16 अगस्त 1946 का दिन भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है। मुस्लिम लीग द्वारा घोषित "डायरेक्ट एक्शन डे" केवल राजनीतिक प्रदर्शन नहीं था, बल्कि सुनियोजित हिंसा और नरसंहार का षड्यंत्र था। कलकत्ता की सड़कों पर भड़की आग ने यह दिखा दिया कि सांप्रदायिक नफरत कितनी तेजी से समाज को जला सकती है।
जिहादी सोच के तहत रची गई साजिश
डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान मोहम्मद अली जिन्ना ने किया था। यह महज राजनीतिक दबाव नहीं बल्कि हिन्दू समाज को डराने और पाकिस्तान की मांग थोपने की चाल थी। यह तिथि भी जानबूझकर चुनी गई थी, क्योंकि यह रमजान के 17वें दिन पड़ी, जब इस्लामी इतिहास में बद्र की लड़ाई को मुसलमानों की पहली "बड़ी जीत" माना जाता है।
बंगाल के मुख्यमंत्री हुसैन शाहिद सुहरावर्दी ने इस दिन को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया। कानून व्यवस्था को पंगु बना दिया गया। मुस्लिम लीग के नेताओं ने खासतौर पर दंगे के लिए तैयारी करवाई। बम बनाने के लिए पेट्रोल कूपन जारी किए गए और महीनों का राशन पहले से जमा किया गया। मुस्लिम लीग के मेयर ने पर्चे बांटकर साफ कहा – “काफिरों का अंत करीब है, सामूहिक हत्या होगी।”
कलकत्ता की गलियों में कत्लेआम
जब हजारों की भीड़ कलकत्ता मैदान से निकली तो उनके हाथों में लाठी, लोहे की छड़ें और हथियार थे। ये भीड़ सीधे हिन्दू मोहल्लों की ओर बढ़ी। दुकानों को लूटा गया, मंदिरों को जलाया गया और बस्तियों को आग के हवाले कर दिया गया। तीन दिनों तक शहर लहूलुहान रहा।
संरक्षित आकलन में चार हजार हिन्दुओं की हत्या हुई, जबकि असल आंकड़ा दस हजार के पार बताया जाता है। एक लाख से ज्यादा लोग बेघर हुए। महिलाओं के साथ गैंगरेप कर उन्हें मार दिया गया। बच्चों को निर्ममता से काट डाला गया। लाशें सड़कों, नालियों और मैदानों में ढेर की तरह पड़ी थीं।
हिन्दू प्रतिरोध और गोपाल पाठा
इतिहास अक्सर हिन्दू प्रतिरोध को अनदेखा करता है। लेकिन उस समय गोपाल चंद्र मुखोपाध्याय, जिन्हें "गोपाल पाठा" कहा जाता था, सामने आए। उन्होंने युवा हिन्दुओं को संगठित किया और ‘भारतीय जातीय बहिनी’ बनाई। कसाई, मजदूर, लुहार और व्यापारी सब इस संघर्ष में शामिल हुए।
18 अगस्त से हिन्दू युवाओं ने पलटवार शुरू किया। हथियार अमेरिकी सैनिकों और स्वतंत्रता आंदोलन से जुटाए गए। गोपाल पाठा की रणनीति साफ थी – पहले हिन्दू मोहल्लों की सुरक्षा और फिर हमलावर इलाकों में जवाबी कार्रवाई। तीन दिन में मुस्लिम लीग के दंगाइयों की हिम्मत टूट गई।
सुहरावर्दी खुद गोपाल पाठा से बातचीत करने को मजबूर हुए। हिन्दू समाज की एकजुटता ने मुस्लिम लीग की सुनियोजित योजना को असफल कर दिया।
सीख और सबक
डायरेक्ट एक्शन डे ने यह साफ कर दिया कि हिन्दू समाज पर हमला महज सांप्रदायिक हिंसा नहीं बल्कि सभ्यता को खत्म करने की कोशिश थी। मंदिर तोड़े गए, धर्मग्रंथ जलाए गए और हिन्दू अस्तित्व मिटाने की कोशिश की गई।
आज जब बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले हो रहे हैं, मंदिर जलाए जा रहे हैं और लोग पलायन कर रहे हैं, तो 1946 की गूंज सुनाई देती है। उस समय हिन्दुओं की आबादी 28% थी, आज घटकर केवल 7.5% रह गई है। यह बदलाव आकस्मिक नहीं बल्कि व्यवस्थित हिंसा और दबाव का नतीजा है।
निष्कर्ष
डायरेक्ट एक्शन डे केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि चेतावनी है। यह बताता है कि हिन्दू समाज अगर संगठित और सजग नहीं रहा तो इतिहास खुद को दोहराएगा। कलकत्ता की जलती गलियां और निर्दोषों का रक्तपात हमें याद दिलाते हैं कि केवल सतर्कता और एकजुटता ही भविष्य में ऐसे नरसंहारों को रोक सकती है।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़