कांग्रेस और गांधी परिवार हमेशा से ही लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सबसे बड़े दुश्मन रहे हैं।
आज राहुल गांधी खुद को छात्रों का हितैषी बताने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या वह कभी बता पाएंगे कि उनकी दादी इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान छात्रों के साथ क्या किया था?
12 जून 1975 को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी धोखाधड़ी का दोषी ठहराया और उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी, तब उन्होंने सत्ता बचाने के लिए संविधान की धज्जियां उड़ाकर देश में आपातकाल थोप दिया।
25 जून 1975 से मार्च 1977 तक भारत अंधेरे में डूब गया। प्रेस पर ताले जड़े गए, विपक्षी नेताओं को जेलों में ठूंसा गया और सबसे ज्यादा जुल्म हुआ छात्रों पर।
कॉलेजों और यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राएं, जो उस समय केवल पढ़ाई में लगे रहने चाहिए थे, उन्हें इंदिरा गांधी की पुलिस ने बेहरमी से पीटा, जेलों में ठूंस दिया और कई मामलों में तो उनकी हत्या तक कर दी गई।
सिर्फ इसलिए क्योंकि वे सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। क्या राहुल गांधी को इन घटनाओं की याद नहीं? क्या उन्होंने कभी इन अत्याचारों पर एक शब्द भी बोला?
कर्नाटक, केरल, दिल्ली, बिहार और मध्यप्रदेश तक – हर राज्य में छात्रों पर कांग्रेस सरकार ने बर्बरता की हदें पार कर दीं।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र हेमंत कुमार विष्णोई को उल्टा लटका कर मोमबत्ती से जला दिया गया, उनके शरीर में मिर्च डाल दी गई।
केरल के राजन नामक छात्र को पुलिस टॉर्चर में मार दिया गया और उसकी लाश तक गायब कर दी गई। क्या यही है कांग्रेस का लोकतंत्र?
आज राहुल गांधी जब नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) का विरोध करते हैं, जब छात्रों के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें भाजपा के खिलाफ भड़काने की कोशिश करते हैं, तो वह खुद के परिवार की करतूतों को क्यों भूल जाते हैं?
क्या उन्हें नहीं पता कि उनके परिवार ने कभी छात्रों की आवाज नहीं सुनी, बल्कि उन्हें सिर्फ अपने सत्ता के औजार की तरह इस्तेमाल किया?
राहुल गांधी संसद में खड़े होकर कहते हैं कि NEET जैसी परीक्षाएं अमीरों के लिए हैं। लेकिन वह भूल जाते हैं कि उनकी पार्टी के शासनकाल में छात्रों की सबसे ज्यादा अनदेखी हुई।
जब-जब कांग्रेस सत्ता में रही, तब-तब छात्रों को या तो दबाया गया, या फिर उन्हें सड़कों पर लड़ने को मजबूर किया गया।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के DUSU दफ्तर में राहुल गांधी का अचानक पहुंचना और वहां NSUI के जरिए छात्रों को डराना-धमकाना, यह बताता है कि उनका मकसद छात्रों की मदद करना नहीं बल्कि अपनी राजनीति चमकाना है।
वह बार-बार आरएसएस और हिन्दू संगठनों को निशाना बनाते हैं, लेकिन यह नहीं बताते कि उनकी पार्टी ने छात्रों के साथ कौन-कौन से अत्याचार किए।
आपातकाल में एक साल के भीतर लाखों लोगों को जेल में ठूंस दिया गया, जिनमें हजारों छात्र शामिल थे। कोई चार्ज नहीं, कोई सुनवाई नहीं। सिर्फ इसलिए कि उन्होंने कांग्रेस की नीतियों पर सवाल उठाया।
1976 में बिहार के छात्र नेता अश्विनी चौबे को पुलिस ने जिंदा जलाने की कोशिश की, सिर्फ इसलिए कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।
राहुल गांधी बार-बार कहते हैं कि वह छात्रों की आवाज संसद में उठाएंगे, लेकिन यह आवाज उठाना तभी याद आता है जब चुनाव नजदीक होते हैं।
वह छात्रों को जाति, धर्म और भाषा के नाम पर बांटते हैं, भड़काते हैं, और फिर उन्हें सड़क पर उतारकर सत्ता की लड़ाई का हथियार बनाते हैं।
जो उमर खालिद जैसे लोगों को समर्थन देता है, वह क्या देश की भावी पीढ़ी का हितैषी हो सकता है?
कांग्रेस की मानसिकता आज भी वैसी ही है, जैसी आपातकाल के दौरान थी – छात्रों को कुचलने वाली, अभिव्यक्ति को दबाने वाली।
और राहुल गांधी भी अपनी दादी की तर्ज पर वही राजनीति कर रहे हैं – दिखावा, झूठ और सत्ता का लालच।
छात्रों को अब यह समझना होगा कि कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए उनका भविष्य मायने नहीं रखता। उनके लिए छात्र सिर्फ एक साधन हैं, सत्ता तक पहुंचने का जरिया।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़