जनगणना के नाम पर वोट की गिनती, कर्नाटक में कांग्रेस की नई चालबाज़ी

जातिगत जनगणना की आड़ में वोट जोड़ने की कोशिश, कांग्रेस पर अपने खास वोट बैंक को फायदा पहुंचाने की रणनीति सामने आई।

The Narrative World    12-Jul-2025
Total Views |
Representative Image
 
कर्नाटक में जातिगत जनगणना को लेकर मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा। कांग्रेस सरकार इसे सामाजिक न्याय का नाम देकर चुनावी हथियार बना रही है, जबकि सच्चाई यह है कि यह जनगणना आंकड़ों से ज्यादा सत्ता की कुर्सी बचाने और जातिगत ध्रुवीकरण करने की चाल बन चुकी है।
 
2015 में सिद्धारमैया की ही पिछली सरकार ने कंथराज आयोग के जरिए 1.35 करोड़ घरों की जनगणना करवाई थी। लेकिन जब रिपोर्ट तैयार हुई तो कांग्रेस ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया, क्योंकि तब उसके नतीजे पार्टी के लिए फायदेमंद नहीं थे। अब 2023 के चुनावों में इसी रिपोर्ट को आधा-अधूरा दिखाकर कांग्रेस फिर सत्ता में आई और जाति आधारित वोट जोड़ने की कोशिश में लग गई।
 
सिद्धारमैया सरकार ने जेपी हेगड़े आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण को 32% से बढ़ाकर 51% करने की सिफारिश की, जिससे कुल आरक्षण 85% पहुंच गया। यह सीधा-सीधा सुप्रीम कोर्ट के तय 50% की सीमा का उल्लंघन है। लेकिन कांग्रेस को संविधान से ज्यादा वोट बैंक की चिंता है।
 
Representative Image
 
 
रिपोर्ट के मुताबिक, मुसलमानों की आबादी 12.58%, लिंगायत 11%, वोक्कालिगा 10.29% और एससी-एसटी मिलाकर 25.3% है। जबकि जनरल कैटेगरी सिर्फ 4.9% बताई गई है। लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रभावशाली समुदायों ने इस रिपोर्ट को फर्जी और अपूर्ण बताया है। उनका कहना है कि उनकी आबादी को जानबूझकर कम दिखाया गया है ताकि कांग्रेस अपने खास वोट बैंक को फायदा पहुंचा सके।
 
सबसे बड़ी साजिश साफ दिखी जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अपनी जाति ‘कुरुबा’ को ‘अत्यंत पिछड़ा वर्ग’ में डाल दिया गया। यह कदम न सिर्फ उनके राजनीतिक वर्चस्व को मजबूत करने के लिए था, बल्कि पार्टी के अंदर अन्य नेताओं को भी कमजोर करने की रणनीति मानी जा रही है। यह सत्ता के लिए जाति का खुला इस्तेमाल है।
 
रिपोर्ट में 50 से ज्यादा घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों को क्रीमी लेयर की छूट से बाहर कर दिया गया, जबकि ये समुदाय आज भी शिक्षा और रोज़गार में सबसे पिछड़े हैं। इससे साफ है कि कांग्रेस का सामाजिक न्याय सिर्फ दिखावा है, असली मकसद अपने खास समुदायों को फायदा देना है।
 
Representative Image
 
 
85% आरक्षण की सिफारिश सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है। इससे राज्य में कानूनी टकराव और सामाजिक टकराव दोनों बढ़ सकते हैं। लेकिन कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उसे तो सिर्फ अगला चुनाव जीतना है।
 
यह वही कांग्रेस है जिसने 10 साल तक रिपोर्ट को दबाए रखा और अब अचानक सामाजिक न्याय की बात कर रही है। असल में यह हड़बड़ी इसलिए है क्योंकि बीजेपी सरकार देशभर में संतुलित जनगणना की योजना बना रही है, जिससे कांग्रेस के जाति कार्ड की हवा निकल सकती है।
 
जातिगत जनगणना अगर ईमानदारी से हो तो वह जरूरी आंकड़े दे सकती है, लेकिन कांग्रेस जैसी पार्टी इसे जिस तरह वोट बैंक का औजार बना रही है, वह बेहद खतरनाक है। कर्नाटक में यह जनगणना अब सामाजिक सुधार नहीं, बल्कि समाज को बांटने का जरिया बन चुकी है।
 
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़