छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में सुरक्षाबलों की आक्रामक रणनीति ने नक्सलियों की कमर तोड़ दी है, लेकिन अब ये माओवादी आतंकवादी संगठन अपनी हार को छिपाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रचार युद्ध छेड़ रहे हैं। नक्सलियों का वैश्विक समर्थक संगठन, इंटरनेशनल कमेटी फॉर सपोर्टिंग पीपुल्स वार इन इंडिया (ICSPWI), सोशल मीडिया के जरिए भारत सरकार और सुरक्षाबलों पर हमले कर रहा है।
खुफिया एजेंसियों ने इस साजिश की जांच तेज कर दी है, क्योंकि नक्सली अब न केवल जंगलों में, बल्कि वैश्विक मंचों पर भी अपनी विचारधारा को फैलाने की कोशिश में जुट गए हैं। यह नया मोड़ नक्सलवाद के खिलाफ इस निर्णायक युद्ध को और जटिल बना रहा है, जिसे सरकार ने 2026 तक पूरी तरह खत्म करने का संकल्प लिया है।
बस्तर में नक्सलियों पर शिकंजा
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में सुरक्षाबलों ने नक्सल उन्मूलन अभियानों के जरिए नक्सलियों को चारों ओर से घेर लिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक दशक में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 126 से घटकर मात्र 18 रह गई है। 2014-2024 के बीच नक्सल-संबंधी हिंसक घटनाएं 16,463 से घटकर 7,700 हो गई हैं।
सुरक्षाबलों की रणनीति में CoBRA, सीआरपीएफ, डीआरजी, बस्तर बटालियन, सी-60 और ग्रेहाउंड्स जैसे विशेष दस्तों के साथ-साथ स्थानीय पुलिस की सक्रियता शामिल है। इसके अलावा, आत्मसमर्पण नीतियों और विकास कार्यों ने नक्सलियों के स्थानीय समर्थन को कमजोर किया है।
बस्तर के एक पुलिस सूत्र ने बताया, “नक्सली अब खुलकर गतिविधियां नहीं चला पा रहे। उनकी हताशा साफ दिख रही है, और यही वजह है कि वे अब प्रचार युद्ध पर उतर आए हैं।”
ICSPWI: नक्सलियों का नया हथियार
नक्सलियों ने अपनी कमजोर पड़ती स्थिति को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रोपेगेंडा वॉर शुरू किया है। ICSPWI नामक संगठन इस साजिश का केंद्र बनकर उभरा है। यह संगठन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय है और भारत सरकार पर जनजातियों के खिलाफ अत्याचार का आरोप लगा रहा है।

हाल ही में ICSPWI के एक पोस्ट में दावा किया गया कि “नक्सल ऑपरेशन जनजातियों को निशाना बना रहा है” और इसे बंद करने के लिए “गुरिल्ला जनयुद्ध को तेज करना होगा।” खुफिया सूत्रों के मुताबिक, यह संगठन नक्सलियों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति जुटाने और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत के खिलाफ मुद्दे उठाने की कोशिश कर रहा है।
सेंटर फॉर कंटेम्पररी स्टडीज़ एंड रिसर्च के शोध प्रमुख ऐश्वर्य पुरोहित ने बताया, “ICSPWI का मकसद नक्सलियों के हिंसक अभियान को वैधता दिलाना है। यह नक्सलियों की पुरानी रणनीति है, जिसमें वे खुद को जनजातियों का रक्षक बताकर हिंसा को जायज ठहराते हैं।”
शहीदी सप्ताह: हिंसा को बढ़ावा देने की कोशिश
नक्सलियों ने 28 जुलाई से 3 अगस्त तक “शहीदी सप्ताह” मनाने का ऐलान किया है, जिसमें मारे गए नक्सली चीफ बसवा राजू और अन्य आतंकवादियों की याद में स्मारक और सभाएं आयोजित करने की योजना है। यह सप्ताह नक्सलियों के लिए समर्थकों को एकजुट करने और नए भर्ती अभियान चलाने का मौका है।
सूत्रों के मुताबिक, नक्सल समर्थक सामाजिक कार्यकर्ता और अर्बन नक्सल समूह भी इस मौके का इस्तेमाल कर नक्सल विरोधी अभियानों को गैरकानूनी ठहराने की कोशिश करेंगे। वास्तव में यह प्रोपेगेंडा वॉर का हिस्सा है। नक्सली जानते हैं कि जंगल में उनकी ताकत कम हो रही है, इसलिए वे अब शहरी क्षेत्रों और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी आवाज बुलंद करने की कोशिश कर रहे हैं।
