क्या भारत में जिहादियों द्वारा हिंदू दर्ज़ी कन्हैयालाल की हत्या पर बनी फिल्म भी नहीं दिखाई जा सकती?

दिल्ली हाईकोर्ट ने "उदयपुर फाइल्स" फिल्म पर रोक लगाकर कन्हैया लाल की हत्या की सच्चाई को दबाने की कोशिश की है या सामाजिक सौहार्द की रक्षा? इस्लामिक कट्टरपंथ से जुड़े इस मामले में एनआईए की जांच और जमीअत उलेमा-ए-हिंद की याचिका ने विवाद को हवा दी। क्या अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा मंडरा रहा है?

The Narrative World    11-Jul-2025   
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दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' की रिलीज पर अस्थायी रोक लगा दी, जो राजस्थान के उदयपुर में 2022 में हिंदू दर्जी कन्हैया लाल की बर्बर हत्या की कहानी को बड़े पर्दे पर लाने की कोशिश कर रही थी। यह फैसला जमीअत उलेमा--हिंद की याचिका पर आया, जिसने दावा किया कि फिल्म साम्प्रदायिक तनाव को भड़का सकती है।


कन्हैया लाल की हत्या, जिसे इस्लामिक जिहादी तत्वों ने नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पोस्ट के जवाब में अंजाम दिया, आज भी देश के लिए एक ज्वलंत सवाल बना हुआ है। लेकिन क्या कोर्ट का यह कदम सच्चाई को सामने आने से रोकने की एक नई कोशिश है, या फिर यह सामाजिक सौहार्द की चिंता का परिणाम है?


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फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' का मुद्दा तब गरमाया जब इसका ट्रेलर जुलाई की शुरुआत में रिलीज हुआ। यह फिल्म कन्हैया लाल की हत्या की गहरी पड़ताल करती है, जिसमें दो इस्लामिक जिहादियों, मोहम्मद रियाज अत्तारी और गौस मोहम्मद ने उनके दुकान पर चाकू से हमला कर उनकी गला रेतकर हत्या कर दी थी। हत्यारों ने एक वीडियो जारी कर इस वारदात को इस्लाम का अपमान बताया और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी धमकी दी थी।


राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की जांच में सामने आया कि हत्यारे आत्म-कट्टरवादी थे और उनके पास 26/11 मुंबई हमलों का संकेत देने वाली एक कस्टमाइज्ड मोटरसाइकिल नंबर प्लेट थी, जो इस घटना की गंभीरता को दर्शाती है। इसके बावजूद, तीन साल बाद भी मुख्य आरोपियों को सजा नहीं मिली, जिससे पीड़ित परिवार और देश के कई हिस्सों में आक्रोश है।


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दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले से पहले, सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिसे कन्हैया लाल के बेटे यश ने स्वागत किया था। यश ने कहा, "तीन साल से सबूत होने के बावजूद अपराधियों को सजा नहीं मिली। जब कोई सच्चाई दिखाने की कोशिश करता है, तो एक संगठन सामने आ जाता है और फिल्म पर रोक लगवा देता है।"


दूसरी ओर, जमीअत उलेमा--हिंद ने दलील दी कि फिल्म में संवेदनशील सामग्री है, जो सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकती है। पूर्व कांग्रेसी नेता और वर्तमान में समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद कपिल सिबल, जो इस्लामिक संगठन की ओर से कोर्ट में पेश हुए, ने कहा कि फिल्म का मकसद विवाद पैदा करना हो सकता है।


लेकिन सवाल यह है कि क्या सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) द्वारा 40 से ज्यादा कट्स के बाद भी यह चिंता जायज है? स्वराज्य मैगजीन की रिपोर्ट के अनुसार, सीबीएफसी ने आपत्तिजनक हिस्सों को हटाने का दावा किया, फिर भी कोर्ट ने रुकावट डाल दी।


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इस मामले में एक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि हत्यारों ने खुद को बरेलवी संप्रदाय के दावत--इस्लामी से जोड़ा, जो इस्लामी कट्टरता के उभार को दर्शाता है। एनआईए की जांच में पाया गया कि हत्यारों ने पहले कन्हैया लाल के घर पर हमले की योजना बनाई थी, लेकिन बाद में उनकी दुकान को निशाना बनाया।


यह घटना देश में बढ़ते इस्लामिक जिहाद के खतरे की ओर इशारा करती है, जिसे कई विशेषज्ञ लंबे समय से चेतावनी दे रहे हैं। उदयपुर में उस दिन बाजार बंद हो गए और प्रदर्शनकारियों ने अपराधियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की थी, लेकिन कानून व्यवस्था पर सवाल उठते रहे हैं। रिपब्लिक वर्ल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, हत्यारों ने वीडियो में दावा किया कि वे इस्लाम का बदला ले रहे थे, जो इस घटना को और गंभीर बनाता है।


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दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला भी स्तब्ध करने वाला है। यह भी सच है कि इस तरह के कदम सच्चाई को दबाने की कोशिश के रूप में देखे जा सकते हैं। बीजेपी नेता अमित मालवीय ने ट्वीट कर सवाल उठाया, "कन्हैया लाल की हत्या के पीछे इस्लामिक कट्टरता थी, तो उस सच्चाई को पर्दे पर दिखाने में क्या दिक्कत है?"


दूसरी ओर, फिल्म के निर्माताओं पर धमकियां मिलने की खबरें भी सामने आई हैं, जो इस मुद्दे की जटिलता को बढ़ाती हैं। जयपुर डायलॉग्स के एक पोस्ट में कहा गया, "नूपुर शर्मा का समर्थन करने पर कन्हैया लाल की हत्या हो सकती है, लेकिन उनकी कहानी फिल्म के जरिए नहीं दिखाई जा सकती?"


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विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक शांति के बीच संतुलन का सवाल है। कोर्ट का फैसला समझ में आता है, लेकिन लंबे समय तक सच्चाई को दबाना देश के लिए खतरनाक हो सकता है। कन्हैया लाल की हत्या जैसे मामले इस्लामिक कट्टरता की बढ़ती चुनौती को उजागर करते हैं, जिससे निपटने के लिए मजबूत कदम जरूरी हैं। कुछ लोग मानते हैं कि फिल्म की रिलीज से पहले उसकी स्क्रीनिंग सभी पक्षों के लिए जरूरी थी, लेकिन कोर्ट ने ऐसा करने के बजाय तुरंत रोक लगा दी, जो सवालों को जन्म देता है।


'उदयपुर फाइल्स' पर स्टे एक संवेदनशील मुद्दे पर कोर्ट की वैचारिकता को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह भी सवाल उठाता है कि क्या इस्लामिक जिहाद जैसे गंभीर मुद्दों पर खुली बहस से डरकर सच्चाई को दबाया जा रहा है? कन्हैया लाल का परिवार आज भी इंसाफ की राह देख रहा है, और देश को यह तय करना होगा कि वह सच्चाई को स्वीकार करे या उसे चुप्पी की चादर में लपेटे।