तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा ने साफ कर दिया है कि उनके उत्तराधिकारी का चयन चीन नहीं बल्कि तिब्बती परंपरा के अनुसार होगा। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में केवल गदेन फोड्रंग ट्रस्ट को अधिकार है और किसी भी सरकार या देश को इसमें दखल देने का कोई हक नहीं है। यह ऐलान उनके 90वें जन्मदिन से कुछ दिन पहले धर्मशाला के मैक्लॉडगंज में एक तीन दिवसीय भिक्षु सम्मेलन के दौरान किया गया।
दलाई लामा ने अपने संबोधन में कहा कि उनके पुनर्जन्म को लेकर जो अफवाहें चल रही थीं, वे पूरी तरह निराधार हैं। उन्होंने दो टूक कहा कि अगला दलाई लामा एक स्वतंत्र दुनिया में जन्म लेगा, न कि चीन के दबाव में। उन्होंने यह भी साफ किया कि अगला उत्तराधिकारी जरूरी नहीं कि कोई पुरुष या बच्चा ही हो, इससे यह स्पष्ट हो गया कि परंपरा और आस्था ही निर्णायक होंगी, न कि कोई राजनीतिक ताकत।
दलाई लामा के इस बयान से चीन बौखला गया है। बीजिंग ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए फिर वही पुराना राग अलापा कि दलाई लामा और अन्य बौद्ध गुरुओं के उत्तराधिकारी का चयन ‘गोल्डन अर्न’ की प्रक्रिया से होना चाहिए और इसके लिए चीन सरकार की मंजूरी जरूरी है। यह प्रक्रिया मिंग और किंग वंशों के जमाने से चली आ रही है जिसे चीन जबरन थोपने की कोशिश कर रहा है।
चीन पहले ही दलाई लामा द्वारा चुने गए पान्चेन लामा को गायब कर चुका है और अपनी पसंद का पान्चेन लामा थोप चुका है। अब वह यही रणनीति दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर भी अपनाना चाहता है, ताकि तिब्बती बौद्ध धर्म पर पूरी तरह नियंत्रण किया जा सके।
इस बार भारत ने भी साफ शब्दों में चीन की दखलअंदाजी को खारिज किया है और दलाई लामा के फैसले का पूरा समर्थन किया है। केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, "दलाई लामा का उत्तराधिकारी कौन होगा, यह निर्णय केवल उन्हीं के हाथ में है। चीन या कोई और इसमें दखल नहीं दे सकता।" उन्होंने यह भी कहा कि दलाई लामा सिर्फ तिब्बतियों के ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के करोड़ों लोगों के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं।
भारत सरकार की ओर से मंत्री राजीव रंजन सिंह और जेडीयू नेता ललन सिंह भी दलाई लामा के जन्मदिन समारोह में शामिल होंगे, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि भारत सरकार इस मामले में पूरी तरह उनके साथ खड़ी है।
भारत ने साफ कर दिया है कि तिब्बती बौद्ध परंपराओं में किसी बाहरी शक्ति का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह सिर्फ तिब्बतियों की आस्था का नहीं, बल्कि धार्मिक आजादी, सांस्कृतिक सम्मान और मानवाधिकारों का सवाल है। भारत ने जिस स्पष्टता से चीन की विस्तारवादी नीतियों को खारिज किया है, उससे दुनियाभर में एक मजबूत संदेश गया है।
दलाई लामा का यह निर्णय न केवल उनकी आध्यात्मिक विरासत को मजबूत करता है, बल्कि तिब्बती संस्कृति और आस्था की स्वतंत्रता को भी संरक्षित करता है। भारत का समर्थन इस लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती देता है। चीन की तानाशाही सोच पर यह एक करारा तमाचा है।
भारत ने यह साफ कर दिया है कि आस्था पर राजनीति नहीं चलेगी, और दलाई लामा की परंपरा में किसी भी बाहरी ताकत की दखल अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़