कर्नाटक में कांग्रेस सरकार एक ऐसा कानून लाने जा रही है, जो देखने में तो शिक्षा में भेदभाव के खिलाफ है, लेकिन असल में यह सामाजिक समरसता के खिलाफ एक गहरी साजिश है। इस कानून का नाम है 'रोहित वेमुला अधिनियम'। ये वही रोहित वेमुला हैं, जिनकी आत्महत्या को लेकर देश में एक बड़ा विवाद खड़ा किया गया था, जबकि सच्चाई यह थी कि वे अनुसूचित जाति (SC) से नहीं थे।
फिर भी कांग्रेस ने उनके नाम पर कानून लाकर भावनाओं को भड़काने और जातिगत ध्रुवीकरण का नया प्रयास किया है।
कानून के नाम पर एकतरफा दंड और डर
कांग्रेस सरकार द्वारा लाया जा रहा यह कानून न केवल गैर-जमानती होगा बल्कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकेगी।पहली बार दोषी पाए जाने पर एक साल की जेल और ₹10,000 का जुर्माना, और दोबारा दोषी होने पर तीन साल की सजा और ₹1 लाख तक का जुर्माना।
सोचिए, यदि किसी मासूम पर झूठा आरोप लगा दिया गया तो क्या उसका जीवन तबाह नहीं हो जाएगा? और यह भी तय नहीं कि यह भेदभाव हुआ या नहीं, बस शिकायत कर देना ही काफी होगा।
शिक्षा संस्थानों पर भी शिकंजा
अगर कोई संस्थान कानून का उल्लंघन करता पाया गया तो उसकी सरकारी मदद बंद कर दी जाएगी। यानी अगर किसी ने कुछ कहा या किया जिसे किसी वर्ग ने अपमानजनक माना, तो संस्थान को ही सजा भुगतनी पड़ेगी। इससे शिक्षा का माहौल डर और पक्षपात से भर जाएगा।
कांग्रेस का दोहरा चेहरा: झूठ को बनाया हथियार
यह कानून रोहित वेमुला के नाम पर लाया जा रहा है, जबकि अदालत में यह साफ हो चुका है कि वे अनुसूचित जाति से नहीं थे।तेलंगाना पुलिस ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में कहा था कि रोहित वेमुला की मौत किसी भेदभाव के कारण नहीं हुई थी, बल्कि वे खुद मानसिक तनाव में थे। उनके पिता ने भी कहा था कि वे वेदेरा जाति से थे, जो OBC वर्ग में आती है।
इसके बावजूद कांग्रेस ने न सिर्फ झूठे दावे किए, बल्कि इसे जाति की राजनीति का हथियार बना लिया। यह वही रणनीति है जो ब्रिटिश हुकूमत ने अपनाई थी – बांटो और राज करो।
इस बिल के पीछे छुपा एजेंडा
इस बिल की आड़ में कांग्रेस सिर्फ एक वर्ग को नहीं बल्कि सभी सामान्य वर्ग के हिंदुओं को निशाना बनाना चाहती है। जिस तरह SC/ST एक्ट का दुरुपयोग होता रहा है, उसी तरह यह नया कानून भी झूठे मामलों में सामान्य वर्ग के छात्रों और शिक्षकों को फंसाने का जरिया बन सकता है।
साथ ही इस बिल में 'अल्पसंख्यकों' को भी विशेष संरक्षण दिया गया है, जिससे यह साफ होता है कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की अपनी पुरानी नीति पर चल रही है।
सावधान हो जाइए, यह सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं रहेगा
यह कानून सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं रहने वाला। कांग्रेस इसे हिमाचल और तेलंगाना जैसे अपने बाकी शासित राज्यों में भी लागू करने की तैयारी में है। यही नहीं, केंद्र में सत्ता मिलने पर पूरे देश में यह कानून लाने का इरादा भी कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में जताया था।
जनता को सोचना होगा
यह कानून सामाजिक न्याय का नहीं, राजनीतिक स्वार्थ का प्रतीक है। कांग्रेस सिर्फ वोटों के लिए समाज को बांट रही है। हमें यह समझना होगा कि यह कानून भारत की शिक्षा व्यवस्था, सामाजिक समरसता और सामान्य वर्ग के अधिकारों पर सीधा हमला है।
अगर आज नहीं जागे, तो कल हर आम नागरिक डर के साये में जीने को मजबूर होगा। अब वक्त आ गया है कि हर भारतीय इस छलावे को पहचाने और एकजुट होकर इसका विरोध करे। भारत को फिर से जातियों में बांटने की कोशिशों को अब नकारना होगा।
यह समय है न्याय के नाम पर चल रही राजनीति को उजागर करने का, क्योंकि राष्ट्र सबसे पहले आता है।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़