बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक लगातार दहशत और हिंसा के साए में जी रहे हैं। मंदिरों पर हमले, जबरन कन्वर्जन, बलात्कार, हत्याएं और संपत्ति पर कब्जे जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। यह सिलसिला बीते कई वर्षों से जारी है, लेकिन अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद हालात और भी खराब हो गए हैं। कट्टरपंथी इस्लामी गुटों ने मौके का फायदा उठाकर हिंसा और दमन की झड़ी लगा दी है। अंतरिम सरकार की चुप्पी और पाकिस्तान की ओर झुकाव ने आग में घी का काम किया है।
शेख हसीना के जाने के बाद बांग्लादेश में जो सत्ता का खालीपन बना, उसे जमात-ए-इस्लामी, हिफाजत-ए-इस्लाम और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम जैसे कट्टरपंथी संगठनों ने भर दिया। नई अंतरिम सरकार, जो नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में है, इन हिंसक घटनाओं को रोकने में पूरी तरह नाकाम रही है। इन संगठनों का मकसद साफ है; बांग्लादेश को एक इस्लामी राष्ट्र की ओर ले जाना और हिंदुओं को देश का दुश्मन बताकर दबाव में रखना।
पाकिस्तान की तरफ झुकाव और पहलगाम हमले के बाद भारत के खिलाफ बांग्लादेश में नफरत का माहौल तैयार किया गया। इसमें हिंदुओं को भारत का समर्थक बताकर देशद्रोही ठहराने की कोशिश की गई। सोशल मीडिया पोस्ट या झूठे ‘ईशनिंदा’ के आरोप लगाकर हिंदू परिवारों पर हमले किए गए, मंदिर तोड़े गए और जमीनों पर कब्जा कर लिया गया।
इस्लामी संगठन यह प्रचार कर रहे हैं कि बांग्लादेश की संस्कृति और राजनीति पर भारत का असर कम करना है, और इसके लिए सबसे पहले हिंदुओं को मिटाना जरूरी है। यह केवल धार्मिक नहीं, बल्कि रणनीतिक साजिश है जो बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष पहचान को भी खत्म कर रही है।
बीते दो दशकों में बांग्लादेश में हिंदुओं पर बड़े हमले
2001 में भोला हिंसा: हिंदुओं की संपत्तियां लूटी गईं और घर जलाए गए
2003 बंशीलखली कांड: 11 हिंदुओं को ज़िंदा जला दिया गया
2012-2023: फर्जी फेसबुक पोस्ट और झूठे आरोपों के बहाने सैकड़ों मंदिरों को तोड़ा गया, हजारों घर जलाए गए और महिलाओं से दुष्कर्म हुए
2021 दुर्गा पूजा हमले: देशभर में 1500 से ज़्यादा हिंदू घर और 300 से अधिक मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया
2025 मुरादनगर मामला: हिंदू महिला से दुष्कर्म के मामले ने पूरे देश में आक्रोश फैला दिया
इन घटनाओं की एक लंबी सूची है जो यह साबित करती है कि यह सब महज कुछ उन्मादी तत्वों का काम नहीं बल्कि एक योजनाबद्ध साजिश है।
इस पूरे दौर में मानवाधिकार संगठनों की चुप्पी हैरान करती है। ना ही UN और ना ही किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन ने हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को लेकर बांग्लादेश सरकार पर कोई दबाव बनाया है। वहीं बांग्लादेश की मुख्यधारा की राजनीति में भी अधिकांश नेता आंखें मूंदे हुए हैं।
बीएनपी नेता तारिक रहमान और सांसद बहाउद्दीन बहार जैसे लोग लगातार हिंदू विरोधी बयान देते हैं, जिससे हिंसा को और हवा मिलती है।
भारत के खिलाफ माहौल बनाने के लिए हिंदुओं को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। इंटरफेथ इफ्तार में जानबूझकर बीफ परोसना, हिंदू महिलाओं को निशाना बनाना, मंदिरों की जमीन पर कब्जा करना और मनगढ़ंत आरोप लगाकर दंगे कराना; यह सब बांग्लादेश के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने की साजिश का हिस्सा है।
हिंदू आबादी, जो 1971 में करीब 22% थी, अब घटकर लगभग 7% रह गई है। पलायन, जबरन धर्मांतरण और लगातार हो रहे हमलों ने इस समुदाय को बुरी तरह तोड़ दिया है।
अगर जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो बांग्लादेश में हिंदू समाज केवल इतिहास की किताबों में ही रह जाएगा।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार सिर्फ एक देश की समस्या नहीं है, यह पूरे दक्षिण एशिया की शांति और स्थिरता के लिए खतरा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय, भारत सरकार और मानवाधिकार संगठनों को अब चुप बैठने का नहीं, खुलकर खड़ा होने का समय है। अगर अभी भी हिंदुओं के पक्ष में आवाज़ नहीं उठी, तो कट्टरपंथी ताकतें लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता दोनों को कुचल देंगी।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़