छत्तीसगढ़ में अब नक्सलवाद अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है। एक तरफ जहां नारायणपुर में तीन इनामी नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया, वहीं दूसरी तरफ सुकमा में हुई मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने दो खूंखार नक्सलियों को ढेर कर दिया। इनमें एक महिला माओवादी भी शामिल थी।
नारायणपुर में तीन इनामी नक्सलियों ने छोड़ी बंदूक
नारायणपुर जिले में बुधवार और मंगलवार को तीन इनामी नक्सलियों ने पुलिस और सीआरपीएफ अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इन तीनों में दो महिलाएं भी शामिल थीं। आत्मसमर्पण करने वालों में भिमा उर्फ दिनेश पोडियम नाम का नक्सली सबसे बड़ा था, जो पूर्व बस्तर डिवीजन में कंपनी पार्टी का सदस्य था। उस पर दस लाख रुपये का इनाम था। वहीं, सुखली कोर्राम उर्फ सपना पर आठ लाख और देवली मंडावी पर एक लाख का इनाम था।
इन तीनों ने साफ शब्दों में कहा कि उन्हें माओवादी विचारधारा अब खोखली और अमानवीय लगने लगी थी। साथ ही, शीर्ष माओवादी नेताओं द्वारा जनजातियों के शोषण और बस्तर क्षेत्र में बढ़ती सुरक्षा बलों की ताकत से वे प्रभावित हुए। आत्मसमर्पण के बाद तीनों को तुरंत 50-50 हजार रुपये की सहायता राशि दी गई और उन्हें सरकार की पुनर्वास योजना के तहत आगे की मदद दी जाएगी।
नारायणपुर के एसएसपी प्रभात कुमार ने कहा कि ‘माड़ बचाओ अभियान’ अब असर दिखा रहा है और नक्सलियों की जड़े कमजोर हो रही हैं। इस साल अब तक जिले में 104 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जबकि पिछले साल बस्तर क्षेत्र में 792 नक्सलियों ने हथियार डाले थे।
सुकमा के जंगलों में मुठभेड़, दो माओवादी ढेर
वहीं दूसरी ओर बुधवार को सुकमा जिले के कुकानार थाना क्षेत्र के पुसगुन्ना जंगल में सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच जबरदस्त मुठभेड़ हुई। खुफिया सूचना के आधार पर जिला पुलिस और डीआरजी की टीम ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया था। दोपहर करीब 2 बजे माओवादियों ने अचानक गोलीबारी शुरू कर दी, जिसका मुंहतोड़ जवाब दिया गया।
मुठभेड़ में दो नक्सली मारे गए। इनमें बामन नामक नक्सली कमांडर शामिल था, जो पेदारास लोकल ऑर्गनाइजेशन स्क्वाड का प्रमुख था और उस पर पांच लाख रुपये का इनाम था। दूसरी मारी गई महिला माओवादी की पहचान अभी नहीं हो पाई है।
मुठभेड़ के बाद घटनास्थल से एक इंसास राइफल, 12 बोर की बंदूक और कई विस्फोटक सामग्री बरामद की गई। कई अन्य नक्सली घने जंगल का फायदा उठाकर भागने में सफल रहे, जिन्हें पकड़ने के लिए तलाशी अभियान जारी है।
सरकार की नीति और सुरक्षाबलों की सख्ती ला रही रंग
छत्तीसगढ़ में जिस तरह से एक ओर नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं और दूसरी ओर मुठभेड़ों में मारे जा रहे हैं, यह साफ संकेत है कि माओवादी अब कमजोर हो रहे हैं। भारत सरकार की पुनर्वास नीति, सुरक्षा बलों की मुस्तैदी और जनता का समर्थन मिलकर एक नए बस्तर की नींव रख रहे हैं।
अब वक्त है कि बाकी बचे माओवादी भी यह समझें कि हिंसा से न तो समाज का भला होगा और न ही आदिवासियों का। जो काम सरकार कर रही है, वह उनके विकास और सम्मान के लिए है। और जो माओवादी उन्हें गुमराह कर रहे हैं, वे दरअसल बाहर के एजेंडे को अंदर से चला रहे हैं, जिनका मकसद सिर्फ भारत को कमजोर करना है।
अब समय है एकजुट होकर नक्सलवाद के खिलाफ खड़ा होने का ताकि आने वाली पीढ़ियों को भय और खून-खराबे से मुक्त भविष्य मिल सके।