CCOMPOSA का विस्तार: वैश्विक साजिश का खुलासा
माओवादियों ने हाल ही में एक बुकलेट जारी किया, जिसमें उन्होंने कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ माओइस्ट पार्टीज एंड ऑर्गनाइजेशंस ऑफ साउथ एशिया (CCOMPOSA) को मजबूत करने की योजना का जिक्र किया है।
इस संगठन का उद्देश्य दक्षिण एशिया के माओवादी संगठनों के साथ तालमेल बनाना और बाद में यूरोप और अमेरिका में इसका विस्तार करना है। बुकलेट में दावा किया गया है कि माओवादियों ने नेपाल, ग्रीस, फिलीपींस, अफगानिस्तान, और तुर्की जैसे देशों में अपनी जड़ें जमाई हैं। इन देशों में वे समान विचारधारा वाले संगठनों के साथ सहयोग कर रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर वहां की सरकारों द्वारा प्रतिबंधित हैं।
सुरक्षाबलों की रणनीति और चुनौतियां सुरक्षाबल और खुफिया एजेंसियां इस अंतरराष्ट्रीय साजिश को गंभीरता से ले रही हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और छत्तीसगढ़ पुलिस ने ICSPWI और CCOMPOSA की गतिविधियों की जांच शुरू कर दी है।
सोशल मीडिया पर नक्सली प्रचार को ट्रैक करने के लिए साइबर सेल को सक्रिय किया गया है। साथ ही, बस्तर में विकास कार्यों को तेज किया जा रहा है ताकि जनजातीय समुदाय का विश्वास जीता जा सके। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक बयान में कहा था, “नक्सलवाद को 2026 तक पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। हम न केवल उनकी हिंसा का जवाब देंगे, बल्कि उनके प्रचार तंत्र को भी ध्वस्त करेंगे।”
नक्सलवाद: एक राष्ट्रीय खतरा
नक्सलवाद भारत के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। यह विचारधारा हिंसा और अराजकता को बढ़ावा देती है, और इसका असली शिकार जनजातीय समुदाय ही बनता है, जिसे नक्सली अपने “रक्षक” के रूप में पेश करते हैं। बस्तर पर अध्ययन करने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ सिविलाइज़ेशनल स्टडीज़ एंड रिसर्च के प्रमुख वेद प्रकाश सिंह ने बताया, “नक्सली जनजातियों को ढाल बनाकर अपनी हिंसा को जायज ठहराते हैं, लेकिन हकीकत में वे विकास और शांति के सबसे बड़े दुश्मन हैं। नक्सलियों की अंतरराष्ट्रीय साजिश का पर्दाफाश होना इस बात का सबूत है कि वे अब हताश हो चुके हैं। लेकिन उनकी यह रणनीति भारत के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर रही है।"
नक्सलियों का अंतरराष्ट्रीय प्रचार युद्ध भारत के लिए एक चेतावनी है। सुरक्षाबलों को न केवल जंगलों में, बल्कि साइबर स्पेस और वैश्विक मंचों के साथ-साथ नैरेटिव वॉर में भी इस खतरे का मुकाबला करना होगा। सरकार को चाहिए कि वह नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों को और तेज करे और जनजातियों के बीच विश्वास बढ़ाने पर जोर दे।
साथ ही, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नक्सलियों के प्रोपेगैंडा का जवाब देने के लिए एक मजबूत कूटनीतिक रणनीति अपनाई जाए। नक्सलवाद एक ऐसी बीमारी है, जिसे जड़ से उखाड़ने के लिए सैन्य, सामाजिक और कूटनीतिक स्तर पर एकजुट प्रयास जरूरी हैं। भारत ने इस जंग में अब तक उल्लेखनीय प्रगति की है, और यह सुनिश्चित करना होगा कि नक्सलियों की कोई भी साजिश देश की शांति और विकास की राह में बाधा न बन सके।