियों के लिए हथियारों और लॉजिस्टिक सप्लाई में अहम भूमिका निभा रहे थे। इस बार पुलिस को उम्मीद है कि बसवराजू के लैपटॉप और टैबलेट से नक्सलियों का पूरा रेड कॉरिडोर—नेपाल के पशुपतिनाथ से लेकर तिरुपति तक—के नेटवर्क की जानकारी मिल सकती है।
बसवराजू नक्सल संगठन का सबसे बड़ा चेहरा था। आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियन्नापेटा गाँव का रहने वाला बासवराजू, जिसका असली नाम नंबाला केशव राव था। बसवराजू ने 1970 के दशक में नक्सल संगठन में कदम रखा और धीरे-धीरे संगठन का सुप्रीम लीडर बन गया। 2018 में उसने संगठन के पूर्व महासचिव मुप्पाला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति से कमान संभाली थी। बसवराजू नक्सलियों के लिए लेवी वसूली, हथियार खरीद और संगठन की रणनीति तैयार करने का मुख्य सूत्रधार था। छत्तीसगढ़ में उस पर 1 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था, और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे राज्यों ने भी उस पर अलग-अलग इनाम रखे थे।
नक्सलियों का अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क पहले भी कई बार सामने आ चुका है। 2018 में, एनआईए ने एक जाँच में पाया था कि नक्सलियों के नेपाल और फिलीपींस में संपर्क थे, जहाँ से उन्हें हथियार और वैचारिक समर्थन मिलता था। 2024 में, न्यूज़18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, नक्सलियों के कुछ नेता नेपाल के रास्ते हथियारों की तस्करी में शामिल थे। अबूझमाड़ से बरामद सामान इस नेटवर्क को और गहराई से उजागर कर सकता है। छत्तीसगढ़ के डीजीपी अशोक जुनेजा ने एक बयान में कहा, "यह बरामदगी नक्सलवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक बड़ा हथियार है। हमें उम्मीद है कि इससे नक्सलियों के पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करने में मदद मिलेगी।"
लेकिन यह लड़ाई इतनी आसान नहीं है। नक्सलवाद की जड़ें गहरी हैं, और उनके शहरी नेटवर्क ने उन्हें मज़बूत बनाए रखा है। बसवराजू जैसे नेता इस नेटवर्क के ज़रिए ही संगठन को चला रहे थे। बसवराजू की मौत एक बड़ी कामयाबी है, लेकिन असली जीत तब होगी जब हम उनके शहरी और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को पूरी तरह खत्म कर देंगे। इसके लिए विकास और सैन्य रणनीति दोनों पर काम करना होगा। बस्तर में अभी भी कई गाँव बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, और नक्सली इसी का फायदा उठाते हैं।
अबूझमाड़ की इस मुठभेड़ ने नक्सलवाद के खिलाफ भारत की जंग में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। बसवराजू की मौत और उसके गैजेट्स से मिलने वाली जानकारी नक्सलियों के काले साम्राज्य को उजागर करने का मौका दे सकती है। यह मुठभेड़ एक उम्मीद की किरण ज़रूर है, लेकिन असली जीत तब होगी जब बस्तर के जंगल नक्सल मुक्त हों और वहाँ शांति का नया सवेरा आए।