पश्चिमी एशिया में कहीं अशांति का दौर विश्व युद्ध में न बदल जाए

ईरान-इज़रायल के बीच छिड़ा युद्ध पश्चिम एशिया को अशांत कर रहा है, जिससे वैश्विक स्तर पर एक बड़े संघर्ष की आहट महसूस की जा रही है।

The Narrative World    22-Jun-2025
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पृथ्वी पर 71% जल क्षेत्र महासागर और सागर के रूप में और 29% स्थल भाग महाद्वीप और द्वीपों के रूप में स्थित हैं।
 
विश्व में सात महाद्वीप- एशिया, यूरोप, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और अंटार्कटिका हैं, जिसमें एशिया सबसे बड़ा महाद्वीप क्षेत्रफल और जनसंख्या के रूप में है। जबकि अंटार्कटिका में आबादी नहीं है।
 
विश्व में एशिया का क्षेत्रफल 30% है और एशिया में विश्व की 60% जनसंख्या पाई जाती है, इसलिए चीन तथा भारत में सबसे अधिक जनसंख्या पाई जाती है।
 
यही नहीं, एशिया में पांच करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले देश - इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, जापान, फिलीपींस, वियतनाम, ईरान, तुर्की, थाईलैंड, म्यांमार और दक्षिण कोरिया हैं।
 
एशिया विविध लक्षण, धरातल, शैल संरचना, जलवायु, संसाधन, धर्म, सभ्यताएं और मानव नृजातियों वाला महाद्वीप माना जाता है।
 
सबसे बड़ी बात यह है कि एशिया बहुत विचित्र महाद्वीप माना गया है। इसलिए उत्तरी एशिया पर्वतीय और शीत मरूस्थलीय क्षेत्र है, लेकिन पूर्वी एशिया इंडो-चाइना का क्षेत्र है।
 
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यहां जापान सबसे विकसित देश माना जाता है। दक्षिण एशिया को भारतीय उपमहाद्वीप भी कहा जाता है।
 
विशाल हिमालय पर्वतमाला, सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान तथा भारतीय प्रायद्वीप यहां की मुख्य भूमिका है।
 
यहां सबसे प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप में सनातन धर्म, बौद्ध, जैन और सिख धर्म का उद्भव हुआ।
 
पश्चिम एशिया, जिसे पश्चिमी इतिहासकारों ने मिडिल ईस्ट या मध्य पूर्व कहा है, भी मानव जीवन के लिए उपयोगी रहा है। यहां पर बेबीलोन और मेसोपोटामिया की सभ्यता विकसित हुई है। दजला और फरात नदियों ने मानव सभ्यता का राग गाया है।
 
 
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यहां इजरायल के जेरूशलम में तीन धर्म - यहूदी, ईसाई और इस्लाम - विकसित हुए, जिसमें यहूदी धर्म सबसे पुराना धर्म है।
 
यही नहीं, दो हजार वर्ष पूर्व ईसाई धर्म और डेढ़ हजार वर्ष पूर्व इस्लाम धर्म विकसित हुआ है। वहीं, ईरान में पहले से ही पारसी धर्म था, जोकि इस्लाम से बहुत प्राचीन था।
 
पश्चिम एशिया में मरूस्थलीय और अर्ध-मरूस्थलीय क्षेत्र ही अधिक पाया जाता है। नदियों और जल क्षेत्र में वर्चस्व का संघर्ष कई शताब्दियों तक होता रहा। यह संघर्ष भूमध्यसागर के पूर्वी भाग में होता रहा है।
 
संख्या में कम होने के कारण यहूदी कमजोर पड़ गए और विश्व के अन्य भागों में चले गए। इस क्षेत्र में इस्लाम के अनुयायियों का वर्चस्व हो गया। यही नहीं, ईसाई भी यूरोप में बिखर गए।
 
अरब प्रायद्वीप में खानाबदोश चरवाहों को पशुओं के लिए चारा और जल के लिए भटकना पड़ता था।
 
 
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आधुनिक काल में आते-आते सभी क्षेत्रों में इस्लाम का कब्जा हो गया। बीसवीं शताब्दी में वहां पेट्रोलियम का अकूत भंडार मिलने से सऊदी अरब, ईरान, और खाड़ी के देशों जैसे संयुक्त अरब अमीरात में आधुनिक सभ्यता विकसित हुई है।
 
पेट्रोलियम ने मिडिल ईस्ट की किस्मत बदलकर रख दी है। सबसे पुराना धर्म यहूदी पश्चिम एशिया में एक छोटे जेरूशलम क्षेत्र में सीमित हो गया।
 
आधुनिक काल में यूरोप को दो-दो विश्व युद्धों का प्रकोप झेलना पड़ा। द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने यहूदियों पर बहुत अत्याचार कर उन्हें समाप्त करने की कोशिश की।
 
