छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में सीपीआई-माओवादी को एक और बड़ा झटका लगा है। शनिवार को 1 करोड़ 18 लाख रुपये के इनामी नक्सली सहित 23 माओवादियों, जिनमें 9 महिलाएँ और 3 नक्सली दंपति शामिल हैं, ने पुलिस और सीआरपीएफ के वरिष्ठ अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें पीएलजीए बटालियन के 4 हार्डकोर नक्सली, 1 श्रीकीसीएम, 6 पीपीसीएम, 4 एसीएम, और 12 पार्टी सदस्य शामिल हैं।
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने माओवादियों की “खोखली और अमानवीय विचारधारा,” स्थानीय जनजातीय समुदायों पर अत्याचार, और बाहरी नक्सलियों द्वारा भेदभाव को छोड़ने का कारण बताया।
छत्तीसगढ़ सरकार की “नक्सल आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति-2025” और “नियद नेल्ला नार” योजना, साथ ही अंदरूनी क्षेत्रों में पुलिस के बढ़ते प्रभाव और नए सुरक्षा कैंपों की स्थापना, ने इन नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया। यह घटना न केवल माओवादी आतंक के खिलाफ एक बड़ी जीत है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि उनकी क्रूर और शोषणकारी विचारधारा अब जनजातीय समुदायों के बीच अपनी पकड़ खो रही है।
12 जुलाई 2025 को सुकमा के पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आयोजित एक समारोह में 23 नक्सलियों ने बिना हथियार के आत्मसमर्पण किया। इस दौरान उप पुलिस महानिरीक्षक (परिचालन) सीआरपीएफ रेंज सुकमा आनंद सिंह राजपुरोहित, उप पुलिस महानिरीक्षक (परिचालन) सीआरपीएफ रेंज जगदलपुर सैय्यद मोहम्मद हबीब असगर, पुलिस अधीक्षक सुकमा किरण चव्हाण, कमांडेंट 227 वाहिनी सीआरपीएफ गोविंद कुमार गुप्ता, और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
आत्मसमर्पण करने वालों में 11 नक्सलियों पर 8-8 लाख, 4 पर 5-5 लाख, 1 पर 3 लाख, और 7 पर 1-1 लाख रुपये का इनाम था, जो कुल मिलाकर 1 करोड़ 18 लाख रुपये का इनाम बनता है।
सुकमा पुलिस ने बताया कि जिला बल, डीआरजी, सीआरपीएफ की 02, 223, 227, 204, 165 वाहिनी, और कोबरा 208 वाहिनी की आसूचना शाखा ने इस आत्मसमर्पण को संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने बताया कि माओवादी संगठन की खोखली विचारधारा और स्थानीय जनजातीय समुदायों पर अत्याचार उन्हें असहनीय हो गए थे। कई नक्सलियों ने बाहरी माओवादी नेताओं द्वारा स्थानीय जनजातीय कैडर के साथ भेदभाव और हिंसा की शिकायत की।
वास्तव में सीपीआई-माओवादी एक आतंकवादी संगठन है, जो जनजातीय समुदायों को गुमराह करने और उनके संसाधनों का शोषण करने का काम करता है। यह आत्मसमर्पण दर्शाता है कि उनकी विचारधारा अब टिक नहीं सकती।
माओवादियों की क्रूरता का एक उदाहरण हाल की घटनाएँ हैं, जहाँ उन्होंने जनजातीय ग्रामीणों को पुलिस मुखबिर होने के शक में मार डाला और जंगलों में आईईडी बिछाकर निर्दोष लोगों और वन्यजीवों को निशाना बनाया।
छत्तीसगढ़ सरकार की “नक्सल आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति-2025” और “नियद नेल्ला नार” योजना ने नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस नीति के तहत, प्रत्येक आत्मसमर्पित नक्सली को 50,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि, कपड़े, और अन्य सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। इसके अलावा, नक्सल-मुक्त घोषित होने वाली ग्राम पंचायतों को 1 करोड़ रुपये के विकास कार्यों का लाभ मिलता है। सुकमा के बड़ेसट्टी और केरलापेंडा गाँव पहले ही नक्सल-मुक्त हो चुके हैं, और यह आत्मसमर्पण इस दिशा में एक और कदम है।
यह आत्मसमर्पण सुकमा के जनजातीय समुदायों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है। पिछले कुछ वर्षों में, माओवादियों ने जनजातीय गाँवों में डर और आतंक का माहौल बनाए रखा था। स्कूलों, सड़कों, और अस्पतालों जैसे विकास कार्यों का विरोध करते हुए, उन्होंने जनजातीय समुदायों को बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा।
सामाजिक कार्यकर्ता और बस्तर शांति समिति के कार्यकर्ता जयराम दास ने कहा, “माओवादी जनजातीय समुदायों के नाम पर हिंसा को जायज ठहराते हैं, लेकिन उनकी हरकतें इन समुदायों को ही नुकसान पहुँचाती हैं। यह आत्मसमर्पण दर्शाता है कि जनजातीय लोग अब उनकी सच्चाई समझ चुके हैं।”
सुकमा में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियानों में जिला बल, डीआरजी, सीआरपीएफ, और कोबरा बटालियन की सक्रियता ने माओवादियों पर दबाव बढ़ाया है। अंदरूनी क्षेत्रों में नए सुरक्षा कैंपों की स्थापना ने नक्सलियों की गतिविधियों को सीमित कर दिया है।
हालाँकि, चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। माओवादी हताश होकर जंगलों में व्यापक स्तर पर आईईडी बिछा रहे हैं, जो न केवल सुरक्षाकर्मियों, बल्कि ग्रामीणों और वन्यजीवों के लिए भी खतरा बन रहे हैं। कुछ समय पूर्व दंतेवाड़ा में एक मादा भालू व उसके बच्चों की आईईडी विस्फोट में मौत ने माओवादियों की क्रूरता को उजागर किया है।
सुकमा में 23 नक्सलियों का आत्मसमर्पण माओवादी आतंक के खिलाफ एक बड़ी जीत है। यह घटना न केवल सीपीआई-माओवादी की खोखली विचारधारा और क्रूरता की हार दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास नीति और सुरक्षाबलों की रणनीति जनजातीय समुदायों में विश्वास पैदा कर रही है। लेकिन, जब तक माओवादियों का पूरी तरह खात्मा नहीं हो जाता, तब तक सुकमा और बस्तर के गाँवों में शांति और विकास का सपना अधूरा रहेगा।