20 जुलाई 1999… यह तारीख चीन के इतिहास में एक ऐसे काले अध्याय के रूप में दर्ज है, जब लाखों निर्दोषों पर सिर्फ इसलिए कहर बरपाया गया क्योंकि वे एक शांतिपूर्ण आध्यात्मिक संस्था के अनुयायी थे। नाम था – फालुन गोंग, जिसे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने एक झटके में ‘गैरकानूनी’ करार दे दिया और उसके अनुयायियों पर ऐसा अत्याचार किया, जो दुनिया के किसी भी सभ्य समाज को झकझोर दे।
फालुन गोंग कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं था। यह चीन की पारंपरिक आध्यात्मिक परंपराओं पर आधारित एक ऐसी साधना पद्धति थी, जिसमें ध्यान, नैतिकता और शारीरिक अभ्यास को जीवन का हिस्सा माना गया। इसकी स्थापना 1992 में ली होंगज़ी नामक गुरु ने की थी। वे मानते थे कि यह पद्धति चीन की हजारों साल पुरानी परंपरा से जुड़ी है और इससे जीवन में संतुलन आता है।
देखते ही देखते यह साधना पूरे चीन में लोकप्रिय हो गई। खासतौर पर बुजुर्ग, नौकरीपेशा लोग और ग्रामीण समुदायों में इसकी गहरी पैठ बन गई। इसकी सादगी, अनुशासन और आत्मिक शांति की वजह से कुछ ही वर्षों में इसके अनुयायियों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई। कहा जाता है कि 1999 तक इसके अनुयायी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों से भी अधिक हो गए थे।
यहीं से चीन की सरकार को खतरे की घंटी सुनाई दी। कम्युनिस्ट पार्टी को लगने लगा कि कहीं यह संगठन लोगों के दिलों-दिमाग में उसकी पकड़ को कमजोर न कर दे। लिहाजा, जुलाई 1999 में फालुन गोंग पर बैन लगा दिया गया। फिर शुरू हुआ प्रताड़ना का सिलसिला।
सरकारी आदेश पर फालुन गोंग को अंधविश्वास फैलाने वाला और समाज-विरोधी धर्म बताया गया। पुलिस ने जगह-जगह छापे मारे, अनुयायियों को घरों से घसीटकर ले जाया गया, लेबर कैंप में डाला गया, पागलखानों में भेजा गया और वर्षों तक कैद में रखकर अमानवीय यातनाएं दी गईं। कई रिपोर्टों में दावा किया गया है कि हजारों अनुयायियों की हत्या कर दी गई और उनके अंग तक निकाल कर बेचे गए।
इथन गुटमैन नामक एक अमेरिकी रिसर्चर ने दावा किया कि चीन के जबरन श्रम शिविरों में करीब 15% कैदी फालुन गोंग अनुयायी हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पहले चरण में ही करीब 2000 अनुयायियों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
आज 25 साल बाद भी चीन में फालुन गोंग पर प्रतिबंध जारी है। लेकिन इसके अनुयायी अब केवल चीन में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। हर साल 20 जुलाई को दुनियाभर में चीन की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए जाते हैं। भारत में भी इस धर्म से जुड़े लोग चीन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
फालुन गोंग न किसी को मजबूर करता है, न किसी तरह की बंदिश लगाता है। अनुयायी स्वतंत्र रूप से जीवन जीते हैं। इस पद्धति में शराब, धूम्रपान और अनैतिक संबंधों से दूर रहने की शिक्षा दी जाती है। समलैंगिकों को भी इसमें जगह मिलती है। इस धर्म में न कोई प्रशासन होता है, न कोई सदस्यता शुल्क और न कोई पूजा स्थल। फिर भी चीन की सरकार को इससे डर क्यों लगता है?
दरअसल, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी किसी भी स्वतंत्र विचारधारा को बर्दाश्त नहीं करती। उसे डर है कि अगर लोग आत्मनिर्भर होकर सोचने लगेंगे, तो सरकार की पकड़ कमजोर हो जाएगी। यही कारण है कि आज भी वह फालुन गोंग को खत्म करने में जुटी है।
फालुन गोंग के अनुयायी मानते हैं कि एक दिन चीन में तानाशाही खत्म होगी और लोकतंत्र की वापसी होगी। उस दिन फालुन गोंग सिर्फ एक आध्यात्मिक संस्था नहीं, बल्कि एक बदलाव की क्रांति का प्रतीक बनेगा।
यह कहानी सिर्फ एक धर्म की नहीं, बल्कि आस्था और आज़ादी के खिलाफ बर्बर सत्ता की लड़ाई की है।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़