तब द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में यहूदियों के लिए एक अलग देश की घोषणा की गई।
 
 
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उद्भव क्षेत्र जेरूशलम में 14 मई 1948 को यहूदियों के लिए देश इजरायल का निर्माण हुआ, इसके पश्चिम में भूमध्यसागर और पूर्व में फिलीस्तीन देश की मान्यता की घोषणा हुई।
 
यहूदियों के नए देश इजरायल का क्षेत्रफल 22,145 वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या 92 लाख है।
 
पूरे विश्व में यहूदियों की संख्या केवल एक करोड़ 90 लाख है, जो कि अमेरिका और यूरोप महाद्वीप में रह रहे हैं।
 
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इजरायल की नई राजधानी तेल अवीव है। इजरायल के पड़ोसी देश लेबनान, सीरिया, जॉर्डन और इजिप्ट हैं; उसके पड़ोसी देश सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, इराक और ईरान हैं।
 
सभी मुस्लिम बहुल देशों से इजरायल घिरा हुआ है। केवल पश्चिमी भाग में भूमध्यसागर स्थित है। पश्चिम एशिया में इजरायल की स्थिति जैसे मुंह में 32 दांतों के बीच जबान होती है।
 
यहूदियों के एकमात्र देश इजरायल के निर्माण का सभी इस्लामिक देशों ने जबरदस्त विरोध किया और जन्म होने के बाद जब दुनिया भर से यहूदी बसने आ रहे थे, तभी अरब देशों ने हमला कर दिया।
 
अरब-इजरायल युद्ध में इजरायल ने अरब सेनाओं को बुरी तरह से पराजित कर दिया।
 
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ऐसे विषम परिस्थितियों में इजरायल ने अपनी स्थलीय सेना, वायु सेना और नौसेना को बहुत सुदृढ़ किया।
 
सभी युवाओं (पुरुष और महिला) के लिए सेना द्वारा राष्ट्र सेवा को अनिवार्य कर दिया गया।
 
जर्मनी, जापान के बाद इजरायल को राष्ट्रवाद का पर्याय माना जाता है। संकट के समय संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप का संपूर्ण सहयोग मिलता है।
 
इजरायल ने अर्ध शताब्दी में ऐसी तकनीक का विकास किया जिससे कृषि और उद्योग उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
 
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सुरक्षा सेना को अति आधुनिक बना दिया गया। और इजरायल कम समय में विकसित देश बन गया।
 
यूरोप और अमेरिका में फैले यहूदियों ने इजरायल को पूर्ण राजनीतिक और आर्थिक विकास में सहयोग दिया है।
 
इसलिए आज इजरायल पश्चिमी एशिया के देशों की तुलना में अति विकसित है।
 
केवल सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के छोटे-छोटे राज्य पेट्रोलियम के अकूत भंडार के कारण विकसित हो गए हैं।
 
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वहीं ईरान और इराक, जहां विश्व सभ्यता वाला क्षेत्र है, वहां भी पेट्रोलियम के कारण धनी हो गए हैं, लेकिन उसका उपयोग आर्थिक विकास - कृषि और उद्योग में नहीं हो रहा है, बल्कि परमाणु शक्ति और सेना को शक्तिशाली बनाने में किया जा रहा है।
 
पश्चिमी एशिया के देश लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, यमन आर्थिक विकास की दौड़ में पिछड़ गए हैं और तुर्की, जो कि यूरोप और एशिया में स्थित है, आज से कई शताब्दी पूर्व ऑटोमन साम्राज्य का केंद्र था।
 
इस्लामिक सत्ता उसके पास थी और उसका साम्राज्य दक्षिण यूरोप और पश्चिम एशिया में फैला हुआ था।
 
धर्म की सत्ता संघर्ष में कमजोर होती गई। पश्चिम एशिया में इस्लामिक सत्ता के केंद्र अरब में केंद्रीत हो गए।
 
आज तुर्की के अतिरिक्त सऊदी अरब और ईरान भी प्रमुख देश बन गए हैं।
 
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तानाशाह सद्दाम हुसैन ने इराक को भी पेट्रोलियम की बदौलत इस्लामिक केंद्र बना दिया था, लेकिन आपसी संघर्ष में दौड़ से बाहर होकर अलग-थलग होने पर कमजोर हो गया।
 
अब तक इजरायल का पश्चिमी एशिया में तीन बार इस्लामिक देशों से युद्ध का संघर्ष हो चुका है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका ने सामरिक शक्ति प्रदर्शन में सहयोग कर इजरायल को विजयश्री दिलाई।
 
सभी इस्लामिक देश इजरायल को हरा नहीं पाए। एक बार तो इजरायल ने ईजिप्ट (मिस्त्र) की नील नदी को पार करके उसकी अस्मिता पर चोट की है।
 
