बाबासाहेब आपटे का नाम उन लोगों में आता है, जिन्होंने भारत को एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक सदस्य थे और उन्होंने संघ की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने का कठिन कार्य बिना किसी प्रचार के किया।
बाबासाहेब आपटे का जन्म महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। वे पेशे से वकील थे, लेकिन उनकी असली पहचान एक राष्ट्रभक्त चिंतक और संगठनकर्ता के रूप में बनी। वे डॉक्टर हेडगेवार के बेहद करीबी थे और संघ की नींव मजबूत करने में उनका अहम योगदान रहा।
1930 के दशक में जब संघ अपने शुरुआती दौर में था, तब बाबासाहेब आपटे ने देशभर में शाखाएं फैलाने का बीड़ा उठाया। वे साधारण वेशभूषा में, बिना किसी सरकारी पद या पहचान के, गांव-गांव जाकर लोगों को राष्ट्रभक्ति, सेवा और अनुशासन का पाठ पढ़ाते थे। उनकी सादगी, ईमानदारी और संगठन के प्रति निष्ठा ने हजारों युवाओं को संघ से जोड़ा।
उन्होंने महसूस किया कि राष्ट्र निर्माण सिर्फ शाखाओं से नहीं होगा, समाज के हर क्षेत्र में देशभक्तों की आवश्यकता है। इसी सोच से उन्होंने 1946 में "विश्व हिंदू परिषद" की रूपरेखा बनाना शुरू किया, जो बाद में एक बड़ा सामाजिक संगठन बना। वे मानते थे कि भारतीय संस्कृति और संस्कार ही राष्ट्र की असली शक्ति हैं।
देश के स्वतंत्र होने के बाद जब विभाजन का दर्द झेला जा रहा था, तब भी बाबासाहेब आपटे ने शांति और सेवा का मार्ग चुना। लाखों शरणार्थियों की सेवा करने में उन्होंने और संघ के कार्यकर्ताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वे अक्सर कहा करते थे, "देश सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, यह हमारे पूर्वजों की तपस्या और त्याग का फल है।"
उनकी एक और बड़ी देन थी "भारत प्रकाशन" की स्थापना, जिससे संघ विचारधारा को माध्यम मिला। 'पांचजन्य' और 'ऑर्गनाइज़र' जैसे पत्रों की शुरुआत उन्हीं की सोच का परिणाम था। इन पत्रों ने आज़ादी के बाद भी राष्ट्रवादी विचारों को जीवित रखा।
बाबासाहेब आपटे का जीवन दिखाता है कि बिना सत्ता, पद या लोभ के भी देश सेवा की जा सकती है। वे सच्चे अर्थों में तपस्वी थे, जो सिर्फ राष्ट्र को मजबूत करने के लिए जिए।
आज भी संघ के स्वयंसेवक जब शाखा में "नमस्ते सदा वत्सले" का गायन करते हैं, तो बाबासाहेब आपटे जैसे समर्पित कार्यकर्ता उनकी प्रेरणा बनते हैं। उन्होंने अपने जीवन से यह सिखाया कि सेवा, अनुशासन और समर्पण से ही भारत को महान बनाया जा सकता है।
उनकी मृत्यु 1960 में हुई, लेकिन उनके विचार आज भी लाखों युवाओं के मन में जोश और प्रेरणा भरते हैं। बाबासाहेब आपटे जैसे व्यक्तित्व भारत के लिए एक वरदान थे। वे भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका जीवन और विचार हमेशा हमें राष्ट्र के लिए जीने की राह दिखाता रहेगा।
निष्कर्ष में कहा जाए तो बाबासाहेब आपटे न सिर्फ संघ के संस्थापक स्तंभों में से एक थे, बल्कि वे भारत माता के सच्चे सपूत थे। उनका जीवन हर राष्ट्रभक्त के लिए एक उदाहरण है।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़