भारतीय नौसेना को एक और आधुनिक और घातक हथियार मिल गया है। 31 जुलाई को कोलकाता के गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) ने प्रोजेक्ट 17A के तहत बने पहले स्टील्थ युद्धपोत 'हिमगिरी' को औपचारिक रूप से नौसेना को सौंप दिया। यह युद्धपोत न केवल तकनीकी रूप से बेहद उन्नत है, बल्कि इसमें भारत की आत्मनिर्भरता और स्वदेशी निर्माण क्षमता की झलक भी साफ दिखती है।
‘हिमगिरी’ नाम पहले भी भारतीय नौसेना का हिस्सा रह चुका है। पुराना ‘INS हिमगिरी’ एक लिअंडर क्लास फ्रिगेट था, जो करीब 30 साल तक सेवा में रहने के बाद 2005 में रिटायर कर दिया गया था। अब उसी नाम से तैयार यह नया युद्धपोत पूरी तरह से आधुनिक तकनीकों और हथियारों से लैस है। इसे वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो ने डिजाइन किया है और कोलकाता की वॉरशिप ओवरसाइट टीम की निगरानी में बनाया गया है।
हिमगिरी को खास 'इंटीग्रेटेड कंस्ट्रक्शन' तकनीक से तैयार किया गया है, जिससे इसे तय समय में, मॉड्यूलर तरीके से और बेहतर डिजाइन के साथ बनाया जा सका। प्रोजेक्ट 17A के तहत बनने वाले सभी युद्धपोत पुराने शिवालिक क्लास युद्धपोतों से कहीं ज्यादा एडवांस हैं। इसमें कोम्बाइंड डीजल और गैस पावर सिस्टम लगाया गया है, जो इसे तेज गति और बेहतर नियंत्रण देता है। इसमें सतह से सतह और हवा में मार करने वाली आधुनिक मिसाइलें, 76 मिमी गन, 30 और 12.7 मिमी के क्लोज-इन हथियार सिस्टम भी लगे हैं, जो किसी भी खतरे का जवाब देने में सक्षम हैं।
इस पूरे प्रोजेक्ट में 75 प्रतिशत हिस्सेदारी स्वदेशी उपकरणों और तकनीकों की रही है। इसमें 200 से ज्यादा छोटे और मध्यम उद्योगों ने हिस्सा लिया, जिससे करीब 4,000 लोगों को सीधा और 10,000 से ज्यादा लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिला। इससे यह साबित होता है कि भारत अब न सिर्फ अपनी सुरक्षा के लिए खुद सक्षम बन रहा है, बल्कि विश्व के टॉप शिपबिल्डिंग देशों की कतार में भी मजबूती से खड़ा हो रहा है।
'हिमगिरी' जैसे युद्धपोत भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए एक मजबूत दीवार साबित होंगे और हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की ताकत को और बढ़ाएंगे।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़