ममता बनर्जी का मुर्शिदाबाद दौरा: बीएसएफ को घेरा, इस्लामिक उपद्रवियों पर चुप्पी

क्या ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए जानबूझकर हिंदुओं को निशाना बना रही हैं?

The Narrative World    06-May-2025   
Total Views |
Representative Image
 
कल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 23 दिन बाद हिंसा प्रभावित मुर्शिदाबाद पहुंचीं। यहां उन्होंने कुछ पीड़ित परिवारों से मुलाकात की, लेकिन अपने भाषण में उन्होंने पूरे मामले के लिए बीएसएफ को जिम्मेदार ठहराया। हैरानी की बात यह रही कि उन्होंने एक शब्द भी उन इस्लामिक उपद्रवियों के खिलाफ नहीं बोला, जिनकी वजह से हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया।
 
गांव के कई हिंदू निवासियों ने खुलकर राज्य पुलिस के खिलाफ नाराजगी जताई और गांव में केंद्रीय बलों की स्थायी तैनाती की मांग की। कई हिंदू परिवारों ने राज्य सरकार का मुआवजा लेने से भी इनकार कर दिया। उनका कहना है कि उन्हें पैसे नहीं, सुरक्षा चाहिए।
 
अपने भाषण में ममता बनर्जी ने कहा, "अगर बीएसएफ फायरिंग नहीं करती, तो दूसरे दिन हिंसा नहीं होती।" लेकिन उन्होंने उन कट्टरपंथियों के बारे में एक शब्द नहीं कहा, जिन्होंने हिंदू गांवों में तोड़फोड़ और आगजनी की।
 
Representative Image
 
ममता ने दावा किया कि उनकी सरकार मुर्शिदाबाद के हिंसा पीड़ित लोगों के जीवन को सामान्य बनाने की पूरी कोशिश करेगी। लेकिन जिन परिवारों को नुकसान हुआ है, उन्होंने ममता के मुआवजे को ठुकरा दिया। मृतक हरगोविंद दास और चंदन दास के परिजन ममता की इस बैठक में शामिल भी नहीं हुए। हरगोविंद की पत्नी पारुल दास ने कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की है। उनका कहना है कि उन्हें बंगाल पुलिस पर भरोसा नहीं है।
अपने भाषण में ममता ने एक और मुद्दा उठाया, जिसका इस हिंसा से कोई लेना-देना नहीं था। उन्होंने कहा कि मुर्शिदाबाद के प्रवासी मजदूरों को भारत के अन्य राज्यों में निशाना बनाया गया।
 
 
12 अप्रैल, 2025 को मुर्शिदाबाद जिले के हिंदू अल्पसंख्यकों पर सुनियोजित हमला हुआ था। धुलियान और शमशेरगंज थाना क्षेत्र के कई हिंदू बहुल गांवों में इस्लामिक उपद्रवियों ने घरों को लूटा, तोड़ा और आग लगा दी। राज्य पुलिस मूकदर्शक बनी रही और हिंसा तीन दिन तक चलती रही। बेतबोना, दीघरी और जाफराबाद गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। अपनी जान बचाने के लिए कई हिंदू परिवार मुर्शिदाबाद छोड़कर मालदा जिले में शरण लेने को मजबूर हो गए।
 
इस पूरे मामले में ममता बनर्जी का रवैया एकतरफा दिखा, जो साफ तौर पर इस्लामिक उपद्रवियों को बचाने और हिंदुओं की पीड़ा को नजरअंदाज करने जैसा था।