अखंड भारत के साधक पेशवा बाजीराव

13 Aug 2025 22:43:13
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चौदह अगस्त 1947 को मनाया जाने वाला अखंड भारत दिवस और अठारह अगस्त 1700 को जन्मे पेशवा बाजीराव प्रथम, ये दोनों तिथियां आपस में गहराई से जुड़ी हैं। अखंड भारत दिवस को विभाजन विभीषिका दिवस के नाम से भी जाना जाता है।
 
अखंड भारत का अर्थ है वह प्राचीन भारत जिसमें आज का अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और तिब्बत सम्मिलित थे। पेशवा बाजीराव बल्लाल इसी अखंड भारत के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे और उन्होंने अपना जीवन भारत माता के चरणों में अर्पित कर दिया। इससे पहले मध्यावर्त या आर्यावर्त भी एक भौगोलिक इकाई रहा, जिसे भारतवर्ष कहा जाता था। वस्तुतः हमारा मूल भारत वह था जिसमें ईरान, इराक, थाईलैंड, इंडोनेशिया और बर्मा भी शामिल थे।
 
पेशवा बाजीराव इस अखंड भारत की अवधारणा के सशक्त वाहक थे, जिसके बारे में शास्त्रों में कहा गया है:
 
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् |
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ||
 
अर्थात समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो देश है, उसे भारत कहते हैं और उसकी संतानों को भारती। यह सूक्त अठारह पुराणों में से एक विष्णु पुराण में लिखा है, जिसे ऋषि पाराशर ने रचा था।
 
चौदह अगस्त को हम विभाजन विभीषिका दिवस के रूप में भी याद करते हैं। इसी दिन राष्ट्र ने अपने सातवें विभाजन का घाव सहा। 1857 से 1947 के बीच भारत सात बार विभाजित हुआ। यह अंग्रेजों के सांस्कृतिक भय का परिणाम था। उन्हें डर था कि यदि भारत अखंड रहा तो उनका और अन्य पश्चिमी ईसाई देशों का प्रभुत्व कभी स्थापित नहीं हो पाएगा। पश्चिम का असली उद्देश्य विस्तारवाद, लूट और धर्मांतरण ही रहा है।
 
अखंड भारत की अवधारणा को यहूदी राष्ट्र के उदाहरण से भी समझा जा सकता है। यहूदियों का 2500 वर्षों तक कोई अपना देश नहीं था, लेकिन वे पीढ़ी दर पीढ़ी यह संकल्प दोहराते रहे, अगले वर्ष यरूशलेम में मिलेंगे। अंततः उन्होंने अपना यरूशलेम प्राप्त कर लिया। इसी प्रकार हमें भी अखंड भारत के सपने को अपने मन, विचार, लेखन, भाषण और रणनीति में जीवित रखना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अखंड भारत कोई मात्र भौगोलिक विस्तार नहीं, बल्कि एक भू-सांस्कृतिक अवधारणा है।
 
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पेशवा बाजीराव मात्र बीस वर्ष की आयु में पेशवा बने और बीस वर्ष तक शासन किया। इस दौरान उन्होंने बयालीस बड़े युद्ध लड़े और कभी पराजित नहीं हुए। वे कर्तव्य के इतने दृढ़ थे कि भोजन के बीच भी कहते, यदि देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि राजपूत ने मदद मांगी और ब्राह्मण भोजन करता रहा, और तुरंत युद्ध के लिए निकल पड़ते।
 
इतिहास में दर्ज है कि उन्होंने दिल्ली पर आक्रमण के लिए दस दिन की दूरी केवल दो दिन में पूरी की थी, 500 घोड़ों के बेड़े के साथ। यह अब तक का सबसे तेज जमीनी आक्रमण माना जाता है। उनकी युद्धनीति थी, तेज गति से आक्रमण करो और दुश्मन को संभलने का मौका मत दो। इसी रणनीति से उन्होंने मराठा साम्राज्य को दिल्ली तक फैला दिया।
बाजीराव दुनिया के तीन ऐसे सेनापतियों में गिने जाते हैं जिन्होंने कभी पराजय नहीं देखी। नेपोलियन बोनापार्ट और जूलियस सीजर अन्य दो हैं। अमेरिका आज भी सैनिकों को पेशवा की पालखेड युद्ध रणनीति सिखाता है।
 
1728 के पालखेड युद्ध में उन्होंने निजाम को हराया और संधि के लिए मजबूर किया। 1731 में फिर निजाम को पराजित किया और उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा मराठा अधीन हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेनापति विसकाउंट मोंटगोमरी भी बाजीराव के प्रशंसक थे।
 
अटक से कटक और कन्याकुमारी से हिमालय तक हिन्दवी स्वराज की स्थापना में वे सफल हुए और भारत का लगभग 80 प्रतिशत भूभाग मराठा साम्राज्य का हिस्सा बना।
 
28 अप्रैल 1740 को मध्यप्रदेश के रावेरखेड़ी में नर्मदा तट पर अस्वस्थता के कारण उनका निधन हुआ। उनका 1731 का मालवा अभियान, 1737 का बुंदेलखंड अभियान और दिल्ली अभियान उनकी वीरता व रणनीति का प्रमाण हैं। 1738 के भोपाल युद्ध में भी उन्होंने मुगल और निजाम की संयुक्त सेना को हराया, जिसके बाद मुगलों को मराठों की अधीनता माननी पड़ी।
 
पेशवा बाजीराव ने अखंड भारत और हिन्दवी स्वराज के लिए केवल युद्ध ही नहीं लड़े, बल्कि विभिन्न राज्यों से मित्रता और संधियों के माध्यम से मराठा और राजपूत संबंधों को मजबूत किया।
 
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डॉ. प्रवीण दाताराम गुगनानी
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