ढाका में मंदिर तोड़ने पर बांग्लादेश सरकार की सफाई, हिंदू विरोधियों को खुश करने की कोशिश?

28 Jun 2025 07:20:00
Representative Image
 
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक दुर्गा मंदिर को गिराए जाने के मामले ने वहां के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
 
इस पूरे मामले पर मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार ने सफाई दी है, लेकिन वह सफाई कम और एकतरफा प्रचार ज्यादा लगती है।
 
ढाका के खिलखेत इलाके में स्थित दुर्गा मंदिर को हाल ही में प्रशासन ने यह कहते हुए गिरा दिया कि वह रेलवे की जमीन पर अवैध रूप से बना हुआ था।
 
पर सवाल यह है कि अगर जमीन पर अतिक्रमण था, तो फिर सिर्फ मंदिर ही क्यों गिराया गया, जबकि उसी इलाके में बने सैकड़ों अवैध दुकानों, राजनीतिक दफ्तरों और दूसरी इमारतों को हाथ तक नहीं लगाया गया?
 
Representative Image
 
सरकार की तरफ से 27 जून को जारी प्रेस रिलीज़ में दावा किया गया कि यह मंदिर सिर्फ दुर्गा पूजा 2024 के समय के लिए अस्थायी तौर पर बनाया गया था।
 
लेकिन यह बात खुद सरकार ने भी मानी कि वहां सालों से कई दूसरी अवैध संरचनाएं मौजूद हैं। फिर मंदिर को चुनकर तोड़ने का क्या मकसद था?
 
स्थानीय हिंदू समुदाय ने मंदिर को बचाने की कई बार अपील की थी, लेकिन उनकी एक भी बात नहीं सुनी गई।
 
इतना ही नहीं, सरकार ने दावा किया कि मंदिर की देवी काली की मूर्ति को 'हिंदू समुदाय की मौजूदगी में' बालु नदी में विसर्जित किया गया।
 
सवाल यह है कि जब पुलिस की मौजूदगी में जबरन मंदिर तोड़ा जा रहा हो, तो क्या उस विसर्जन को स्वेच्छा से किया गया धार्मिक कृत्य माना जा सकता है?
 
Representative Image
 
यह पहला मौका नहीं है जब यूनुस सरकार पर हिंदू विरोधी कार्रवाई के आरोप लगे हैं।
 
पिछले कुछ महीनों में बांग्लादेश में कई मंदिरों को तोड़ा गया, मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया गया और हिंदू परिवारों की जमीन पर जबरन कब्जा किया गया।
 
इन सब घटनाओं के पीछे एक ही पैटर्न नजर आता है! प्रशासनिक कार्रवाई के नाम पर अल्पसंख्यकों को डराना और उनकी आस्था को निशाना बनाना।
 
सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि प्रेस रिलीज़ में सरकार ने लोगों से 'तथ्यों की अनदेखी कर प्रतिक्रिया देने से बचने' की सलाह दी है।
 
लेकिन क्या मंदिर गिराना, मूर्ति विसर्जन और अल्पसंख्यकों की अनसुनी की गई फरियाद कोई तथ्य नहीं हैं?
 
Representative Image
सच्चाई यही है कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ दोहरा व्यवहार किया जा रहा है।
 
एक तरफ सरकार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर 'धार्मिक सौहार्द' की बात करती है, वहीं दूसरी ओर जमीन पर मंदिर टूट रहे हैं और अल्पसंख्यक डर के साये में जी रहे हैं।
 
यह घटना सिर्फ एक मंदिर तोड़े जाने की नहीं है, बल्कि यह उस सोच का प्रतीक है जो बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को धीरे-धीरे मिटाने की दिशा में बढ़ रही है।
 
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़
Powered By Sangraha 9.0