एक ऐसा खुलासा जिसने न सिर्फ सरकारी योजनाओं की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि मदरसों और मिशनरी स्कूलों की नीयत पर भी बड़ा संदेह पैदा कर दिया है। छात्रवृत्ति योजना के नाम पर भोपाल समेत पूरे मध्य प्रदेश में सरकारी पैसे की खुल्लमखुल्ला लूट मची रही और किसी को कानों कान खबर नहीं हुई।
छात्रों के नाम पर दुकानों और क्लीनिकों में चल रहे स्कूल!
भोपाल के जहांगीराबाद में "सिटी मॉन्टेसरी स्कूल" के नाम की एक तख्ती एक गली में टंगी है, लेकिन वहां न कोई स्कूल है, न बच्चे, न शिक्षक। एक स्थानीय पानवाले ने बताया, “दो साल से ये बोर्ड लगा है, लेकिन यहां कभी कोई पढ़ाई नहीं देखी।” फिर भी स्कूल ने 29 फर्जी छात्रों के नाम पर ₹1.65 लाख की छात्रवृत्ति ले ली।
बेरसिया रोड पर MJ कॉन्वेंट और सेंट डी’सूज़ा कॉन्वेंट स्कूल जैसे संस्थानों ने भी ऐसा ही खेल खेला। इन्होंने 11वीं और 12वीं के छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति ली, जबकि इन कक्षाओं की पढ़ाई ही नहीं होती। MJ कॉन्वेंट ने 30 फर्जी छात्रों के नाम पर ₹1.7 लाख और सेंट डी’सूज़ा ने ₹11,400 की छात्रवृत्ति ठग ली।
क्लीनिक में बदला एंबरली कॉन्वेंट स्कूल का पता
लिली टॉकीज के पास जहां पहले एंबरली कॉन्वेंट स्कूल बताया गया था, वहां अब क्लीनिक और दुकानें हैं। इस स्कूल ने 33 फर्जी छात्रों के नाम पर ₹1.8 लाख ले लिए।
कैसे चला ये फर्जीवाड़ा?
इस फर्जीवाड़े की स्क्रिप्ट बहुत साफ थी। स्कूलों ने फर्जी छात्रों का डेटा छात्रवृत्ति पोर्टल पर डाला, अधिकारियों ने बिना किसी जांच के उसे पास कर दिया और मंत्रालय तक भेज दिया। एक बार स्वीकृति मिलते ही पैसे सीधे बैंक खातों में पहुंच गए। लेकिन वे खाते छात्रों के नहीं, स्कूल संचालकों के रिश्तेदारों या साथियों के थे। पैसे आते ही तुरंत निकाल लिए जाते, जिससे पकड़ना मुश्किल हो जाता।
मदरसों की भूमिका भी संदेह के घेरे में
अब तक चिन्हित 40 संस्थानों में से 17 मदरसे हैं, जिनमें से कई ने तो लाखों की रकम हड़प ली। उदाहरण के लिए:
- मदरसा मदुल उलूम: ₹1,28,200
- मदरसा दैनीकी वारिसुल हयात: ₹1,09,300
- मदरसा रोज़ी शि समिति: ₹1,02,600
- मदरसा गुलिस्तान-ए-हिंद: ₹39,900
- मदरसा तालीमुल इस्लाम: ₹34,200
ये वही मदरसे हैं जो दावा करते हैं कि वे इस्लामी शिक्षा और नैतिकता का पालन करते हैं। लेकिन आज वे खुद नैतिकता की लाश ढोते पाए गए।
क्या मिशनरी स्कूल सेवा के नाम पर ठगी का केंद्र बन गए हैं?
कुछ नामों से तो लगता है कि ये संस्थान समाज सेवा और मानवता की बातें करते हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि इनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना रह गया है।
- न्यू एफआर कॉन्वेंट स्कूल: ₹5,45,100
- होली फील्ड स्कूल: ₹3,81,900
- एजुकेशनल एम्पायर कॉन्वेंट स्कूल: ₹3,76,200
- न्यू लाइफ कॉन्वेंट स्कूल: ₹1,65,300
इनमें से कई स्कूलों का तो अस्तित्व ही संदेह के घेरे में है।
कहां है जवाबदेही?
भोपाल क्राइम ब्रांच ने 104 स्कूलों की जांच शुरू कर दी है। अतिरिक्त डीसीपी शैलेंद्र सिंह चौहान के अनुसार, जिन 972 छात्रों के नाम पर पैसे निकाले गए, उनमें से ज्यादातर अस्तित्व में ही नहीं हैं। धोखाधड़ी, जालसाजी, ट्रस्टघात जैसी धाराओं में केस दर्ज हो चुके हैं और अब सीबीआई को जांच सौंपी जा सकती है।
अब सवाल यह है कि...
जब मदरसे और मिशनरी स्कूल जैसे धार्मिक-शैक्षणिक संस्थान, जो खुद को सेवा भाव का प्रतीक बताते हैं, सरकारी धन की इस तरह से लूट कर रहे हैं, तो क्या इन्हें सरकारी संरक्षण और सहायता मिलती रहनी चाहिए?
सरकार को अब इस पूरे ढांचे की गहन समीक्षा करनी चाहिए। अल्पसंख्यक संस्थानों को मिली अंधी छूट और ‘अल्पसंख्यक अधिकारों’ के नाम पर चल रही यह लूट कब तक बर्दाश्त की जाएगी?
क्योंकि यह सिर्फ पैसों की चोरी नहीं है, यह भरोसे की भी हत्या है। यह देश की ईमानदार करदाताओं के साथ धोखा है और उन बच्चों के भविष्य की हत्या है जिन्हें सही मायनों में सहायता की ज़रूरत थी।
अब देश को तय करना होगा, क्या ये संस्थान वाकई शिक्षा केंद्र हैं या फर्जीवाड़े के अड्डे?
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़