भारत में अब डीपफेक वीडियो लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। पहले नेताओं के मजेदार अवतार तक सीमित यह तकनीक अब इतनी खतरनाक हो गई है कि झूठ और सच्चाई में फर्क करना मुश्किल हो रहा है। इससे न केवल आम लोगों को गुमराह किया जा रहा है, बल्कि देश की सुरक्षा और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश के लिए गंभीर खतरा बताया है।
तमिल टाइगर चीफ की मृत बेटी द्वारका का डीपफेक वीडियो बनाकर उसे जिंदा दिखाया गया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का एक झूठा वीडियो वायरल किया गया, जिसमें उन्हें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण खत्म करने की बात करते दिखाया गया। ये वीडियो पूरी तरह फर्जी थे, लेकिन इनका असर लाखों लोगों तक पहुंच चुका था।
आज प्रचार के तरीके बदल चुके हैं। पहले घर-घर जाकर प्रचार होता था, अब सोशल मीडिया पर डीपफेक वीडियो बनाए जा रहे हैं। कुछ वीडियो नेताओं की छवि सुधारने के लिए बनाए जाते हैं, तो कुछ विरोधियों को बदनाम करने के लिए।
चुनाव प्रचार में काम करने वाले कुछ ग्रुप इन डीपफेक वीडियो को फैलाने में लगे हैं। इन ग्रुप्स को 'स्क्रैच ग्रुप्स' कहा जाता है। ये ग्रुप उम्र के हिसाब से बनाए जाते हैं और 18 से 25 साल के युवा सबसे ज्यादा इसका शिकार होते हैं। व्हाट्सएप जैसे मैसेजिंग ऐप्स की एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन व्यवस्था ऐसे वीडियो को रोकने में मुश्किल पैदा करती है।
दुनिया के कई देश इस खतरे को गंभीरता से ले चुके हैं। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने राजनीतिक विज्ञापनों में डीपफेक के इस्तेमाल पर रोक लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। भारत में भी चुनाव आयोग ने सभी पार्टियों को चेतावनी दी है कि कोई भी गलत जानकारी फैलाई गई तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। अप्रैल 2024 में आयोग ने 'मिथ बनाम रियलिटी रजिस्टर' लॉन्च किया ताकि फेक न्यूज को रोका जा सके।
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने भी सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को डीपफेक और फर्जी जानकारी फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। नियमों का पालन न करने पर इन प्लेटफॉर्म्स को मिलने वाली कानूनी सुरक्षा भी खत्म हो सकती है।
भारत में अभी डीपफेक को लेकर कोई अलग कानून नहीं है। यही सबसे बड़ी कमी है। पुलिस और अदालतों के पास अभी ऐसी तकनीक नहीं है जिससे डीपफेक की सच्चाई को तुरंत पहचाना जा सके। अपराधी वीपीएन और फर्जी अकाउंट के जरिए अपनी पहचान छिपा लेते हैं।
इस खतरे से निपटने के लिए छह अहम कदम उठाने की जरूरत है:
1. डीपफेक और एआई से जुड़ी जानकारी को कानून में शामिल करना और सख्त सजा तय करना।
2. डीपफेक पहचानने के लिए तकनीकी टूल्स बनाना और वीडियो में डिजिटल वॉटरमार्किंग अनिवार्य करना।
3. सभी एआई सिस्टम में प्राइवेसी को मूलभूत हिस्सा बनाना और यूजर्स की सहमति जरूरी करना।
4. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही तय करना।
5. पुलिस, न्यायपालिका और आम लोगों को डीपफेक के बारे में जागरूक करना।
6. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाना ताकि इस चुनौती से एकजुट होकर निपटा जा सके।
डीपफेक का खतरा सिर्फ झूठ फैलाने तक सीमित नहीं है। यह हमारे लोकतंत्र, हमारी सोच और हमारे फैसलों पर सीधा असर डाल सकता है। हमें सतर्क रहकर इसे समय रहते रोकना होगा।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़