इजरायल के साथ फिलीस्तीन का भी जन्म हुआ, जिसे विश्व के बहुत से देशों, भारत सहित, ने मान्यता दी है।
 
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लेकिन इजरायल के साथ युद्ध में फिलीस्तीन को भी सबसे अधिक धन और जन की हानि उठानी पड़ती है।
 
फिलीस्तीन में फिलीस्तीन मुक्ति संगठन सदैव आतंकवादी गतिविधियों से इजरायल को हानि पहुंचाता रहा है, जिसके प्रमुख यासिर अराफात को विश्व ने एक ताकतवर नेता के रूप में मान्यता दी।
 
अरब-इजरायल युद्ध ने जहां इजरायल को विकसित होने का अवसर दिया, वहीं फिलीस्तीन राष्ट्र युद्ध से तबाह होता रहा।
 
बीसवीं शताब्दी के अंतिम भाग में पश्चिम एशिया के इस्लामिक देशों ने अपनी सीधे इजरायल से युद्ध करने की रणनीति में बदलाव किया और पेट्रोलियम धन के बल पर कई सैन्य संगठन जैसे लेबनान का हिजबुल्ला, यमन का हूती, इराक का इस्लामिक स्टेट और फिलीस्तीन का हमास खड़ा किया। इरान और अरब देशों से युद्ध के लिए धन और हथियार मिलते हैं।
 
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फिलीस्तीन में फिलीस्तीन मुक्ति संगठन के कमजोर पड़ने पर इजरायल के विरुद्ध हमास ने मोर्चा संभाल लिया है।
 
अमेरिका और यूरोप के देश इन्हीं संगठनों को आतंकवादी मानते हैं और इजरायल को भरपूर आर्थिक और सामरिक मदद देते रहते हैं।
 
आठ अक्टूबर 2023 को फिलीस्तीन के हमास ने इजरायल पर गुपचुप हमला कर दिया।
 
तब इजरायल ने हमास और पड़ोसी देशों पर युद्ध का हमला कर दिया, जिसमें नौसेना, वायु सेना और स्थल सेना ने भीषण युद्ध किया।
 
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इजरायल की सेना ने गाजा और वेस्ट बैंक में तबाही मचाई और इमारतों और हजारों लोगों की धन-जन की हानि हुई।
 
2025 में इजरायल और हमास-फिलीस्तीन युद्ध के बाद युद्धविराम हुआ, लेकिन बंधकों और कैदियों की अदला-बदली सुचारू रूप से नहीं होने से तनाव बना रहा।
 
इसके बाद 13 जून 2025 को इजरायल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमले शुरू किए, जिससे दोनों देशों में पूर्ण युद्ध छिड़ गया।
 
ईरान ने मिसाइलों और ड्रोनों से जवाबी हमले किए, जिसमें तेल अवीव और हाइफा जैसे शहरों को निशाना बनाया गया।
 
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इजरायल ने ईरान के इस्फहान और अराक परमाणु केंद्रों पर हमले किए, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए।
 
जिनेवा में यूरोपीय मंत्रियों और ईरान के बीच शांति वार्ता विफल रही, और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो सप्ताह में सैन्य हस्तक्षेप पर निर्णय लेने की बात कही।
 
इस युद्ध ने क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा दिया है, जिसमें हिजबुल्ला जैसे संगठनों की भूमिका भी चर्चा में है।
 
विश्व में कोरोना महामारी भी तो एक नए किस्म का विश्व युद्ध था। टीकाकरण से ही महामारी लगभग समाप्त हो गई।
 
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फिर रूस और यूक्रेन का युद्ध भी तीन वर्ष से चल रहा है, जिसमें विश्व की सभी शक्तियां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हैं।
 
हम कह सकते हैं कि महामारी के बाद विश्व में बड़े पैमाने पर युद्ध का खतरा बना हुआ है।
बस यूरोप अपने को युद्ध से बचाने में लगा हुआ है और पश्चिम एशिया पिछले अर्ध शताब्दी से आतंकी युद्ध और अब इजरायल-ईरान युद्ध से जूझ रहा है।
 
इसमें दक्षिण एशिया भी शामिल है। आज भारत भी अमेरिका, रूस और चीन की तरह महाशक्ति बन गया है और विश्व के हर क्षेत्र में भारत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
 
इसलिए अमेरिका, रूस, चीन और भारत को पश्चिम एशिया में सक्रिय रहकर मानवता को स्थापित करना होगा।
 
युद्धग्रस्त क्षेत्र में पुनर्वास, खाद्य आपूर्ति और सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका प्रमुख हो जाती है।
 
लेख
 
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इंदु शेखर त्रिपाठी
लेखक, स्तंभकार, विश्लेषक
हैदराबाद, तेलंगाना