झारखंड के रांची में रहने वाले फादर स्टेन स्वामी का नाम कुछ लोग जनजाति अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता के तौर पर लेते हैं, लेकिन उनकी असलियत कुछ और ही कहानी बयां करती है।
84 साल की उम्र में 5 जुलाई 2021 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनके जीवन के आखिरी साल विवादों और गंभीर आरोपों से भरे रहे।
स्टेन स्वामी पर नक्सलियों को समर्थन देने, हथियारों की सप्लाई करने और देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने जैसे संगीन आरोप लगे।
आइए, उनके उन गलत कामों पर नजर डालते हैं, जो उन्हें एक नक्सल समर्थक और देश के लिए खतरा साबित करते हैं।
स्टेन स्वामी को 8 अक्टूबर 2020 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किया था।
इस मामले में उन पर आरोप था कि उन्होंने 2018 में पुणे के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा को भड़काने में भूमिका निभाई।
एनआईए का दावा था कि स्टेन स्वामी नक्सल आतंकियों के साथ मिलकर काम करते थे और उनकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए धन और हथियार मुहैया कराते थे।
जांच में उनके लैपटॉप से कुछ दस्तावेज मिले, जिनमें नक्सलियों के साथ उनकी बातचीत के सबूत थे।
हालांकि, स्वामी ने इन दस्तावेजों को फर्जी बताया, लेकिन जांच एजेंसियों ने इसे गंभीरता से लिया।
उनके घर से बरामद सामग्री में नक्सल साहित्य और हथियारों से जुड़े दस्तावेज भी शामिल थे, जो उनके नक्सल समर्थन को उजागर करते हैं।
स्वामी पर एक और गंभीर आरोप था। "कन्वर्जन कराने का!" झारखंड के जनजाति इलाकों में वे लंबे समय तक सक्रिय रहे और वहां ईसाई मिशनरी गतिविधियों को बढ़ावा देने का काम किया।
कई लोग मानते हैं कि उन्होंने जनजातियों को उनके पारंपरिक विश्वासों से दूर करने की कोशिश की और कन्वर्जन के जरिए सामाजिक तनाव को बढ़ाया।
यह काम उन्होंने अपनी संस्था 'बगाइचा' के जरिए किया, जो कथित तौर पर जनजाति अधिकारों की आड़ में नक्सलियों को समर्थन देने का केंद्र थी।
स्थानीय लोगों का कहना है कि स्वामी की गतिविधियां जनजातियों के बीच भटकाव पैदा करती थीं और उनकी सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करती थीं।
स्वामी का नक्सलियों के साथ गहरा नाता था। वे कथित तौर पर नक्सल आतंकियों को न सिर्फ वैचारिक समर्थन देते थे, बल्कि उनकी हिंसक गतिविधियों के लिए धन और संसाधन भी जुटाते थे।
एनआईए की जांच में सामने आया कि स्वामी का संबंध माओवादी संगठनों से था, जो देश में हिंसा और अराजकता फैलाने की साजिश रच रहे थे।
उनकी गिरफ्तारी से पहले 2018 में भी उनके ठिकानों पर छापेमारी हुई थी, जिसमें कई आपत्तिजनक दस्तावेज मिले। फिर भी, स्वामी ने जांच में सहयोग नहीं किया और बार-बार खुद को निर्दोष बताने की कोशिश की।
उनके समर्थक कहते हैं कि स्वामी की गिरफ्तारी और जेल में रखना गलत था, लेकिन सच्चाई यह है कि उनके खिलाफ पुख्ता सबूत थे।
वे अपनी बीमारी और उम्र का हवाला देकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश करते थे, लेकिन जांच एजेंसियों ने साफ किया कि उनकी गतिविधियां देश की सुरक्षा के लिए खतरा थीं।
उनकी गिरफ्तारी के बाद कई वामपंथी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने उनके समर्थन में आवाज उठाई, लेकिन यह भी सवाल उठता है कि क्या ये लोग नक्सल आतंक को बढ़ावा देने वालों का बचाव कर रहे थे?
स्टेन स्वामी का जीवन विवादों से भरा रहा। उनके काम जनजाति अधिकारों की आड़ में नक्सलियों को मजबूत करने और देशविरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए थे।
उनकी मृत्यु के बाद भी उनके समर्थक उन्हें निर्दोष साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सबूत उनके खिलाफ हैं।
स्वामी जैसे थे, उससे ये साफ था कि वो विकास और अधिकारों की बात कर पीछे छिपकर हिंसा और अराजकता को बढ़ावा देते थे।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़