छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में सीपीआई-माओवादी ने एक बार फिर अपनी क्रूरता दिखाई है। मंगलवार-बुधवार की रात उसूर थाना क्षेत्र के पेरमपल्ली गाँव में 38 वर्षीय ग्रामीण कवासी हूँगा को उनके घर से घसीटकर बाहर निकाला गया और पुलिस मुखबिर होने के शक में धारदार हथियार से बेरहमी से हत्या कर दी गई।
यह हत्या पिछले 15 दिनों में बीजापुर में नक्सलियों द्वारा की गई छठी हत्या है, जो सीपीआई-माओवादी की खोखली विचारधारा और निर्दोष जनजातियों पर अत्याचार की भयावह तस्वीर पेश करती है। केंद्र सरकार ने भले ही 2026 तक नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने का दावा किया हो, लेकिन यह घटना इस आतंकवादी संगठन की बर्बरता और हताशा को उजागर करती है, जो अब आम नागरिकों को निशाना बनाकर अपनी मौजूदगी बनाए रखने की नाकाम कोशिश कर रहा है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, मंगलवार-बुधवार की रात करीब 1 बजे पांच नक्सली, जो सशस्त्र और वर्दीधारी थे, पेरमपल्ली गाँव में कवासी हूँगा के घर में घुस गए। इन नक्सलियों ने हूँगा को उनके परिवार के सामने जबरन बाहर निकाला और उन पर पुलिस के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया। इसके बाद, उन्होंने धारदार हथियार से उनकी हत्या कर दी और शव को गाँव के बाहर फेंक दिया।
घटनास्थल पर एक पर्चा भी मिला, जिसमें
सीपीआई-माओवादी ने हूँगा को “पुलिस का एजेंट” बताकर इस हत्या को जायज ठहराने की कोशिश की। स्थानीय लोगों ने सुबह पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद उसूर थाना पुलिस ने मौके पर पहुँचकर शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा और जाँच शुरू की।
कवासी हूँगा की हत्या बीजापुर में हाल के दिनों में नक्सलियों द्वारा की गई हिंसा की एक और कड़ी है। पिछले 15 दिनों में, जिले में छह ग्रामीणों की हत्या हो चुकी है, जिनमें से अधिकांश को नक्सलियों ने पुलिस मुखबिर होने के शक में निशाना बनाया।
17 जून को, पेद्दाकोर्मा गाँव में नक्सलियों ने तीन ग्रामीणों, जिनमें एक 13 वर्षीय लड़का शामिल था, को रस्सी से गला घोंटकर मार डाला। इनमें से दो मृतक पूर्व नक्सली दिनेश मोदियाम के रिश्तेदार थे, जो मार्च में आत्मसमर्पण कर चुका था। 21 जून को, पामेद थाना क्षेत्र में दो अन्य ग्रामीणों की हत्या की गई। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि सीपीआई-माओवादी न केवल सुरक्षाबलों, बल्कि क्षेत्र के जनजातीय समुदाय के लोगों को निशाना बना रहा है।
इस साल बस्तर संभाग में कई बड़े ऑपरेशन में सुरक्षाबलों ने माओवादियों को भारी नुकसान पहुँचाया है। अप्रैल 2025 में, बीजापुर और तेलंगाना सीमा पर करेगुट्टा पहाड़ियों में सुरक्षाकर्मियों ने नक्सलियों को घेरकर उन्हें मार गिराया था। लेकिन, इसके बावजूद, ग्रामीणों पर हमले बढ़ रहे हैं, जो सीपीआई-माओवादी की हताश रणनीति को दर्शाता है।
सीपीआई-माओवादी, जो खुद को जनजातियों का हितैषी बताता है, उसी समुदाय को निशाना बना रहा है, जिसके नाम पर उसने दशकों तक हिंसा को जायज ठहराया। कवासी की हत्या जैसी घटनाएँ यह साबित करती हैं कि माओवादियों की विचारधारा केवल आतंक और क्रूरता का पर्याय हैं।
सीपीआई-माओवादी की विचारधारा पूरी तरह खोखली है। वे जनजातियों के विकास का विरोध करते हैं और अब उन्हें ही मार रहे हैं। यह संगठन न केवल भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि जनजातीय समुदाय के लिए भी अभिशाप बन चुका है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि नक्सली उनके गाँवों में जबरन उगाही करते हैं, युवाओं को भर्ती करने का दबाव बनाते हैं, और असहमति जताने वालों को क्रूरता से दंडित करते हैं। क्षेत्र के एक ग्रामीण ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “नक्सली हमें डराते हैं और हमारे बच्चों को अपने साथ ले जाते हैं। अगर हम पुलिस से बात करें, तो वे हमें मार देते हैं।” यह बयान सीपीआई-माओवादी की वहशी प्रकृति को उजागर करता है, जो अब क्षेत्र के ही लोगों के खिलाफ हथियार उठा रहा है।

केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सलवाद को खत्म करने के लिए 31 मार्च 2026 तक की समय सीमा तय की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में छत्तीसगढ़ का दौरा किया था और कहा था, “हम नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।” सरकार की पुनर्वास नीति ने भी कुछ सफलता दिखाई है। 28 जून 2025 को, बीजापुर में
13 नक्सलियों, जिनमें 10 पर 22 लाख रुपये का इनाम था, ने आत्मसमर्पण किया। इन नक्सलियों को 50,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि और पुनर्वास सुविधाएँ दी गईं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सड़कों, बिजली, और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे विकास कार्यों ने नक्सलियों के बीच मोहभंग पैदा किया है।
हालाँकि, कवासी हूँगा की हत्या जैसे मामले यह सवाल उठाते हैं कि क्या सरकार की रणनीति वास्तव में ग्रामीणों को सुरक्षा दे पा रही है। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने हाल ही में माओवादी नेता हिड़मा सहित 17 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है, जो बीजापुर में सीआरपीएफ कैंपों पर हमलों में शामिल थे। लेकिन, जब तक ग्रामीण इलाकों में नक्सलियों का डर बना रहेगा, तब तक सरकार के दावे अधूरे ही रहेंगे।
पेरमपल्ली और आसपास के गाँवों में कवासी हूँगा की हत्या ने दहशत का माहौल पैदा कर दिया है। बीजापुर के जनजाति, जो पहले से ही शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार की कमी से जूझ रहे हैं, वो नक्सलियों की क्रूरता के भी शिकार बन रहे हैं। सीपीआई-माओवादी की यह रणनीति न केवल अमानवीय है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि वे विकास और शांति के खिलाफ हैं।
सीपीआई-माओवादी, जो खुद को जनजातियों का रक्षक बताता है, उनका ही खून बहा रहे हैं। उनकी विचारधारा केवल आतंक और अराजकता का पर्याय बन चुकी है। सीपीआई माओवादी केवल एक आतंकवादी संगठन है, जो जनजातियों का शोषण करता है। उनकी हिंसा ने न केवल विकास को रोका, बल्कि बस्तर के लोगों को दशकों पीछे धकेल दिया।