अमेरिका खुद को दुनिया का सबसे बड़ा ताकतवर देश बताता है, लेकिन उसके फैसलों में साफ दोहरा रवैया नजर आता है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर रूसी तेल और हथियार खरीदने के नाम पर 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया। लेकिन यही सख्ती यूरोप या चीन पर क्यों नहीं दिखती, जो लगातार रूस से तेल, गैस, यूरिया और दूसरी चीजें खरीद रहे हैं?
ट्रंप सरकार का दावा है कि भारत का पैसा रूस-यूक्रेन युद्ध को बढ़ा रहा है। लेकिन आंकड़े कुछ और कहते हैं। फरवरी 2022 से जून 2025 तक अमेरिका ने खुद रूस से करीब 25.7 अरब डॉलर का सामान खरीदा है। इसमें यूरिया, पैलेडियम, यूरेनियम और एयरक्राफ्ट के पार्ट्स शामिल हैं।
यूरोपीय संघ की हालत और भी चौंकाने वाली है। जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और दूसरे देश रूस से अब तक 458 अरब डॉलर का तेल, गैस, स्टील और निकेल खरीद चुके हैं। यह सब युद्ध के दौरान हुआ, जबकि अमेरिका खुद रूस पर सख्त होने की बातें करता रहा।
सबसे बड़ा खरीदार तो चीन है। रूस के करीब आधे तेल का खरीदार वही है। लेकिन ट्रंप सरकार चीन पर न तो सख्ती दिखा रही है और न ही नए टैरिफ लगा रही है। वजह साफ है – चीन पर दबाव डालने से अमेरिकी जनता को महंगाई और बेरोजगारी का और बड़ा झटका लगेगा। इसलिए आसान निशाना भारत को बनाया जा रहा है।
ट्रंप की टैरिफ नीति का असर अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ रहा है। हाल ही में कनाडा ने अमेरिका के 4.5 अरब डॉलर के डेयरी उत्पाद लौटा दिए। अमेरिकी किसानों को अपना दूध खेतों में बहाना पड़ा। सोशल मीडिया पर इसके वीडियो छाए रहे। हजारों किसान दिवालियापन की कगार पर हैं।
महंगाई का आलम यह है कि जो बैग पहले 9.99 डॉलर में मिलता था, उसकी कीमत अब 14.99 डॉलर हो गई है। कपड़े और जरूरी सामान महंगे हो चुके हैं। अमेरिकी जनता खुद अपने राष्ट्रपति की नीतियों का खामियाजा भुगत रही है।
भारत की अर्थव्यवस्था बड़ी और मजबूत है। अमेरिका के इन फैसलों से भारत को चुनौतियां जरूर मिलेंगी, लेकिन नुकसान नहीं। भारत अपने घरेलू बाजार और आत्मनिर्भरता के दम पर इन दबावों का सामना कर सकता है।
इतिहास गवाह है कि कोई भी ताकत हमेशा हावी नहीं रहती। कभी पुर्तगाल, स्पेन, नीदरलैंड, फ्रांस और ब्रिटेन दुनिया पर राज करते थे, लेकिन आज उनका वर्चस्व खत्म हो गया। अब वही दौर अमेरिका पर आता दिख रहा है। डेडॉलराइजेशन, बढ़ता कर्ज और घटता वैश्विक भरोसा आने वाले समय में अमेरिका को नीचे ले जाएगा।
ट्रंप की नीतियां साफ दिखाती हैं कि अमेरिका के लिए असली मुद्दा न्याय या युद्ध नहीं, बल्कि अपने फायदे हैं। रूस और यूरोप को छोड़कर भारत पर वार करना इसका सबसे बड़ा सबूत है। लेकिन अंततः अमेरिका को भी अपने फैसलों की कीमत चुकानी होगी।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़