प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा ने वैश्विक कूटनीति में भारत की आक्रामक और रणनीतिक उपस्थिति को एक बार फिर रेखांकित किया है।
साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिदेस के साथ मुलाकात में मोदी ने साइप्रस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के प्रस्तावों के आधार पर हल करने की वकालत की, जिसमें उत्तरी साइप्रस से तुर्की की सेना को हटाने की मांग शामिल है।
यह बयान न केवल साइप्रस के प्रति भारत की एकजुटता को दर्शाता है, बल्कि हाल के भारत-पाक तनाव में तुर्की द्वारा पाकिस्तान को दी गई सैन्य और राजनयिक मदद के जवाब में एक कड़ा कूटनीतिक संदेश भी है।
भारत ने इस यात्रा के जरिए तुर्की को स्पष्ट कर दिया है कि वह उसकी क्षेत्रीय आक्रामकता और भारत विरोधी रुख को बर्दाश्त नहीं करेगा।
साइप्रस का मुद्दा 1974 से वैश्विक मंचों पर चर्चा का केंद्र रहा है, जब तुर्की ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर लिया था।
यह कब्जा आज भी ग्रीक साइप्रस और तुर्की समर्थित उत्तरी साइप्रस के बीच तनाव का प्रमुख कारण है।
यूएनएससी के प्रस्ताव 541 और 550 में तुर्की समर्थित तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस को अवैध घोषित किया गया है और तुर्की से अपनी सेना हटाने की मांग की गई है।
मोदी की यह टिप्पणी साइप्रस के प्रति भारत के समर्थन को दर्शाती है, जो तुर्की के लिए एक कड़ा संदेश है। विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत की रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह तुर्की को उसके ही क्षेत्रीय विवादों में उलझाकर कूटनीतिक दबाव बनाना चाहता है।
हाल के भारत-पाक तनाव, विशेष रूप से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान, तुर्की ने पाकिस्तान को खुला समर्थन दिया था।
खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, तुर्की ने पाकिस्तान को सोंगर ड्रोन जैसे सशस्त्र यूएवी, सैन्य विमान और युद्धपोतों के जरिए सैन्य सहायता प्रदान की थी।
इसके अलावा, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करते हुए भारत विरोधी बयान दिए थे।
तुर्की के राजदूत ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात कर एकजुटता दिखाई, जिसे भारत ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को कमजोर करने वाला कदम माना।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मई 2025 में एक प्रेस ब्रीफिंग में तुर्की को चेतावनी दी थी कि यदि वह पाकिस्तान के आतंकवाद समर्थन को बढ़ावा देता रहा, तो भारत-तुर्की संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा।
मोदी की साइप्रस यात्रा, जो 15-17 जून को जी-7 शिखर सम्मेलन से पहले हुई, न केवल साइप्रस के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का प्रयास है, बल्कि तुर्की को वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने की रणनीति भी है।
साइप्रस के राष्ट्रपति के साथ मुलाकात में मोदी ने न केवल साइप्रस की क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया, बल्कि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) और व्यापार जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की।
यह दौरा भारत की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह तुर्की के विरोधी देशों, जैसे साइप्रस और ग्रीस, के साथ संबंधों को मजबूत कर रहा है।
साइप्रस, जो यूरोपीय संघ का सदस्य है, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बन सकता है, खासकर पूर्वी भूमध्यसागर में।
विदेश नीति विश्लेषक ने इस यात्रा को भारत की कूटनीतिक परिपक्वता का प्रतीक बताया।
उन्होंने कहा, “मोदी का साइप्रस दौरा तुर्की को यह संदेश देता है कि भारत अब केवल जवाबी कार्रवाई तक सीमित नहीं है। यह एक सक्रिय कूटनीति है, जो तुर्की को उसके अपने क्षेत्रीय विवादों में उलझाकर भारत के हितों की रक्षा करती है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि तुर्की का पाकिस्तान के साथ गठजोड़ भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह न केवल सैन्य समर्थन तक सीमित है, बल्कि जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों को वित्तीय और वैचारिक मदद देकर भारत के पूर्वोत्तर, कश्मीर और केरल जैसे क्षेत्रों में अस्थिरता फैलाने की कोशिश भी शामिल है।
तुर्की का भारत विरोधी रुख केवल पाकिस्तान तक सीमित नहीं है। हाल के वर्षों में, तुर्की ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर उठाकर भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाने की कोशिश की है।
एर्दोगन की महत्वाकांक्षा, खुद को इस्लामिक दुनिया के नेता के रूप में स्थापित करने की, ने उन्हें सऊदी अरब जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में डाल दिया है।
भारत ने इस रुख को “गैर-जिम्मेदाराना” करार देते हुए तुर्की को चेतावनी दी है कि वह आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली नीतियों से दूर रहे।
साइप्रस यात्रा के दौरान मोदी ने न केवल तुर्की की आलोचना की, बल्कि भारत की उस नीति को भी रेखांकित किया, जिसमें वह वैश्विक मंचों पर नियम-आधारित व्यवस्था की वकालत करता है।
साइप्रस के साथ भारत के संबंधों को और मजबूत करने के लिए दोनों देशों ने व्यापार, निवेश और रक्षा सहयोग पर चर्चा की।
यह दौरा भारत के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह तुर्की के क्षेत्रीय प्रभाव को कम करने की दिशा में एक कदम है।
तुर्की, जो पहले ही घरेलू अस्थिरता और आर्थिक संकट से जूझ रहा है, अब भारत जैसे उभरते वैश्विक शक्ति के कूटनीतिक दबाव का सामना कर रहा है।
सोशल मीडिया X पर भी इस मुद्दे को लेकर व्यापक चर्चा देखी गई। कई भारतीय उपयोगकर्ताओं ने मोदी की इस रणनीति को “कूटनीतिक मास्टरस्ट्रोक” करार दिया, जबकि कुछ ने तुर्की के पाकिस्तान समर्थन को “खतरनाक गठजोड़” बताया।
मोदी की साइप्रस यात्रा भारत की नई विदेश नीति का एक शक्तिशाली प्रदर्शन है, जिसमें वह न केवल अपने हितों की रक्षा करता है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपने विरोधियों को कूटनीतिक रूप से घेरने में भी सक्षम है।
तुर्की, जो पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ रणनीति बना रहा था, अब खुद को साइप्रस जैसे मुद्दों पर घिरा हुआ पा रहा है।
यह भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत और कूटनीतिक चतुराई का प्रतीक है।
जैसा कि रक्षा विशेषज्ञ ने कहा, “भारत अब केवल प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं है। हम अब वैश्विक शतरंज के बोर्ड पर अपनी चालें चल रहे हैं, और तुर्की को यह समझना होगा कि भारत के साथ उलझना महंगा पड़ सकता है।”