इजरायल ने हाल ही में ईरान पर जबरदस्त हमला किया जिसमें अमेरिका से मिले खतरनाक हथियारों की बड़ी भूमिका रही। इस हमले में अमेरिका द्वारा भेजी गई 300 हेलफायर मिसाइलें इस्तेमाल की गईं, जो ईरान के सैन्य ठिकानों और परमाणु केंद्रों पर सटीक वार करने में बेहद कारगर साबित हुईं।
इन मिसाइलों की खास बात यह है कि ये बेहद सटीक निशाना लगाती हैं और इनका विनाशक प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। इन्हें खासतौर पर छोटे और मध्यम दूरी के लक्ष्यों पर हमले के लिए तैयार किया गया है। पहली बार इन्हें 1972 में अमेरिकी सेना के लिए तैयार किया गया था ताकि सोवियत टैंकों का मुकाबला किया जा सके। लेकिन आज यह मिसाइलें बंकर, टैंक, रडार, संचार केंद्र और यहां तक कि उड़ते हेलिकॉप्टरों को भी तबाह कर सकती हैं।
इजरायल को ये मिसाइलें एक पुराने 7.4 अरब डॉलर के हथियार सौदे के तहत दी गईं थीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका को जब इजरायल के ईरान पर ऑपरेशन की योजना की जानकारी मिली, तो उसने तुरंत यह मिसाइलें पहुंचा दीं। इसके बाद इन मिसाइलों की मदद से इजरायल ने ईरान के कई इलाकों में भारी तबाही मचाई और वहां की परमाणु ताकत को निशाना बनाया।
इजरायल ने दावा किया है कि इस ऑपरेशन में 78 ईरानी मारे गए और ईरान की ओर से दागे गए लगभग 150 बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया गया। इस पूरे ऑपरेशन को 'ऑपरेशन राइजिंग लॉयंस' नाम दिया गया था और इसे ईरान पर हुआ सबसे बड़ा हमला बताया जा रहा है, जो ईरान-इराक युद्ध के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हुआ।
एक अमेरिकी अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को ईरानी मिसाइल हमलों से बचाव के लिए अमेरिका का पूरा सहयोग मिला। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि अमेरिका ने अपने लड़ाकू विमान या नौसेना के किसी जहाज का इस्तेमाल किया या नहीं। यह जानकारी अमेरिका के ही एक मीडिया संस्थान Axios ने दी है।
इस बीच व्हाइट हाउस ने पुष्टि की है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पूरे घटनाक्रम को लेकर नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के साथ उच्च स्तरीय बैठक की। इसके अलावा ट्रंप और नेतन्याहू के बीच फोन पर बातचीत भी हुई। हालांकि इन बैठकों में क्या चर्चा हुई, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई।
हालांकि अमेरिका ने यह साफ किया है कि उसने इजरायल के ईरान पर हमले में कोई सीधा हिस्सा नहीं लिया है। एक इंटरव्यू में राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि उन्हें इजरायल की कार्रवाई पर कोई हैरानी नहीं हुई। उन्होंने इसे “अपेक्षित कदम” बताया।
यह हमला इजरायल की तरफ से ईरान के परमाणु ठिकानों पर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है। इसने ईरान की सामरिक क्षमताओं को झटका दिया है और पश्चिम एशिया में तनाव और बढ़ा दिया है।
इजरायल और अमेरिका के बीच इस तरह की रणनीतिक साझेदारी दिखाती है कि आने वाले समय में क्षेत्रीय सुरक्षा की दिशा और भी आक्रामक हो सकती है। अब यह देखना होगा कि ईरान इस हमले के जवाब में क्या कदम उठाता है।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़